Advertisement

1947 पार्टिशन में आखिर माऊंटबेटन हीरो बन ही गए

भारत की आजादी का विभाजन त्रासदी का महाकाव्य है। इस पर अनगिनत फिल्में बनाई जा सकती हैं। इस फिल्म के इतने आयाम हैं कि विश्व का हर फिल्मकार भी उस त्रासदी पर फिल्म बनाए तो भी कहानी पूरी न हो।
1947 पार्टिशन में आखिर माऊंटबेटन हीरो बन ही गए

आजादी की 70वीं वर्षगांठ हाल ही में बीती है। इस मौके पर इस बार गुरिन्दर चड्ढा एक फिल्म लेकर आई हैं, पार्टिशन 1947, जो फटे हुए नक्शे के एक हिस्से को फिर देखने की कोशिश है। भारत की आजादी बस दहलीज पर खड़ी है और उसे सौंपने के लिए अंतिम वायसराय लॉर्ड माऊंटबेटन (ह्यू बोनिविले) भारत आ गए हैं। स्वागत की तैयारी और फिर एडविना माऊंटबेटन (जिलियन एंडरसन) का भारत के प्रति प्रेम और चिंता करना दर्शकों को एक नया नजरिया देता है।

गुरिन्दर चड्ढा ने दिखाने की कोशिश की है कि कैसे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने आजादी के दो साल पहले ही सरहद बांट दी थी और माऊंटबेटन के हाथ में कुछ नहीं था। यह फिल्म जिन्ना को खलनायक बनाने से ज्यादा चर्चिल पर फोकस करती है। एक विवादित किताब का हवाला भी उन्होंने दिया है। नरसंहार से ज्यादा यह फिल्म इतिहास के पन्नों को खंगालने में रुचि दिखाती है।

बाइंडिंग एजेंट के रूप में जीत कुमार (मनीष दयाल) और आलिया (हुमा खान) की प्रेमकथा भी है जो बस साधारण तरीके से चलते हुए एक जगह आकर ठहर जाती है। गुरिन्दर एक भी बात ऐसी नहीं दिखा पाईं जिससे दर्शक ठहराव महसूस कर सकें। आखिर भारतीय दर्शकों की दिलचस्पी खाना बांटते, लोगों की मदद करते सोशल वर्कर की तरह दिखते माऊंटबेटन दंपती में क्यों होनी चाहिए। यह घाव इतना गहरा है कि यदि कभी कोई चर्चिल को भी भारत में ऐसी सोशल सर्विस करते हुए दिखा दे भी दर्शक वही देखना चाहते हैं, जो वह इस कहानी में बरसों से देखते रहे हैं, अपनों का बिछुड़ना, जड़ से कट कर फिर बसना, उजड़ा जीवन और हिंदू-मुस्लिम जोड़ों की अधूरी प्रेम कहानियां। 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
  Close Ad