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छुपा ‘रुस्तम’ अक्षय

रुस्तम देखते हुए कई बातें दिमाग में एक साथ चलती हैं। सन 1959 में नानावटी केस पर बनी इस फिल्म को देखते हुए लगता है कि संपादन नीरज पांडे की फिल्मों की सबसे बड़ी खासियत है। शायद यही वजह है कि रुस्तम की धीमी कहानी भी पकड़ छूटने नहीं देती।
छुपा ‘रुस्तम’ अक्षय

अक्षय का सपाट अभिनय ही कभी-कभी उनके काम आता है। रुस्तम में भी उनका भावहीन चेहरा उनकी भूमिका को सशक्त बनाता है। नेवी अफसर रुस्तम पावरी के रूप में अक्षय ने शांत रह कर अपनी भूमिका को सफल बनाने की पूरी कोशिश की है। पावरी की भूमिका में इलिना डिक्रूज बिना अच्छे अभिनय के भी इसलिए जम गई हैं क्योंकि फिल्म में नायिका का सुंदर होना जरूरी बिंदू है।

पावरी अपनी पत्नी के प्रेमी को मार देता है और खुद को बेगुनाह साबित करता है। इस छोटी सी कहानी में नीरज पांडे ने लंबाई को ताना है मगर कहीं भी ऊबने नहीं दिया। उन्होंने सन 59 के मुंबई को दिखाने के लिए सेट पर पैसा खर्च करने के बजाय सीपिया टोन का इस्तेमाल कर बेहतर परिणाम दिए हैं।

हर पात्र बिलकुल मुफीद है। फिर भले ही वह पुलिस अफसर बने पवन मल्होत्रा हों या सोशलाइट बनी ईशा गुप्ता हो। बीते जमाने की फिल्म होते हुए भी आप इसे ‘पीरियोडिक’ फिल्म नहीं कह सकते हैं। एक प्रेम कहानी में देशभक्ति के तड़के के साथ 15 अगस्त की छुट्टी को भुनाया जा सकता है। बस आखिर में यह सवाल मत पूछिएगा कि पावरी के खाते में इतनी आसानी से 5 करोड़ रुपये कैसे जमा करा दिए गए, फिर उन पांच करोड़ रुपये का क्या हुआ। कभी-कभी अभिनय के बजाय अच्छी संपादन की फिल्में देखना भी सुखद होता है। 

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