नई सिफारिश ने एफटीआईआई के माहौल को फिर से गरम कर दिया है। छात्र साल भर पहले की तरह सड़कों पर उतरने की बात कह रहे हैं। ‘मुजफ्फरनगर बाकी है’ फिल्म बनाने वाले डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर और एफटीआईआई से पासआउट नकुल साहनी का कहना है कि ‘अब स्पष्ट हो गया है कि मौजूदा सरकार ने गजेंद्र चौहान को इंस्टीटयूट क्यों भेजा था। यह कोई पॉलिटेक्नीक इंस्टीटयूट नहीं है, जहां कोर्स करवाए जाएं। एफटीआईआई की स्थापना के पीछे उद्देश्य था कि सिनेमा के विभिन्न आयामों को समझा जाए, हाशिए के मुद्दों, समाज के मुद्दों पर अलग तरीके से सिनेमा के जरिये काम किया जाए। छात्र बेहतरीन तक्नीक से वाकिफ हों।’ नकुल का कहना है कि एफटीआईआई विदेशों में भी हिंदोस्तान की पहचान है। छोटे से छोटे गांव से भी लोग यहां पढ़ना आते हैं। उनके अनुसार जो संस्थान सरकार की विचारधारा से इत्तेफाक नहीं रखते हैं और जहां से पढ़ने वाले छात्र सवाल करते हैं, सरकार उन्हें खत्म करने पर उतारू हैं।
जानकारों का कहना है कि एफटीआईआई पत्रकारिता या मास-मीडिया का स्कूल नहीं है,जहां डिजिटल मीडिया संबंधित कोर्स करवाए जाएं। एफटीआईआई में सिनेमा के अलग-अलग आयामों से संबंधित पढ़ाई होती है। जहां तक डिजिटल मीडिया से संबंधित कोर्स की बात है तो ऐसे कोर्स करवाने वाले बहुत से संस्थान हैं। यहां तक कि यू-ट्यूब से भी ऐसे कोर्स की जानकारी ली जा सकती है लेकिन एफटीआईआई एक विरासत है। सिनेमा की समझ बनानी और सिनेमा के जरिये समाज को आंकना यहीं सिखाया जाता है। एफटीआईआई में फाइनल यीअर के छात्र और बीते वर्ष गजेंद्र चौहान की नियुक्ति को लेकर 139 दिन हड़ताल पर रहने वाले विकास कहते हैं कि बीते तीन महीनों से हमें ऐसा सुनने में आ रहा है। हमने प्रशासन के सामने छात्रों की ओर से इस योजना के खिलाफ अपने विचार रखे हैं। विकास के अनुसार एफटीआईआई को डिजीटल यूनिवर्सिटी में तब्दील करने के फैसले को छात्र कभी स्वीकार नहीं करेंगे। उनके अनुसार सरकार एफटीआईआई की गंभीरता को खत्म करना चाहती है और इस संस्थान को डिजीटल मीडिया यूनिवर्सिटी बना स्किल इंडिया प्रोग्राम के तहत लाना चाहती है।