बेनेगल ने कहा कि परिवार में गुरदत्त जैसा निर्देशक होना उनके लिए हैदराबाद छोड़ने और मुंबई आकर फिल्म बनाने की बड़ी प्रेरणा बना। बेनेगल ने कल यहां संवाददाताओं से कहा, गुरदत्त जैसा चचेरा भाई होना मेरे लिए बहुत फायदेमंद रहा। हालांकि उन्होंने मेरी मदद नहीं की, लेकिन उनके कारण ही मैं फिल्म निर्देशक बन सका। बेनेगल ने अपनी हैदराबाद की नौकरी छोड़ दी और मुंबई पहुंचे तो प्यासा के निर्देशक गुरदत्त से मिलने गये। उन्होंने कहा, जब मैं गुरदत्त से मिलने गया, तो उन्होंने कहा, सुनो..तुम मेरे काम करके क्या करने वाले हो...तुम एक सहायक बनोगे और तुम्हें कुछ भी करने का मौका नहीं मिलेगा। तुम केवल गोफॉर बन कर रह जाओगे। केवल मेरे निर्देश पर काम करने वाले।
81 वर्षीय बेनेगल राष्ट्रीय औद्योगिक अभियांत्रिकी संस्थान के विशेष कार्यक्रम अवतरण में बोल रहे थे। बेनेगल को सेलिब्रिटी के साथ बातचीत के कार्यक्रम में बतौर अतिथि बुलाया गया था। इस कार्यक्रम में पीयूष मिश्रा और मकरंद देशपांडे भी शामिल थे। फिल्म बनाने के सपने को पूरा करने के लिए वेलकम टु सज्ज्नपुर के निर्देशक ने गुरदत्त की सलाह का अनुशरण किया। बेनेगल ने कहा, उन्होंने :दत्त: कहा कि उन्होंने एक नृत्य निदर्ेशक के तौर पर फिल्म जगत में काम करना शुरू किया था और निर्देशक के रूप में अपनी पहचान बनायी। इसी तरह मैंने भी सोचा कि मुझे किसी विग्यापन एजेंसी में काम शुरू कर देना चाहिये क्योंकि मेरे पास लिखने की क्षमता है। उन्होंने बताया कि कई सालों तक विग्यापन एजेंसी में काम करने के बाद मुझे 1974 में अंकुर का निर्देशन करने का मौका मिला।