अभिनेता गजेंद्र चौहान का विरोध कर रहे छात्रों का कहना है कि अब उन्हें हिंदुत्ववादी संगठनों से खतरा है। संस्थान में छात्र 12 जून से हड़ताल पर हैं और उसके बाद से यहां की अकादमिक गतिविधियों में गतिरोध पैदा हो गया है।
एफटीआईआई में नवनियुक्त सदस्य नरेंद्र पाठक ने आउटलुक को बताया कि ‘जब आंदोलन कर रहे छात्रों को हड़ताल करने के अधिकार है तो दूसरे लोगों को भी अधिकार है कि वे अपनी बात कहें। पतित पावन संगठन ने कोई हिंसा और तोड़फोड़ नहीं की। उनके हाथ में सिर्फ बैनर थे जिनपर लिखा था कि गजेंद्र हम तुम्हारे साथ हैं।’ पाठक का यहां तक कहना है कि कल एफटीआईआई के एक अध्यापक ने आंदोलनकारी छात्रों के खिलाफ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिसके बाद इन छात्रों ने उस अध्यापक को धमकाया।
पतित पावन संगठन पुणे के मुख्य सदस्य सुनील तांबट बताते हैं कि ‘आंदोलकारी छात्र झूठ बोल रहे हैं। हालांकि दो दिन पहले वहां ऐसी घटना हुई थी लेकिन उसमें भी हमारे संगठन (पतित पावन) का हाथ नहीं था। ’ तांबट के अनुसार गजेंद्र चौहान की नियुक्ति राष्ट्रीय मामला है और जब कांग्रेस नियुक्तियां किया करती थी तो कुछ नहीं होता था लेकिन गजेंद्र चौहान की नियुक्ति का विरोध सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि उन्हें भाजपा सरकार ने नियुक्त किया है। तांबट का कहना है कि कम से कम चौहान को काम तो करने दिया जाए। गौरतलब है कि गजेंद्र चौहान ने महाभारत सीरियल के अलावा कई बी ग्रेड की एडल्ड फिल्में की हैं। फिल्म और टेलीविजन के क्षेत्र में उनकी योग्यता और योगदान पर सवाल खड़े हो रहे हैं, जिसका कोई ठोस जवाब न तो भाजपा दे पाई और न ही खुद गजेंद्र चौहान।
हाल ही में संस्थान के निदेशक की ओर से हड़ताल पर बैठे छात्रों को नोटिस दिया गया था कि वे अपनी पढ़ाई का नुकसान न करते हुए अपनी क्लास ज्वाइन करें लेकिन छात्रों ने हड़ताल जारी रखी। उधर आंदोलन की बागडोर संभालने वाले छात्र प्रतीक वत्स का कहना है कि वे लोग लोकसभा सेशन के चलते दिल्ली आने की योजना बना रहे हैं। प्रतीक बताते हैं कि गजेंद्र चौहान का इस पद पर बिठाकर इस संस्थान का भगवाकरण करने की कोशिश की जा रही है।
इस मामले से जुड़े भाजपा के सूत्रों का कहना है कि छात्र तय नहीं करेंगे कि चेयरपर्सन कौन होगा। वे यह भी याद रखें कि गजेंद्र को हटाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। उधर आंदोलकारी छात्रों का तर्क है कि गजेंद्र की नियुक्ति केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह की जरिये हुई है। आरएसएस भी इस नियुक्त के समर्थन में है। इसलिए इस मामले में कोई टस से मस नहीं हो रहा है।