Advertisement

गायिका अलका याग्निक के जीवन से जुड़ा रोचक प्रसंग

बात तब की है, जब सुभाष घई अपनी फिल्म "ताल" बना रहे थे। यह पहला अवसर था, जब सुभाष किसी प्रेम कहानी पर आधारित...
गायिका अलका याग्निक के जीवन से जुड़ा रोचक प्रसंग

बात तब की है, जब सुभाष घई अपनी फिल्म "ताल" बना रहे थे। यह पहला अवसर था, जब सुभाष किसी प्रेम कहानी पर आधारित फिल्म बना रहे थे। सुभाष घई ने फिल्म के संगीत निर्माण की जिम्मेदारी ए आर रहमान को सौंप दी थी। सुभाष घई के मन में मगर ए आर रहमान को लेकर मगर एक दुविधा थी। दरअसल फिल्म ताल उत्तर भारत की फिल्म थी और इसका संगीत भी उत्तर भारतीय संगीत होना था। जबकि ए आर रहमान कर्नाटक संगीत के लिए प्रसिद्ध थे। दूसरी दिक्कत यह थी कि ए आर रहमान को हिन्दी नहीं आती थी। इस कारण उन्हें गीत के बोल समझने में बहुत परेशानी होती थी। लेकिन सुभाष घई ने ठान लिया था कि ए आर रहमान ही फिल्म का संगीत का निर्माण करने। सुभाष घई मुंबई से ए आर रहमान के पास दक्षिण भारत पहुंचे। उन्होंने आनंद बख़्शी के लिखे गीतों का अंग्रेजी में अनुवाद किया और एक एक लाइन का मतलब ए आर रहमान को समझाया। इस तरह संगीत निर्माण संभव हुआ। 

 

 

जब फिल्म का टाइटल ट्रैक रिकॉर्ड करने की बारी आई तो सुभाष घई ने इस काम के लिए गायिका अलका याग्निक को चुना। उस दौर में अलका याग्निक हिन्दी सिनेमा की सबसे सफल गायिका मानी जाती थीं। उनके पास काम की भरमार थी। कभी कभी काम इतना अधिक हो जाया करता कि अलका याग्निक को एक ही दिन में कई गीतों की रिकॉर्डिंग करनी पड़ती। ऐसे ही एक दिन अलका याग्निक दिनभर की थकी हारी घर पहुंची तो उन्हें नींद आ गई। उधर सुभाष घई ने फिल्म के टाइटल सॉन्ग " ताल से ताल मिला" की रिकॉर्डिंग रख दी थी। चूंकि यह रिकॉर्डिंग ए आर रहमान के दक्षिण भारत में स्थित स्टूडियो में होनी थी तो सुभाष घई ने अलका याग्निक की मुंबई से टिकट बुक कराई और इसकी सूचना देने के लिए अलका याग्निक को फोन किया।

 

अलका याग्निक दिनभर के काम से थककर सोई हुई थीं। इसलिए उन्होंने फोन नहीं उठाया। तब सुभाष घई ने अलका याग्निक की मां को फोन किया और रिकॉर्डिंग के बाबत जानकारी दी। सुभाष घई ने अलका याग्निक की माताजी को बताया कि चूंकि ए आर रहमान रात 8 बजे से सवेरे 8 बजे तक संगीत बनाते हैं, इसलिए उन्हें रात में ही गाने की रिकॉर्डिंग करनी होगी। इसके लिए सारे इंतजाम हो चुके हैं और सभी को अलका याग्निक का इंतजार है। अलका जैसे ही फ्लाइट से मुंबई से आ जाएंगी, गाने की रिकॉर्डिंग हो जाएगी। 

 

सुभाष घई की आवाज में वह ऊर्जा थी कि अलका याग्निक की माताजी को महसूस हुआ कि यह गाना बहुत खास होने जा रहा है। उन्होंने सुभाष घई से कहा कि वह अलका याग्निक को रिकॉर्डिंग के लिए भेजती हैं। अलका याग्निक की माताजी ने जब अलका याग्निक को नींद से जागकर सुभाष घई के फोन और गाने की रिकॉर्डिंग के बारे में बताया तो अलका याग्निक का रवैया ढीला रहा। अलका याग्निक चूंकि रिकॉर्डिंग से थक गई थीं इसलिए उनका मन गाने की रिकॉर्डिंग का नहीं था। अलका याग्निक ने अपनी मां से साफ कह दिया कि उनकी स्थिति ऐसी नहीं है कि वह आनन फानन में फ्लाइट पकड़कर गाने की रिकॉर्डिंग में जाएं। तब अलका याग्निक की मां ने उन्हें समझाया कि इस गाने को लेकर सुभाष घई कितने उत्साहित हैं। जरा से आलस के कारण यह गाना उनके हाथ से निकल सकता है। इसलिए थकान को छोड़कर उन्हें रिकॉर्डिंग के लिए जाना चाहिए। अलका याग्निक को अपनी मां की बात में ऐसा विश्वास नजर आया कि वह उनकी सलाह नहीं ठुकरा सकीं। 

 

 

अलका याग्निक मुंबई से फ्लाइट पकड़कर सीधे ए आर रहमान के स्टूडियो पहुंची। जब अलका याग्निक ने टाइटल ट्रैक सुना तो उनकी सारी थकान गायब हो गई। रहमान ने अद्भुत संगीत रचा था। अलका याग्निक ने रिहर्सल की। धीरे धीरे उनका गला गाने के लिए ढल गया। देर रात तक रिकॉर्डिंग चली और टाइटल सॉन्ग "ताल से ताल मिला" रिकॉर्ड हुआ। फिल्म बनकर तैयार हुई और रिलीज होने पर सुपरहिट साबित हुई। मजेदार बात यह है कि थकान के कारण अलका याग्निक जिस गाने को छोड़ना चाहती थीं, उसी गाने यानी "ताल से ताल" के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अलका याग्निक के इस उदाहरण से समझ आता है कि जरा सा साहस, आलस को त्यागने की हिम्मत आपके लिए सफलता के द्वार खोल देती है। 

 

 

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad