फिल्म निर्देशक नागेश कुकनूर की फिल्म "इकबाल" ने अपनी रिलीज के 17 वर्ष पूरे कर लिए हैं। 26 अगस्त साल 2005 को रिलीज हुई फिल्म इकबाल उन खास हिन्दी फिल्मों में है, जिसने कलात्मक फिल्म होते हुए भी बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल की।
फिल्म के निर्देशक नागेश कुकनूर ने अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी करने के बाद कई वर्षों तक अमरीका में नौकरी की। मगर एक दिन उन्हें एहसास हुआ कि नौकरी वाले जीवन में उन्हें रस नहीं आ रहा है। वह एक बेमतलब की जिन्दगी जी रहे हैं, जहां सब होते हुए भी कोई खुशी नहीं है। इस एहसास से प्रेरित होकर नागेश कुकनूर ने नौकरी छोड़ दी और भारत चले आए। भारत आकर उन्होंने कुछ फ़िल्में बनाईं। नागेश कुकनूर की फिल्मों में सामाजिक मुद्दों को प्रमुखता के साथ उठाया जाता है। इसी की एक बानगी है फिल्म "इकबाल"।
नागेश कुकनूर ने इकबाल की कहानी लिखी। कहानी लिखते हुए नागेश के स्वयं के अनुभव भी काम आए। जिस तरह उन्होंने अपने सपने, अपनी खुशी के लिए समाज की सोच को पीछे छोड़ दिया था, वैसे ही उन्होंने इकबाल नाम के एक गूंगे लड़के की कहानी बुनी, जो क्रिकेट के जुनून में समाज की बातों को ध्यान नहीं देता। वह संघर्ष करता है और एक दिन सफलता उसके कदम चूम लेती है।
नागेश कुकनूर ने फिल्म की कहानी लिखी तो वह इसे लेकर सुभाष घई के पास पहुंचे। सुभाष घई ने कहानी सुनी तो उन्हें कहानी बहुत पसंद आई। उन्होंने फिल्म प्रोड्यूस करने के लिए सहमति जता दी। इस तरह इकबाल का निर्माण मुक्ता आर्ट्स के सौजन्य से हुआ।
नागेश चाहते थे कि इकबाल का किरदार एक ऐसा अभिनेता निभाए, जिसे गेंदबाजी आती हो। इसका कारण यह था कि नागेश फिल्म को असलियत के नजदीक बनाना चाहते थे। यदि अभिनेता गेंदबाजी में प्रवीण नहीं होगा तो स्क्रीन पर झूठ महसूस होने लगेगा। जब इस बात की खबर अभिनेता श्रेयस तलपड़े को मिली तो उन्होंने फिल्म के लिए ऑडिशन देने का निर्णय लिया। श्रेयस तलपड़े बचपन में काफी क्रिकेट खेल चुके थे। उन्हें तेज गेंदबाजी का अच्छा अनुभव था।
श्रेयस तलपड़े जब नागेश कुकनूर के पास पहुंचे तो नागेश ने उनसे पहला सवाल यही पूछा कि क्या उन्हें गेंदबाजी आती है। जब श्रेयस का इसका जवाब हां में दिया तो नागेश के चेहरे पर मुस्कान आ गई। इस प्रकार श्रेयस फिल्म का हिस्सा बने। फिल्म में इकबाल के कोच की भूमिका में अभिनेता नसीरूद्दीन शाह को कास्ट किया गया। नागेश जानते थे कि नसीरुद्दीन शाह एक महान अभिनेता हैं। मगर मूडी होने के कारण उनके साथ करने में चुनौतियां भी थीं। लेकिन धैर्य का परिचय देते हुए नागेश ने बेहतरीन ढंग से काम किया।
यहां एक मजेदार बात यह रही कि यह श्रेयस तलपड़े की पहली फिल्म थी। इसलिए सभी की कोशिश थी कि श्रेयस नर्वस महसूस न करें। इसलिए जब शूटिंग शुरु होने वाली थी तो नागेश ने श्रेयस से कहा कि नसीरुद्दीन शाह थोड़े मूडी अभिनेता हैं। इसलिए यदि काम करते हुए उन्हें कोई दिक्कत होती है तो वह बेझिझक उन्हें बता सकते हैं। ऐसे नहीं होना चाहिए कि श्रेयस काम करते हुए असहज महसूस करें और इस कारण उनकी प्रस्तुति पर असर पड़ जाए।
ठीक इसी तरह जब नसीरुद्दीन शाह सेट्स पर आए तो उन्होंने श्रेयस तलपड़े को अपने पास बुलाया और कहा कि यह उनकी पहली फिल्म है इसलिए थोड़ी बेचैनी होना सामान्य बात है। नसीर ने कहा कि नागेश एक अनुभवी निर्देशक हैं, जो कई फिल्में बना चुके हैं। मगर थोड़े मूडी हैं। इसलिए यदि श्रेयस को कोई बात असहज करे तो वह बेझिझक उन्हें बता सकते हैं। नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि वह हर तरह से श्रेयस का सहयोग करेंगे।
इसी सहयोग से फिल्म इकबाल की शूटिंग सम्पन्न हुई और रिलीज होने पर इसने सफलता हासिल की। यह सफलता इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि एक सामाजिक मुद्दे पर आधारित कलात्मक फिल्म का बॉक्स ऑफिस पर सफल होना मुश्किल माना जाता है। लेकिन इकबाल ने न केवल समीक्षकों और दर्शकों का दिल जीता बल्कि कमाई के मामले में भी कामयाबी हासिल की।