भारतीय सिनेमा जगत के महान अभिनेता - निर्देशक राज कपूर ने जब एक मुशायरे में कवि शैलेन्द्र की कविता " जलता है पंजाब " सुनी तो वे उनके मुरीद हो गए। राज कपूर उन्हीं दिनों अपनी फिल्म" आग " के निर्माण में जुटे हुए थे।कविता " जलता है पंजाब " उन्हें अपनी फ़िल्म के लिए उचित लगी। राज कपूर को लगा कि अगर शैलेन्द्र यह कविता फ़िल्म के लिए देने को राज़ी हो गए तो उनकी फ़िल्म रचनात्मक रूप से और बेहतर, मज़बूत हो जाएगी।
इसी मंशा के साथ राज कपूर साहब कवि शैलेन्द्र के पास पहुंचे। उन्होंने अपनी योजना शैलेन्द्र के साथ कह सुनाई। पूरी बात सुनकर शैलेन्द्र बोले " मुझे फ़िल्म जगत से जुड़ने का कोई मन नहीं है, मुझे माफ़ कीजिए"। राज कपूर हमेशा कलाकारों की इज़्ज़त करते थे। उन्होंने भी कोई दबाव नहीं बनाया।
शैलेन्द्र उन दिनों, मुंबई शहर में लेफ़्ट विचारधारा के प्रमुख केन्द्र थे। फ़िल्म जगत को पूंजीवाद का केंद्र समझा और जाना जाता था। इस कारण शैलेन्द्र और फ़िल्म जगत साथ चलने वाले यात्री नहीं थे। यही कारण है कि शैलेन्द्र ने राज कपूर का ऑफ़र ठुकरा दिया था।
वक़्त बीता। कवि शैलेन्द्र की पत्नी गर्भवती हुईं। शैलेन्द्र की कमाई उस तरह से नहीं थी कि वह अपनी पत्नी का ख़्याल अच्छी तरह से रख पाते।उनका मन विचलित हो उठा। शैलेन्द्र को लगा कि अगर वह अपनी पत्नी को इस अवस्था में थोड़ा सा सुख न दे पाएं तो उनके पति धर्म का पालन नहीं होगा।इसी सोच के साथ शैलेन्द्र पहुंच गए राज कपूर के ऑफिस।
शैलेन्द्र ने अपनी स्थिति राज कपूर से कही और राज कपूर की आगामी फ़िल्म " बरसात " के लिए दो गीत लिखे। इसके बदले में राज कपूर ने शैलेन्द्र को पांच सौ रुपए दिए।यह बात 1949 की है।पांच सौ रुपए में कवि शैलेन्द्र की पत्नी की देखभाल बहुत अच्छे से हो सकती थी।कवि शैलेन्द्र ने पैसे रखे और घर चले आए।
शैलेंद्र को राज कपूर का यह बड़प्पन रास आया।उन्हें महसूस हुआ कि कल जिस राज कपूर को उन्होंने मुंह पर मना कर दिया था, वही राज कपूर आज उनके काम आए हैं।शैलेंद्र को महसूस हुआ कि राज कपूर कलाकारों का सम्मान करने वाले मनुष्य हैं तब से शैलेन्द्र बतौर गीतकार राज कपूर साहब के साथ जुड़ गए और दोनों ने दर्शकों को कई सुपरहिट गीत दिए।