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बॉलीवुड का सामने आया बाहरी-भीतरी संघर्ष, सुुशांत के मौत ने खोले कई राज

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के दुखद प्रकरण के पश्चात वही पुराने प्रश्न खड़े हो गए हैं...
बॉलीवुड का सामने आया बाहरी-भीतरी संघर्ष, सुुशांत के मौत ने खोले कई राज

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के दुखद प्रकरण के पश्चात वही पुराने प्रश्न खड़े हो गए हैं जिनसे बॉलीवुड दशकों से जूझता रहा है। बाहरी और भीतरी के सवाल पर उपजे विवाद के बाद भारतीय फिल्मोद्योग की कार्यशैली आलोचकों के निशाने पर है। इंडस्ट्री की कई नामचीन हस्तियों पर भाई-भतीजावाद के आरोप लग रहे हैं। कहा जा रहा है कि प्रतिभा की अनदेखी कर वे न सिर्फ अपने खेमे के दरबारी कलाकारों और तकनीशियनों को मौका देते हैं बल्कि दूसरों की प्रगति के मार्ग में बाधाएं भी उत्पन्न करते हैं, खासकर उनकी जो अपने बलबूते आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं।  इसका शिकार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सुशांत जैसे प्रतिभाशाली अभिनेता होते हैं।

मुंबई पुलिस 34 वर्षीय सुशांत की आत्महत्या से जुड़े हर पहलू की जांच कर रही है और उसका कहना है कि दिवंगत अभिनेता के बांद्रा स्थित घर से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है। इसीलिए उनके उठाए गए कदम के संभावित कारणों पर फिलहाल कोई टिप्पणी करना गैर-वाजिब होगा। लेकिन सोशल मीडिया पर उनके प्रशंसक और हितैषी बॉलीवुड के कथित मठाधीशों को ही पूर्ण रूप से इसका जिम्मेदार मानते हैं। शेखर कपूर, कंगना रनौत और रवीना टंडन जैसी कई हस्तियों ने इंडस्ट्री के भीतर बढ़ती खेमेबाजी की बात स्वीकारी है।

ब्योमकेश बक्‍शी

सुशांत के असमय जाने की वजह जो भी रही हो, इसमें कोई शक नहीं है कि पिछले छह महीने में उन्हें किसी बड़ी फिल्म का कॉन्ट्रैक्ट नहीं मिला था। एक ऐसी इंडस्ट्री जहां हर शुक्रवार को सितारों की तकदीरें लिखी और मिटाई जाती हैं, के लिए यह नार्मल न था क्योंकि सुशांत की छिछोरे पिछले वर्ष की बड़ी हिट फिल्मों में एक थी। अमूमन एक फिल्म की व्यावसायिक सफलता के बाद उससे जुड़े हर कलाकार, विशेषकर हीरो और हीरोइन की मांग बढ़ जाती है, लेकिन सुशांत के साथ ऐसा न हुआ। सोशल मीडिया में यह चर्चा भी जोरों पर है कि छिछोरे के बाद मिली छह फिल्में उनके हाथ से एक के बाद एक निकल गईं क्योंकि इंडस्ट्री का एक शक्तिशाली खेमा उनकी प्रगति से नाखुश था। इसके कारण उन्हें मानसिक अवसाद से गुजरना पड़ा और वह इसका इलाज करा रहे थे। आरोप यह भी है कि सुशांत ने कई मशहूर निर्माता-निर्देशकों की फिल्में ठुकरा कर उनसे दुश्मनी मोल ले ली थी। 

सुशांत कोई नवोदित या संघर्षरत अभिनेता न थे जिन्हें सफलता छिछोरे के प्रदर्शित होने के बाद मिली। निर्देशक नितेश तिवारी की फिल्म के पूर्व उन्हें काय पो चे! (2013), एम.एस. धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी (2016) और केदारनाथ (2018) में स्टारडम मिल था चुका था। उनका शुमार अपनी पीढ़ी के पांच शीर्ष युवा अभिनेताओं में होता था। दरअसल फिल्मों से पूर्व टेलीविजन सीरियल, पवित्र रिश्ता (2009) से ही उन्होंने घर-घर में पहचान बना ली थी। हाल के वर्षों में सुशांत शेखर कपूर के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पानी पर काम करने के लिए काफी उत्साहित थे लेकिन यह फिल्म ठंडे बस्ते में चली गई थी जिसके कारण वह काफी निराश थे। लेकिन ऐसी निराशा होना इंडस्ट्री के कलाकारों के लिए नई बात नहीं रही है।

शुद्ध देसी रोमांस में सुशांत की अदाकारी भायी

अपनी स्थापना के बाद से ही फिल्मोद्योग विभिन्न खेमे में बंटा रहा है, हालांकि पिछले कुछ सालों से भीतरी और बाहरी के बीच की खाई निरंतर बढ़ती हुई प्रतीत होती है। इसके कारण इंडस्ट्री में नकारात्मकता और वैमनस्यता बढ़ती दिखती है। राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम के शब्दों में कहें तो यह उद्योग अब कला के बजाय व्यवसाय पर ध्यान देता है और जहां कहीं भी व्यवसाय आ जाता है, वहां काफी तेज स्पर्धा होती ही है। इसके बावजूद ऐसे कलाकारों की कमी नहीं रही है जिन्होंने बिना गॉडफादर के अपनी पहचान स्थापित की है। मनोज वाजपेयी, पीयूष मिश्रा, पंकज त्रिपाठी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, हाल ही में दिवगंत हुए इरफान खान ऐसे कलाकार हैं जिन्हें किसी खास खेमे से जोड़ कर देखा नहीं जा सकता। माधुरी दीक्षित से राधिका आप्टे तक कई ऐसी अभिनेत्रियां भी हुई हैं जिन्होंने बिना फिल्मी पृष्ठभूमि के स्टार बन कर दिखाया।

दरअसल जहां भी पैसा और ग्लैमर होता है, वहां प्रतियोगिता बढ़ना निश्चित रूप से तय रहता है। कई बार कलाकारों को अच्छे मौके मिलने के बाद भी वे खुद को स्थापित नहीं कर पाते हैं। बॉलीवुड के लिए सिर्फ यही नहीं कहा जा सकता कि यहां फिल्मी परिवार के होने का फायदा मिलता है। बेशक इससे बॉलीवुड में इंट्री आसान हो जाती है लेकिन अंत में वह दर्शक ही है जो तय करता है कि वह अभिषेक बच्चन के बजाय राजकुमार राव को देखना पसंद करेगा। अगर सिर्फ फिल्मी घराने ही महत्वपूर्ण होते तो आज उदय चोपड़ा सबसे बड़े स्टार होते। राज कपूर के तीनों बेटों में से दो रणधीर और राजीव कपूर कुछ खास नहीं चले। देव आनंद, राजेंद्र कुमार, मनोज कुमार, फिरोज खान जैसे दिग्गज अभिनेताओं के बेटे भी असफल रहे।

अभिनेता पीयूष मिश्रा कहते हैं, मुझे तो कभी नहीं लगा कि यहां कोई नेपोटिज्म है। न कभी किसी ने मेरा कॉन्ट्रैक्ट रोका, न कम पैसे दिलाए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हर उद्योग की तरह ये भी उद्योग है। इसलिए इसे इसी नजर से देखा जाना चाहिए। मैं तो एक ही बात कहता हूं, लालसा का कोई अंत नहीं। जब कोई संघर्ष करता है तो उसे लगता है, काम कम मिलेगा, काम मिलता है तो लगता है, स्टार कब बनेंगे, स्टार बन गए तो लगता है, स्टारडम कब तक टिकेगा। हर कलाकार के जीवन में बुरा दौर आता है और उससे उबरना सीखना चाहिए। अमिताभ बच्चन से ज्यादा बुरा दौर किसी ने देखा है क्या लेकिन आज देखिए वे कहां हैं।

फिल्म पत्रकार रवि बुले कहते हैं कि किसी भी स्टार किड का सोशल मीडिया अकाउंट देख लीजिए। इन लोगों के फॉलोअर्स की कोई कमी नहीं रहती। एक फोटो पर लाइक कमेंट की बारिश होती है। पहले भी फिल्म कलाकारों के बच्चे इस दुनिया में कदम रखते थे। लेकिन अब तो माना ही जाने लगा है कि स्टार का बेटा या बेटी है तो फिल्म में आएगा ही। और स्टार या बड़ा कलाकार भी अपने बच्चों को वैसे ही पेश करता है जैसे वह आने वाले दिनों का स्टार ही है। बॉलीवुड में सबसे पहले धूमधाम से होने वाली लॉन्चिंग में कुमार गौरव को नहीं भुलाया जा सकता। बेहतरीन लॉन्चिंग के बाद भी कुमार गौरव वन-फिल्म वंडर (लव स्टोरी/1981) ही साबित हुए। यदि सिर्फ लॉन्चिंग से ही बात बनने लगे तो कैसेट किंग गुलशन कुमार ने अपने भाई किशन कुमार की लॉन्चिंग में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी थी। नेपोटिज्म बुरा है, इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए लेकिन बॉलीवुड में आखिर में प्रतिभा ही काम आती है। विनोद अनुपम कहते हैं, जो कलाकार बॉलीवुड की ग्रामर में फिट नहीं बैठता उसे बाहर होना पड़ता है। सुशांत इस ग्रामर में फिट हुए या नहीं, इस पर सबका अपना-अपना नजरिया है। पुलिस अनुसंधान के परिणाम आने के बाद मुमकिन है कि इस विषय पर कुछ स्पष्ट हो, लेकिन भारतीय फिल्म उद्योग में अब कलाकार का सपना कुछ नहीं है, जो है वह उद्योग का सपना है। आपको उसी के अनुसार खुद को ढालना है। बॉलीवुड की पहली शर्त उसके सामने समर्पण है। बात तभी बनती है। किसी भी कलाकार को यह समझना होगा कि यहां खुद के सपनों के साथ जीना कठिन है। सफल होने के लिए हर हाल में उसकी आंखों में बॉलीवुड के ही सपने होने चाहिए।

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