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व्यक्तिगत आक्षेप एवं फूहड़ता से दूर रहकर हास्य पैदा करने वाले कलाकार राजू श्रीवास्तव

श्रद्धांजलि : राजू श्रीवास्तव ( 1963 - 2022)    वर्तमान समय की लोकप्रिय हास्य विधा स्टैंड अप कॉमेडी के...
व्यक्तिगत आक्षेप एवं फूहड़ता से दूर रहकर हास्य पैदा करने वाले कलाकार राजू श्रीवास्तव

श्रद्धांजलि : राजू श्रीवास्तव ( 1963 - 2022) 

 

वर्तमान समय की लोकप्रिय हास्य विधा स्टैंड अप कॉमेडी के चर्चित होने से पूर्व, हास्य जगत में राजू श्रीवास्तव नाम के एक कलाकार का उदय हुआ, जिसने सम्पूर्ण मनोरंजन जगत में यह उदाहरण पेश किया कि बगैर द्विअर्थी संवाद, व्यक्तिगत आक्षेप और फूहड़ता के भी हास्य पैदा करना संभव है। 

 

राजू श्रीवास्तव जिनका आज दिल्ली एम्स में 58 वर्ष की आयु में निधन हो गया, हिन्दी सिनेमा में तब शामिल हुए, जब फिल्मों में हास्य कलाकारों की उपस्थिति केवल फिल्म के गंभीर माहौल को सामान्य करने के लिए होती थी। इससे अधिक न ही हास्य कलाकारों का महत्व होता था और न ही कलाकारों में ऐसी विविधता होती थी कि निर्देशक उन्हें परंपरा के विपरीत जाकर अवसर दे। 

 

राजू श्रीवास्तव ने अपनी शुरूआत दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले हास्य कार्यक्रमों से की। उनका हास्य छोटे कस्बों, गांव की विषमताओं, परिस्थितियों से जन्म लेता था। नब्बे के दशक में जब राजू श्रीवास्तव कानपुर से मुुंबई पहुंचे तब बॉलीवुड में फूहड़, द्विअर्थी और बेमतलब की कॉमेडी का बोलबाला था। जॉनी वॉकर, महमूद, असरानी, मुकरी, जगदीप जैसे हिन्दी सिनेमा के हास्य पुरोधाओं का दौर समाप्त हो चुका था और गोविंदा जैसे मुख्य अभिनेताओं ने ही हास्य अभिनेता की भूमिका भी निभानी शुरु कर दी थी। 

 

 

इसके साथ ही, जिस तरह का सिनेमा नब्बे के दशक में बन रहा था, उसमें हास्य कलाकारों के लिए बहुत अधिक गुंजाइश भी नहीं थी। डेविड धवन जैसे कामयाब कमर्शियल फिल्म निर्देशकों को छोड़कर बाकी सभी प्रमुख फिल्मकार संगीत से सजी प्रेम कहानियों के निर्माण में लगे हुए थे। डेविड धवन के पास गोविन्दा, कादर खान, जॉनी लीवर, शक्ति कपूर की जबरदस्त टीम थी, जो साजन चले ससुराल, कुली नंबर वन जैसी सुपरहिट फिल्में दे रही थी। इसके साथ ही बड़े कलाकार अंदाज अपना अपना, आंखें, राजा बाबू, बड़े मियां छोटे मियां जैसी फिल्मों में हास्य किरदार निभा रहे थे। 

 

परंपरा में मामूली बदलाव तब देखने को मिला, जब नई शताब्दी की शुरूआत में निर्देशक प्रियदर्शन ने राजपाल यादव, ओम पुरी और परेश रावल जैसे कलाकारों को अपनी फिल्मों में हास्य भूमिकाएं दीं। लेकिन उस समय भी मुख्य हास्य किरदार अक्षय कुमार, सुनील शेट्टी और अजय देवगन जैसे एक्शन हीरो निभा रहे थे। इस तरह से मूल हास्य अभिनेताओं के लिए सिनेमा की मुख्यधारा में अधिक अवसर नहीं थे। 

 

 

इन प्रतिकूल परिस्थितियों में राजू श्रीवास्तव ने अपनी प्रतिभा के मंचन के लिए टीवी रियलिटी शोज को चुना। उन्होंने भारतीय राजनेताओं और अभिनेताओं की जबरदस्त मिमिक्री से अपनी पहचान बनाई। अमिताभ बच्चन और लालू प्रसाद यादव की मिमिक्री ने राजू श्रीवास्तव को हिंदुस्तान के घर घर में पहुंचा दिया। सबकी जबान पर राजू श्रीवास्तव का नाम चढ़ चुका था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि किसी भी अभिनेता और राजनेता ने कभी राजू श्रीवास्तव की मिमिक्री से खुद को अपमानित महसूस नहीं किया। इसके पीछे एक ही वजह थी और वह यह कि अन्य हास्य कलाकारों की तरह राजू श्रीवास्तव ने कभी निम्न स्तर की कॉमेडी नहीं की। न ही अपनी कॉमेडी का आधार अश्लील, फूहड़, द्विअर्थी विषयों को बनाया। कपिल शर्मा जैसे कई छोटे शहर और मध्यम वर्गीय परिवारों से आए हास्य कलाकारों के लिए राजू श्रीवास्तव एक प्रेरणा भी रहे और एक मानक भी। 

 

राजू श्रीवास्तव ने अपना जीवन सामान्य आदमी की तरह जिया। उन्होंने जीवन का बहुत बारीकी से अध्ययन और निरीक्षण किया। यही कारण है कि उनके कॉमेडी एक्ट्स में एक गहराई देखने को मिलती थी। राजू श्रीवास्तव ने अपने मशहूर किरदार "गजोधर" में उन सभी तत्वों, अनुभवों, रंगों को शामिल किया, जो उन्होंने अपने जीवनकाल में देखे। यही कारण है कि हर आय, उम्र, पृष्ठभूमि की ऑडियंस को गजोधर के किरदार से आत्मीयता महसूस हुई। 

 

राजू श्रीवास्तव के किरदार जिन्दगी और जमीन से जुड़े हुए होते थे, जिस कारण हर व्यक्ति उनमें अपना अक्स ढूंढता था। इसी अदा के कारण राजू श्रीवास्तव को न केवल हास्य कलाकारो की बिरादरी में पसंद किया जाता था बल्कि जनता भी उन पर जान छिड़कती थी। जिस तरह का जुनून, दीवानगी, फैन फॉलोइंग राजू श्रीवास्तव को नसीब हुई, वैसी कामयाबी कम ही हास्य कलाकारों के हिस्से में आई। 

राजू श्रीवास्तव ने अपनी लकीर खींचते हुए यह संदेश दिया कि हास्य पैदा करने के लिए किसी भी भावनाओं को चोट पहुंचाना अनिवार्य नहीं है। यही सोच राजू श्रीवास्तव को अपने समकालीन कलाकारों से भिन्न करती है। 

 

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