Advertisement

रवीना टंडन ने अपने पिता को किया याद, जीवन से जुड़ी विशेष बातें की साझा

मैं पूरी तरह से ‘पापाज डॉटर’ हूं। उनकी ईमानदारी, विनम्रता, धैर्य और आत्मबल, उनके व्यक्तित्व में जो...
रवीना टंडन ने अपने पिता को किया याद, जीवन से जुड़ी विशेष बातें की साझा

मैं पूरी तरह से ‘पापाज डॉटर’ हूं। उनकी ईमानदारी, विनम्रता, धैर्य और आत्मबल, उनके व्यक्तित्व में जो कुछ भी था, उनसे मैंने सब सीखा, चाहे मेरी निजी जिंदगी में या करिअर का सबसे बुरा दौर चल रहा हो। मुझे याद है उसी दौर में वे एक बार मेरी फिल्म के सेट पर आए और एक बात कही। उन्होंने कहा कि एक बच्चा जब चलना सीखता है तो बहुत बार गिरता है, लेकिन वह पसर कर नहीं बैठ जाता बल्कि वह उठता है, अपने आप को समेटता है और छोटे-छोटे कदम तब तक लेता है जब वह ठीक से चलना नहीं सीख लेता है। जिंदगी में वैसे ही हमें अपने आप को समेट कर चलना सीखना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि हमें सिर उठाकर चलना सीखना होगा। जो कुछ भी वे कहते थे उसका गूढ़ अर्थ होता था और जिनका मुझ पर शुरुआती जिंदगी में काफी असर पड़ा। वे कहते थे कि आदमी हो या औरत, हमारी इज्जत हमारे ही हाथ में होती है। वे कहते थे कि जब तुम किसी से मिलो तो उनसे झुककर बड़े अदब से मिलो, लेकिन सामने वाला अगर तुम्हें झुकाने की कोशिश करे तो इतना भी नहीं झुको कि तुम्हारी रीढ़ की हड्डी टूट जाए और तुम वापस अपना कद न पा सको। वे कहते थे कि जब तुम सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ रहे हो तो उस समय लोगों के साथ विनम्रता से पेश आओ क्योंकि जब तुम उन्हीं सीढ़ियों से वापस नीचे उतरोगे तो वही लोग तुम्हारी सीढ़ी थामे रहेंगे।

 

मेरे पिता आगरा में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन फिल्मों में काम करने के जुनून के कारण वे उसे बीच में ही घर से भाग कर बम्बई आ गए। वे एक हाइकोर्ट जज के बेटे थे और डॉक्टर बनने की राह पर थे, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें शुरू में काफी संघर्ष करना पड़ा। साठ के दशक में उन्हें बतौर जूनियर आर्टिस्ट भी दो रुपये के मेहनताना पर काम करना पड़ा। एक ऐतिहासिक फिल्म की शूटिंग में उन्हें भाला पकड़कर एक भीड़ में खड़ा कर दिया गया जहां उन्हें एक लाइन का संवाद बोलना था। वे डायलॉग सही तरीके से नहीं बोल पाए। झल्लाकर निर्देशक ने कहा, लोग न जाने कहां-कहां से आ जाते हैं, और उन्हें सेट से बाहर करवा दिया।   

उसके बाद मेरे पिता निर्देशक आर. के. नैय्यर के सहायक बन गए और कुछ वर्षों के बाद उन्हें मनोज कुमार की फिल्म बलिदान (1971) को निर्देशित करने का मौका मिला। एक दिन जब वे शूटिंग कर रहे थे तो लंच ब्रेक में उन्हें जूनियर आर्टिस्टों के बीच एक चेहरा दिखा जो डकैत की वेशभूषा में खाना खा रहा था। अचानक उन्हें लगा कि उन्होंने उसे कहीं देखा है। अगले ही पल वे चौंक गए क्योंकि वह वही निर्देशक था जिसने अपनी फिल्म के सेट से उन्हें बाहर करवा दिया था। मेरे पिता उनके पास गए और बड़ी इज्जत से अपने पास ले आए। उन्होंने साथ-साथ खाना खाया। मेरे पिता ने उनसे कहा कि सर, मैं पहली बार एक फिल्म निर्देशित कर रहा हूं, जरा देखिए कि मैं ठीक कर रहा हूं या नहीं। यह सुनकर उनकी आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने मेरे पिता को कहा कि रवि, यह मेरी दुआ है, तुम बहुत आगे जाओगे। आज भी उस घटना को याद कर मेरी आंखों में आंसू आ जाते हैं। 

 

मेरा परिवार सबसे नॉन-फिल्मी था। रिटायर होने के बाद वे अपने नातियों के साथ समय बिताना और फार्मिंग करना पसंद करते थे। अगर उनके गुणों का दस प्रतिशत भी मुझमें आया हो तो मैं खुद को खुशकिस्मत समझूंगी और चाहूंगी कि उनके सारे गुण मेरे बच्चों में हों। 

(रवीना टंडन फिल्म अभिनेत्री हैं और उनके पिता रवि टंडन भी बीते जमाने के मशहूर फिल्मकार थे। गिरिधर झा से बातचीत पर आधारित)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad