7 अगस्त को गीतकार गुलशन बावरा की पुण्यतिथि होती है। 7 अगस्त सन 2009 को गुलशन बावरा का मुंबई में 72 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था। वह हिंदी के सफल गीतकार थे। हालांकि उन्होंने अपने समकालीन गीतकारों की तुलना में कम गीत लिखे लेकिन उनकी शोहरत और प्रतिभा अपनी पीढ़ी के गीतकारों से किसी मामले में कम नहीं थी।
विभाजन का दर्द झेला
गुलशन कुमार मेहता उर्फ गुलशन बावरा का जन्म पाकिस्तान के लाहौर के निकट शेखूपुरा प्रांत में हुआ। भारत के विभाजन के कारण गुलशन बावरा के परिवार ने भयंकर पीड़ा और त्रासदी झेली। गुलशन बावरा के पिता की उनकी आंखों के सामने हत्या कर दी गई। गुलशन बावरा की बहन तब जयपुर में रहती थीं। उन्होंने गुलशन बावरा को अपने साथ रखा और उनकी परवरिश की। गुलशन बावरा ने दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई की और फिर वेस्टर्न रेलवे में क्लर्क बनकर मुंबई आ गए।
संगीतकार कल्याणजी ने दिया पहला अवसर
गुलशन बावरा जब सन 1955 में मुंबई आए तो उन्होंने वेस्टर्न रेलवे में क्लर्क की नौकरी के साथ फिल्मों में गीत लेखन का काम हासिल करने के लिए संघर्ष शुरु किया। यह संघर्ष उन्हें संगीतकार कल्याण वीरजी शाह के पास ले गया। कल्याणजी ने गुलशन बावरा को फिल्म चंद्रसेना से ब्रेक दिया। गायिका लता मंगेशकर ने 23 अगस्त 1958 को गुलशन बावरा का लिखा गीत " मैं क्या जानू काहे लागे ये सावन मतवाला रे" रिकॉर्ड किया। इस तरह गुलशन बावरा की हिन्दी फिल्मों में बतौर गीतकार शुरूआत हुई।
फिल्म वितरक शांतिभाई पटेल ने दिया नाम गुलशन बावरा
कल्याणजी आनंदजी के संगीत से सजी फिल्म "सट्टा बाजार" में गुलशन बावरा ने 3 गीत लिखे थे। दिलचस्प बात यह है कि इस फिल्म में गीत लिखने के लिए गुलशन बावरा के साथ गीतकार शैलेंद्र, हसरत जयपुरी, इंदीवर को भी साइन किया गया था। उस समय तक गुलशन बावरा अपने असली नाम गुलशन कुमार मेहता से ही जाने जाते थे।जब फिल्म के वितरक शांतिभाई पटेल ने गुलशन बावरा के लिखे गए गीत सुने तो वह बेहद प्रभावित हुए। तब तक शांतिभाई पटेल की गुलशन बावरा से मुलाकात नहीं हुई थी। जब शांतिभाई पटेल ने गुलशन बावरा को देखा तो वह चकित रह गए। इसका कारण यह था कि गुलशन बावरा ने रंग बिरंगे कपड़े पहने हुए थे, जिसे देखकर शांतिभाई पटेल के मन में यह प्रश्न उठा कि यह बावला सा दिखने वाला लड़का कैसे इतने गहरे अर्थ वाले गीत लिख सकता है। खैर शांतिभाई पटेल को गुलशन बावरा का स्वभाव पसंद आया और उन्होंने गुलशन बावरा का नाम गुलशन कुमार मेहता से बदलकर गुलशन बावरा रख दिया। फिल्म के गीत खूब पसंद किए गए और गुलशन बावरा ने सफलता की सीढ़ी चढ़नी शुरू कर दी। मजेदार बात यह है कि फिल्म में चार गीतकार होने के बावजूद फिल्म के पोस्टर पर निर्देशक, संगीतकार के साथ केवल गुलशन बावरा का नाम बतौर गीतकार छपा हुआ था।
मनोज कुमार की फिल्म में देशभक्ति गीत लिखकर हुए हिट
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 'जय जवान, जय किसान' का नारा दिया था। लाल बहादुर शास्त्री चाहते थे कि मनोज कुमार इस नारे से प्रेरणा लेते हुए एक फिल्म बनाए। मनोज कुमार राष्ट्र प्रेम पर आधारित फिल्में बनाने के मशहूर थे। मनोज कुमार ने शास्त्री जी के निवदेन पर फिल्म उपकार बनाई। इस फिल्म के गीत गुलशन बावरा ने लिखे और संगीत कल्याणजी आनंदजी ने दिया। गुलशन बावरा का लिखा गीत " मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती" पूरे देश में लोकप्रिय हो गया। इसकी गिनती श्रेष्ठ देशभक्ति गीतों में होने लगी। फिल्म उपकार के इस गीत के लिए गुलशन बावरा को फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
जब रफी साहब ने किया गुलशन बावरा के लिए प्लेबैक
प्रकाश मेहरा की फिल्म जंजीर के लिए गुलशन मेहता ने एक गीत लिखा था। गीत के बोल थे "दीवाने हैं दीवानों को न घर चाहिए"। यह गीत फिल्म में गुलशन बावरा पर फिल्माया जाना था। जब गीत की रिकॉर्डिंग हुई तो लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी ने इस गाने को गाया। गाने की रिकॉर्डिंग के बाद मोहम्मद रफी स्टूडियो से घर की तरफ जाने लगे। तभी संगीतकार कल्याणजी ने बताया कि गाने में लता मंगेशकर से हल्की सी चूक हुई है और इस कारण दोबारा से गाना रिकॉर्ड करना होगा। वो रमजान के दिन थे और रफी साहब के रोजे चल रहे थे। रफी साहब को घर जाना था इसलिए उन्होंने गाने को दोबारा रिकॉर्ड करने से मना कर दिया। तब गुलशन बावरा भागते हुए मोहम्मद रफी के पास आए और बोले " रफी साहब, आप जानते हैं कि इस गीत को फिल्मी पर्दे पर कौन गाने वाला है ?।" रफी साहब ने झुंझलाए स्वर में गुलशन बावरा से कहा " क्या दिलीप कुमार गा रहा है?"। तब गुलशन बावरा ने विनम्र स्वर में जवाब दिया " नहीं पाजी, आपका ये खादिम इस गाने को फिल्मी पर्दे पर गाने जा रहा है"। यह सुनते ही रफी साहब खुश हो गए और अपनी गाड़ी से उतरकर स्टूडियो में गए और गाने को फिर से रिकॉर्ड किया।
राहुल देव बर्मन के साथ थी गहरी दोस्ती
संगीतकार राहुल देव बर्मन और गुलशन बावरा के बीच गहरी दोस्ती थी। दोनों एक दूसरे से बेहद लगाव रखते थे। गुलशान बावरा अक्सर कहते थे कि मुझे चाहे ब्रेक कल्याणजी आनंदजी ने दिया लेकिन मेरी आत्मा राहुल देव बर्मन के पास ही सुकून पाती है। दोनों के जीवन से जुड़ा एक किस्सा सुना और सुनाया जाता है। निर्देशक राज सिप्पी फिल्म " सत्ते पे सत्ता" का निर्माण कर रहे थे। फिल्म में सात अभिनेता और उनके अपोजिट सात अभिनेत्रियां काम कर रही थीं। फिल्म के गीतकार गुलशन बावरा और संगीतकार राहुल देव बर्मन थे। फिल्म की कहानी को लेकर राहुल देव बर्मन के घर एक मीटिंग हुई और उसके बाद सब अपने घर चले गए। रह गए तो केवल गुलशन बावरा और राहुल देव, जिन्हें गीत संगीत निर्माण करना था। एक पल के लिए गीतकार गुलशन बावरा एकदम शांत, ख़ामोश बैठ गए। गुलशन बावरा को खामोश देखकर राहुल देव बर्मन बोले "क्या बात गुल्लु, तुमको कहानी पसंद नहीं आई?"। इसके जवाब में गुलशन बावरा बोले " नहीं यार, कहानी तो बहुत अच्छी है मगर मैं ये सोच रहा हूँ कि सात हीरो और सात हीरोइनों के लिए मैं गाने कैसे लिखूंगा। इतने सारे किरदार, जो एक दूसरे से बिलकुल जुदा हैं,उनके लिए तो भजन या कव्वाली ही लिखी जा सकती है,फ़िल्मी गीत नहीं। इस बात को सुनकर राहुल देव बर्मन मुस्कुराए और बोले " अरे गुल्लु,चिंता की कोई बात नहीं, हम दोनों बस एक एक करके किरदारों को उनके स्वाभाव के हिसाब से परखेंगे और उसी सिचुएशन पर गाने बनाएंगे। बस ध्यान ये रहे कि हम दोनों क़लम और हारमोनियम के साथ ज़्यादा पहलवानी न दिखाएँ। दोनों ने मिलकर गाने बनाने शुरू किए। पहला गीत तैयार हुआ " दिलबर मेरे कब तक मुझे ऐसे ही तड़पाओगे "। फिर एक एक करके सभी गीत तैयार हुए। फिल्म जब रिलीज हुई तो इसके गीत बेहद लोकप्रिय हुए और इसका सेहरा गुलशन बावरा और राहुल देव बर्मन के सिर पर बंधा।