नब्बे के दशक की शुरुआत में कई गायक अपने नाम बना रहे थे। कुमार सानू फ़िल्म आशिक़ी के गीतों से रातों रात सुपरस्टार बन चुके थे। उदित नारायण का भी अच्छा नाम बन गया था। किशोर कुमार के पुत्र अमित कुमार का गायन कैरियर अनिश्चितता के दौर से गुज़र रहा था। ऐसे में एक और गायक अभिजीत भट्टाचार्य अपनी ज़मीन तलाश रहे थे।
अभिजीत एक दिन संगीत निर्देशक आनंद- मिलिंद के साथ रिकॉर्डिंग स्टूडियो में थे। आनंद मिलिंद को फिल्म बागी के गाने रिकॉर्ड करने थे। गाने के लिए गायक अमित कुमार का इंतज़ार हो रहा था। मगर किसी कारणवश अमित कुमार कोलकाता में थे और उनका मुंबई आना संभव नहीं हो पा रहा था।
ऐसी परिस्थिति में आनन्द - मिलिंद को ख़्याल आया कि फ़िल्म का एक गीत " चांदनी रात है " अभिजीत से गवा कर देखा जाए। यदि डब करने पर गीत ठीक लगता है तो उसे रख लिया जाएगा अन्यथा अमित कुमार के गाए गीत को फिल्म में शामिल करने का विकल्प तो था ही। इसी सोच के साथ अभिजीत की आवाज में गाना रिकॉर्ड किया। चूंकि अभिजीत सिर्फ़ एक मौक़े की तलाश में थे इसलिए उन्होंने अपनी जान झोंक दी। गाना सुनकर आनन्द मिलिंद को लगा कि इससे बेहतर इस गाने को और कोई नहीं गा सकता। "चांदनी रात है" के रिकॉर्ड होने के बाद, कुछ और गाने अभिजीत की आवाज़ में रिकॉर्ड हुए। फ़िल्म बागी के यह गीत हिट रहे और मुंबई फ़िल्म इंडस्ट्री के आसमान पर एक नए सितारे " अभिजीत भट्टाचार्य " का जन्म हुआ।