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कैसे इश्क की मशहूर गजल "प्यार का पहला खत" लिखी गई

बात उस दौर की है, जब जगजीत सिंह ने गजल को महफिलों से निकालकर आम आदमी की जिन्दगी का हिस्सा बना दिया था।...
कैसे इश्क की मशहूर गजल

बात उस दौर की है, जब जगजीत सिंह ने गजल को महफिलों से निकालकर आम आदमी की जिन्दगी का हिस्सा बना दिया था। इससे पहले गजल कुछ खास बौद्धिक और साधन संपन्न बिरादरी के लोगों का मनोरंजन बनकर रह गई थी। जगजीत सिंह की कोशिश रहती थी कि देशभर से अच्छे से अच्छे गजलकार की रचना को वह गाएं। तभी देश के कोने कोने की भावनाएं सामने आ पाएंगी। इसी विचार के साथ जगजीत सिंह ने अपने साथी कलाकार और मित्र शायर सुदर्शन फाकिर से कहा कि वह देशभर के अच्छे शायरों की चुनिंदा शायरी को लेकर आएं, जिससे कि अगली गजल एल्बम की खूबसूरती में इजाफा हो। सुदर्शन फाकिर ने जगजीत सिंह की बात मानते हुए गजल एल्बम के लिए शायरी चुनने की प्रक्रिया शुरु कर दी। 

 

 

 

इस सब से बेखबर, मुम्बई में एक दुकान थी, जो फिल्मी दुनिया में संघर्ष कर रहे शायरों, कलाकारों का ठिकाना बन गई थी। दुकान के मालिक हस्तीमल हस्ती खुद शायरी के शौकीन थे। वह गजल लेखन में धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे। मगर कारोबार की भाग दौड़ के कारण, उन्हें यह फुरसत नहीं थी कि वह फिल्मी दुनिया या कवि सम्मेलन में शामिल हो सकें। उनके कुछ दोस्त हिन्दी सिनेमा में गीतकार थे। इस कारण उनकी दुकान में अक्सर गीत, गजल की बैठकें होती थीं, जिनमें फिल्मी गीतकार और संघर्ष कर रहे शायर शरीक होते थे। कलाकारों को चाय, शायरी का माहौल मिल जाता और इसी बहाने से हस्तीमल हस्ती कुछ पल शेर -ओ -सुखन की दुनिया में बिता लेते। 

 

 

इसी सब में एक रोज़ हस्तीमल हस्ती,अपनी बालकनी में बैठकर, मन में आ रहे ख्यालों को लिख रहे थे। वह गजल की पहली दो लाइनें, जिसे गजल की भाषा में "मतला" कहते हैं, लिख चुके थे। पहला शेर लिखने की कोशिश चल रही थी।हस्तीमल हस्ती कागज पर कुछ लिखते और फिर उसे काट देते। वह बात नहीं बन रही थी कि पढ़कर संतुष्टि महसूस हो। तभी हस्तीमल हस्ती के दिमाग में एक लाइन आई। “ जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था, लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है”। उन्होंने जैसे ही इस लाइन कोकागज पर लिखा, वह ख़ुशी से उछल पड़े। उन्होंने जब आँखें बंद कर लीं तो उन्हें ऐसा महसूस होने लगा कि वह बहुत ऊपर उठते चले जा रहे हैं। यह अद्भुत अनुभव था। हस्तीमल हस्ती ने गजल के बाकी शेर लिखे। उनके भीतर गजब का संतोष था। इस शायरी के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की थी। कारोबार की दौड़ भाग से समय निकालकर हस्तीमल हस्ती ने गजल लेखन की बारीकियां सीखी थीं। इसमें उनकी मदद फिल्मी गीतकार मदन पाल ने की थी। मदन पाल ने गीत "चेहरा क्या देखते हो, दिल में उतर कर देखो न" लिखा, जिससे उन्हें पहचान मिली। लगन और निरंतर रियाज से, हस्तीमल हस्ती आहिस्ता आहिस्ता गजल के फन को समझने लगे। इस तरह उन्होंने गजल"प्यार का पहला खत " लिखने में कामयाबी हासिल की। 

 

गजल लिखने के बाद हस्तीमल हस्ती अपनी दुकान और कारोबार में मसरूफ हो गए। एक रोज उनकी दुकान पर हिन्दी कवि सम्मेलन के बड़े कवि आश करण अटल पधारे। आश करण अटल को देखकर हस्तीमल हस्ती प्रसन्न हुए। बातचीत के बाद हस्तीमल हस्ती ने आश करण अटल से कहा कि उन्होंने एक नई गजल लिखी है, जिसे वह सुनाना चाहते हैं। चाय मंगाई गई और गजल सुनाने का सिलसिला शुरू हुआ।

 

जब आश करण अटल ने गजल सुनी तो बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने हस्तीमल हस्ती से कहा कि गजल बेहद शानदार हुई है। हस्तीमल हस्ती को यह सुनकर बड़ी प्रसन्नता हुई। आश करण अटल ने जाते जाते हस्तीमल हस्ती से कहा कि एक कागज पर गजल लिखकर दें। हस्तीमल हस्ती ने कागज पर गजल लिख दी। आश करण अटल दुकान से चले गए। 

 

इस घटना के कुछ दिन बाद, हस्तीमल हस्ती की दुकान पर शायर सुदर्शन फ़ाकिर आए।उनकी नज़्म “ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो” जगजीत सिंह ने गाई थी, जो बेहद लोकप्रिय हुई थी। जब हस्तीमल हस्ती ने सुदर्शन फाकिर को अपनी दुकान में देखा तो बहुत खुश हुए। सुदर्शन फाकिर ने दुकान में आते ही हस्तीमल हस्ती से कहा "तुमने जो गजल आश करण अटल को लिखकर दी है, उसे जरा सुनाओ"। एक क्षण के लिए हस्तीमल हस्ती घबरा गए। फिर उन्होंने गजल सुनाई।गजल सुनकर सुदर्शन फाकिर खुश हो गए। उन्होंने हस्तीमल हस्ती की तारीफ करते हुए बताया कि आश करण अटल ने जब उन्हें गजल सुनाई तो वह आश्चर्य से भर उठे। उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि हस्तीमल ऐसी शानदार गजल लिख सकते हैं। इसलिए उन्होंने खुद दुकान पर आकर गजल सुनने का निर्णय लिया। सुदर्शन फाकिर की तारीफ सुनकर हस्तीमल हस्ती भावुक हो गए। उनके पास अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं थे। सुदर्शन फाकिर ने हस्तीमल हस्ती से यह भी कहा कि जगजीत सिंह अपनी नई गजल एल्बम के लिए अच्छी शायरी की तलाश में हैं और अच्छी शायरी चुनने की जिम्मेदारी जगजीत सिंह ने उन्हें सौंप रखी है। सुदर्शन फाकिर ने हस्तीमल हस्ती को यह भरोसा दिलाया कि वह जगजीत सिंह को उनकी लिखी गजल जरुर सुनाएंगे। सुदर्शन इतना कहकर दुकान से चले गए और हस्तीमल हस्ती के दिल में उम्मीद का एक दिया जलने लगा। 

 

सुदर्शन फाकिर ने जब हस्तीमल हस्ती की गजल जगजीत सिंह को सुनाई तो उन्हें गजल पसंद आई। जगजीत सिंह ने गजल को अपनी गजल एल्बम में शामिल करने का निर्णय लिया। इस बात की खबर जब हस्तीमल हस्ती को मिली तो उन्हें यकीन नहीं हुआ। उनके ख्वाब हकीकत में बदल गए थे। उनकी गजल को जगजीत सिंह गा रहे थे। 

गजल एल्बम की रिलीज से एक रोचक प्रसंग जुड़ा हुआ है। जब एल्बम रिलीज हुई तो नाम रखा गया "फेस टू फेस”। एल्बम में कुल 8 गजलें थीं। एल्बम के दोनों तरफ यानी 4 -4 गजलें थीं। हस्तीमल हस्ती की गजल दूसरी तरफ़ थी और वह भी दूसरे नंबर पर। यानी उनकी गजल छठी गजल थी एल्बम में। यह देखकर हस्तीमल हस्ती थोड़े उदास हो गए। उन्हें लगा कि कौन वहां तक जाकर उनकी गजल सुनेगा। 

 

लेकिन नसीब का लिखा,मिलकर रहता है। हस्तीमल हस्ती की गजल इतनी सुपरहिट हुई कि म्यूजिक कंपनी ने एल्बम को दोबारा रिलीज करने का निर्णय लिया। एल्बम का नया नाम था “ प्यार का पहला ख़त” और इस बार हस्तीमल हस्ती की गजल एल्बम में पहले नंबर पर थी। इस तरह एक गुमनाम शायर, एक कारोबारी को उसके समर्पण, जुनून का फल रहा और इश्क करने वालों को "प्यार का पहला खत" के रुप में बेहतरीन हमराज, साथी मिला। 

 

 

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