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फिल्म: आदर्श इंदिरा की तलाश

भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के प्रति बॉलीवुड की दीवानगी के बावजूद हिंदी फिल्म को उनके सशक्त...
फिल्म: आदर्श इंदिरा की तलाश

भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के प्रति बॉलीवुड की दीवानगी के बावजूद हिंदी फिल्म को उनके सशक्त चरित्र का इंतजार

कांपते होंठ, बालों पर लंबी सफेद पट्टी- आने वाली अपनी फिल्म इमरजेंसी के फर्स्ट लुक में कंगना रनौत का इंदिरा गांधी के किरदार को शक्ल देने की एक भ्रामक कोशिश भर है। इतनी भ्रामक कि बेहद दयनीय-सी है और वे बुरी तरह नाकाम साबित हुई हैं। इस सबके बीच बड़ा सवाल यह है कि भारतीय नेताओं की समृद्ध विरासत के बीच बॉलीवुड में इंदिरा गांधी को लेकर इतना आकर्षण क्यों है? देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा देश की इकलौती महिला प्रधानमंत्री थीं- एक ऐसा व्यक्तित्व, जिसका सम्मान भी किया जाता है और आलोचना भी। उनके साथ इतिहास के कई स्याह अध्याय भी जुड़े हुए हैं, जिनमें 1975 का राष्ट्रीय आपातकाल और 1984 का ऑपरेशन ब्लूस्टार शामिल हैं। देश के लिए 1967 के भारत-चीन संघर्ष, 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध का उन्होंने नेतृत्व किया, जिसने बांग्लादेश को जन्म दिया।

सैम बहादुर में फातिमा सना शेख

सैम बहादुर में फातिमा सना शेख

हिंदी सिनेमा में शायद इंदिरा गांधी का सबसे अच्छा चित्रण आंधी (1975) में हुआ। गुलजार ने इसका निर्देशन किया था और अनुभवी अभिनेत्री सुचित्रा सेन ने शक्तिशाली महिला राजनीतिक आरती देवी की भूमिका निभाई थी। उनका किरदार बहुत हद तक गांधी पर आधारित था, खासकर उनकी साड़ियां और बालों पर सफेद लकीर। उसमें इंदिरा के चरित्र से इतनी समानता थी कि फिल्म को सरकार का कोपभाजन बनना पड़ा। सूचना और प्रसारण मंत्रालय से मंजूरी मिलने के 26 सप्ताह बाद आंधी पर प्रतिबंध लगा दिया गया। फिल्म के कुछ हिस्सों को दोबारा शूट करना पड़ा, इस बात पर जोर देने के लिए कि आरती देवी की कहानी का इंदिरा गांधी के निजी जीवन से कोई लेना-देना नहीं है।

पीएम नरेंद्र मोदी में किशोरी शहाने विज

पीएम नरेंद्र मोदी में किशोरी शहाने विज

हाल के वर्षों में बॉलीवुड की कई फिल्मों में वे बार-बार दिखाया जाने वाला चरित्र बन गई हैं। इंदु सरकार (2017), पीएम नरेंद्र मोदी (2019), ठाकरे (2019), बेल बॉटम (2021) से लेकर भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया (2021), '83 (2021) और सैम बहादुर (2023) तक, हिंदी सिनेमा में पूर्व प्रधानमंत्री को चित्रित किया गया है। इन फिल्मों को देखकर बार-बार यह सवाल खड़ा हुआ है कि क्या फिल्म निर्माताओं ने इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व को सही तरीके से समझा है। क्या भाजपा सरकार का इस पुनरावृत्ति से कोई लेना-देना है? यह कोई रहस्य नहीं है कि इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुए काम और परिस्थितियों का इस्तेमाल भाजपा सरकार ने कांग्रेस के खिलाफ अभियान चलाने में किया है। इंदु सरकार इसका उदाहरण है, जिसके सहारे भाजपा ने प्रमुख विपक्षी दल पर निशाना साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

बेल बॉटम में लारा दत्ता

बेल बॉटम में लारा दत्ता

अकेले इससे हालांकि इंदिरा गांधी के चित्रण के प्रति बढ़ता जुनून समझ में नहीं आता। दिलचस्प तो यह है कि बेल बॉटम फिल्म में अक्षय कुमार के अभिनय के बजाय इंदिरा बनीं लारा दत्ता की नकली नाक की ज्यादा चर्चा थी। रीलीज से पहले इंटरनेट पर कई वीडियो तैर रहे थे, जिसमें लारा दत्ता के मेकअप में कितनी मेहनत लगी इस पर चर्चा थी। अवंतिका अकरकर ने ठाकरे, 83 और मिशन मजनू (2023) में तीन बार इंदिरा गांधी की भूमिका निभाई। उन्होंने दर्शकों को पूर्व प्रधानमंत्री के साथ अपनी गजब की समानता से आश्चर्यचकित किया है।

एक साक्षात्कार में अकेरकर ने बताया था कि हूबहू उनके (इंदिरा) जैसा लुक पाने के लिए निर्माताओं को कुछ भी नकली इस्तेमाल करने के बजाय बालों और भौहों पर बस ज्यादा ध्यान देना पड़ा। इंदिरा का किरदार निभाने वाली अधिकतर अभिनेत्रियों ने बताया कि कैसे उन्होंने इंदिरा के साक्षात्कारों को देखकर उनकी बॉडी लैंग्वेज का अभ्यास किया। शायद फातिमा सना शेख का सैम बहादुर में इंदिरा बनना कुछ चुनिंदा उदाहरणों में से एक है जहां उनके व्यक्तित्व पर कम और फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के साथ उनके व्यक्तिगत समीकरण पर अधिक जोर दिया गया है। चाहे उनकी शारीरिक विशेषताएं हों या व्यवहार, इंदिरा के प्रति बॉलीवुड का आकर्षण बड़ी राजनैतिक प्रेरणाओं से परे है। इसके भीतर कहीं न कहीं आयरन लेडी के रहस्य से पर्दा उठाने की आकांक्षा छिपी है। दुर्भाग्य से ऐसी तमाम कोशिशें नाकाम रही हैं।

इंदू सरकार में सुप्रिया विनोद

इंदू सरकार में सुप्रिया विनोद

इसके विपरीत, हिंदी फिल्मों में जवाहरलाल नेहरू या सरदार पटेल जैसे राजनेताओं का चरित्र कहीं बेहतर तरीके से पेश किया गया है। केतन मेहता की सरदार (1993) में सरदार पटेल की भूमिका निभाने वाले परेश रावल अपने साक्षात्कारों में अक्सर कहते रहे हैं कि प्रोस्थेटिक्स के बजाय चरित्र को मजबूत तरीके से प्रदर्शित करने के प्रति वफादार होना चाहिए। इंदिरा के विभिन्न शेड्स को सीमित रखने के पीछे महिलाओं को उनकी शारीरिक विशेषताओं और चरित्र के सूक्ष्म आयामों तक ही सीमित रखने की बॉलीवुड की प्रवृत्ति भी हो सकती है। यही वजह है कि आदर्श इंदिरा की तलाश आज भी जारी है।

 

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