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"पिपलांत्री: इको-फेमिनिज्म की एक कहानी" को भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2025 में विश्व प्रीमियर के लिए चुना गया

फीचर-लेंथ डॉक्यूमेंट्री फिल्म "पिपलांत्री: ए टेल ऑफ़ इको-फेमिनिज़्म" को 56वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय...

फीचर-लेंथ डॉक्यूमेंट्री फिल्म "पिपलांत्री: ए टेल ऑफ़ इको-फेमिनिज़्म" को 56वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई), गोवा के भारतीय पैनोरमा (गैर-फीचर) खंड में विश्व प्रीमियर के लिए आधिकारिक रूप से चुना गया है। यह फिल्म 24 नवंबर 2025 को सुबह 9:30 बजे आईनॉक्स 2 में दिखाई जाएगी।

सूरज कुमार द्वारा निर्देशित और डॉ. गरिमा सिंह द्वारा निर्मित यह फिल्म राजस्थान के राजसमंद जिले में पिपलांत्री पंचायत के असाधारण परिवर्तन की कहानी कहती है, जो कभी सूखी, धूल भरी और संगमरमर खनन के कारण नष्ट हो चुकी थी। यही पिपलांत्री पंचायत अब एक हरे-भरे स्वर्ग और पर्यावरण तथा लैंगिक सद्भाव का एक वैश्विक मॉडल बन गई है।

इस क्रांति के केंद्र में पिपलांत्री के दूरदर्शी पूर्व सरपंच, पद्मश्री श्याम सुंदर पालीवाल हैं। अपनी दिवंगत बेटी की स्मृति में, उन्होंने एक अनूठी परंपरा शुरू की—हर बार बेटी के जन्म पर 111 पेड़ लगाना। ग्रामीण इन पेड़ों की देखभाल उसी तरह करते हैं जैसे वे अपनी बेटियों की परवरिश करते हैं, जो जीवन और प्रकृति के बीच के बंधन का प्रतीक है।

निर्देशक सूरज कुमार ने कहा, "पिपलांत्री केवल एक वृत्तचित्र नहीं है, यह इस बात का जीवंत उदाहरण है कि कैसे दूरदर्शिता, सहानुभूति और सामुदायिक भावना इस ग्रह को स्वस्थ बना सकती है। मुझे सबसे अधिक प्रभावित करने वाली बात यह थी कि यहां प्रत्येक लड़की का जन्म जीवन का उत्सव बन जाता है।"

सूरज कुमार की फीचर डॉक्यूमेंट्री इस असाधारण यात्रा को संवेदनशीलता, संयम और भावनात्मक गहराई के साथ दर्शाती है। कुमार कहते हैं, "पिपलांत्री की कहानी ने आज हमें यह उम्मीद दी है कि हम ग्लोबल वार्मिंग के रुझानों को उलटने में पूरी तरह सक्षम हैं।" "लेकिन मुख्य चुनौती पद्मश्री श्याम सुंदर पालीवाल से प्रेरणा लेते हुए, इस कार्य के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध होना है।"

 इंडिया पैनोरमा सेक्शन के लिए चुने जाने के महत्व के बारे में बात करते हुए, वे आगे कहते हैं, "स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं के लिए आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता फिल्म समारोहों के माध्यम से ही है। हमें बस उन महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डालने का एक अवसर चाहिए जो हमें प्रभावित करते हैं।आईएफएफआई, अपने इंडिया पैनोरमा सेक्शन के साथ, भारत में स्वतंत्र सिनेमा को समर्थन देने में एक बड़ी भूमिका निभा रहा है।"

निर्माता डॉ. गरिमा सिंह ने कहा, "यह फिल्म पिपलांत्री की महिलाओं और प्रकृति के साथ उनके गहरे जुड़ाव का जश्न मनाती है। उनकी कहानी लचीलेपन और नवीनीकरण का प्रतीक है। आईएफएफआई में चयन वैश्विक संवादों को प्रेरित करने की स्थानीय कहानियों की शक्ति की स्वीकृति है।"

पिपलान्त्री: ए टेल ऑफ इको-फेमिनिज्म का निर्माण जॉन्सन-सूरज फिल्म्स इंटरनेशनल (जेएसएफआई) के तहत किया गया है और यह वैश्विक पारिस्थितिक सिनेमा में भारत की उभरती आवाज को दर्शाता है।

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