आशा भोंसले, जिन्हें प्यार से ''आशा ताई'' भी बोला जाता है, हिंदी फिल्मों की मशहूर पार्श्वगायिका, दीनानाथ जी और शेवंती मंगेशकर की पुत्री, लता मंगेशकर की छोटी बहन और हृदयनाथ, मीना और उषा मंगेशकर की बड़ी बहन हैं। इन्होंने फिल्मी और गैर फिल्मी लगभग 16 हजार गाने गाए हैं और इनकी सुरीली, जादुई आवाज़ की विश्वव्यापीख्याति ने करोड़ोंप्रशंसक बनाए हैं। इन्होंने हिंदी के अलावा मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और रूसी भाषाओं में भी गाने गाए हैं। आशा भोंसले का जन्म 8 सितम्बर 1933 को महाराष्ट्र के ‘सांगली’ जिले में हुआ। पिता दीनानाथ जी शास्त्रीय संगीत गायक और अभिनेता थे। 9 वर्ष की छोटी वय में पिता का साया सर से उठने के बाद परिवार कोल्हापुर से पुणे, फिर मुंबई आ गया। परिवार की आर्थिक ज़िम्मेदारी उठाने हेतु लता जी और आशा जी ने फिल्मों में गायन के लिए प्रयास किए। लता जी को गाने मिलने लगे, पर आशा जी कोसंगीत निर्देशक अच्छी गायिका नहीं मानते थे, परिणामस्वरूप आशा जी ने शुरुआत में कड़ा संघर्ष किया।
नियति के चक्र के चलते एक किस्सा हुआ जिसकी परिणति दुखद हुई। लता जी के सचिव, गणपतराव भोंसले और आशा जी का एक दूसरे के प्रति झुकाव हो गया। 1949 में परिवार की इच्छा के विरुद्ध, 16 वर्ष की उम्र में आशा जी ने 31 वर्ष के गणपतराव से विवाह रचा लिया। लता जी को ये कदम नागवार गुज़रा, उन्होंने शादी स्वीकार नहीं की फलत: रिश्तों में तनाव के कारण आशा जी को घर छोड़ना पड़ा। विवाहोपरांत पति के साथ रिश्ते ख़राब होने से 1960 में अलगाव हो गया पर आशा जी के तीन बच्चे हेमंत, वर्षा और आनंद पैदा हो गए थे।
आशा जी असाधारण क्षमता वाली प्रतिभा थीं जिन्होंने ओ.पी. नैयर और आर.डी. बर्मन उर्फ़ ''पंचम'' के निर्देशन में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिया। नैयर से उनकीमुलाकात 1952 में ''छम छमा छम'' गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान हुई। आशा जीकोनैयर ने विश्वास दिलाया कि वह अपने दम पर अलग पहचान बना सकती हैं। नैयर द्वारा रचित, रफ़ी के साथ गाए ''कश्मीर की कली'' और ''तुमसा नहीं देखा'' फिल्मों के गाने चार्टबस्टर थे जो आज भी लोकप्रिय हैं।भावनात्मक जुड़ाव की बदौलत दोनों ने सफल पारी खेली। आशा जी ने नैयर को ऐसी धुनें बनाने के लिए प्रेरित किया जो सर्वथा अनूठी, मौलिक थीं और उन्होंने यादगार, हिट गाने बनाए। ये जोड़ी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 1957-1958 में अभूतपूर्व ऊंचाई पर पहुंची। आशा जी को ''सीआईडी'' और ''नया दौर'' के बाद आशातीत सफलता मिली और''नया दौर" के लिए नैयर ने सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का पुरस्कार जीता। आशा जी की पहली सुपरहिट फिल्म “नया दौर” में रफी और आशा जी के गाए, “मांग के साथ तुम्हारा” तथा “उड़े जब-जब जुल्फें तेरी” गाने लोकप्रिय हुए। बी.आर. चोपड़ा ने आशा जी की प्रतिभा पहचान कर अपनी फिल्मों ‘वक्त’, ‘गुमराह’, ‘हमराज’, ‘आदमी’ और ‘इंसान’, धुंध’ में गाने का अवसर दिया। ये जोड़ी ''प्राण जाए पर वचन ना जाए'' में फिल्मफेयर पुरस्कार जीत कर चरम पर पहुंच गई।1972 मेंसाथ काम ना करने का निश्चय करके दोनों अलग हो गए मगर नैयर के लिए ये अलगाव बड़ा झटका था।
आर.डी. बर्मन ने आशा जी के गायन में अपार संभावनाएं देखकर परंपरागत संगीत से अलग संगीत रचने का निश्चय किया।पंचम के निर्देशन में “आजा-आजा मैं हूं प्यार तेरा” गाकर उन्हें प्रसिद्धि मिली। पंचमने उनकी बहुमुखी प्रतिभा देखकर शास्त्रीय के अलावा भजन, कैबरे, रॉक, पॉप, ग़ज़ल, लोकगीत, कव्वाली और रवींद्र संगीत जैसी विविध शैलियों में गाने हेतु उन्हें प्रोत्साहित किया। रेडियो के एफएम चैनल के रेट्रो सेक्शन पर आर.डी-आशा भोंसले के संयोजन के स्वर्णयुग के गाने आज भी सुने जा सकते हैं। ''दम मारो दम'', ''चुरा लिया है तुमने'' या ''पिया तू अब तो आजा'' गानों में पश्चिमी शैली का गायन था।अभिनव प्रयोग में सिद्धहस्त पंचम, संगीत में पूरब और पश्चिम के सम्मिश्रण से नयी धुनें रचते थे जिनको गाने के लिए मदभरी, चंचल, चुलबुली आवाज़ चाहिए थी जिसमें संगीत पूरे शबाब में निखरे। उन्हें यकीन था कि आशा जी की आवाज़, उनकी धुनों के साथ पूरा न्याय करेगी। दोनों के गीतों ने अद्भुत समां बांधा, संगीत रसिक इनकी जुगलबंदी के बेतरह दीवाने हो गए औरवो सफल गायिका के रूप में स्थापित हो गयीं। इस ट्रेंड सैटर जोड़ी का संगीत के प्रति अतिशय लगाव दोनों को करीब ले आया। पंचम 1971 में पत्नी रीता पटेल से अलग हो गए थे। पंचम ने विवाह का प्रस्ताव रखा लेकिन पहले विवाह के दुखदायी अनुभवों से आक्रांत आशा जी ने अस्वीकार कर दिया। मान-मनौव्वल के बाद, आशा जी शादी के लिए तैयार हुईं और 1980 में 6 साल छोटे पंचम से विवाह करके उनकी जीवन संगिनी बन गईं। असफल शादियों का ख़मियाज़ा भुगते दो दिग्गजों के एक होने का चमत्कार हुआ, दोनों खुश थे इसीलिए शादी सफल रही।आशा जी ने ‘’उमराव जान’’ से गायन शैली में परिवर्तन किया। "उमराव जान" के दिलकश गीतों के लिए उन्हें पहला राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और श्रोताओं को एहसास हुआ कि वे हर तरह के गायन में सक्षम हैं। 1994 में पंचम की मौत से उन्हें गहरा सदमा लगा और उन्होंने संगीत से दूरी बना ली। फिर 1995 में ए.आर. रहमान ने “रंगीला” के गानों को आवाज़ देने के लिए आशा भोंसले को मनाया।
आशा जी ने 1948 में फिल्म ''चुनरिया'' में ''सावन आया'' गीत से गाने की शुरुआत की। शुरुआत में आशा जी दोयम दर्जे की गायिका मानी गयीं इसलिए उनसे बी और सी ग्रेड फिल्मों में सहनायिकाओं या खलनायिकाओं पर फिल्माए गाने ही गवाए गए। प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए उन्होंनेआवाज़ के साथ नए प्रयोग किए जिससे गानों में भिन्नताएं आयीं। आशा जी की चंचल, खनकदार आवाज़ की श्रेणी असीमित है जो युवा अभिनेत्रियों के लिए उपयुक्त रही। आशा जी ने प्रतिष्ठित गायिकाओं की तुलना में ज़्यादा गाने गाकर1950 के मध्य तक माहौल अपने पक्ष में कर लियाऔरउनके गीतों का जादू सर चढ़ कर बोला। आशा जी के गाए “पान खाये सैंयां”, “पर्दे में रहने दो'', “जब चली ठंडी हवा”, “कोई शहरी बाबू”, “झुमका गिरा रे”, “काली घटा छाये”, “ कह दूं तुम्हें” और “मेरी बेरी के बेर” गानों पर रीमिक्स बने मगर असली गानों की बराबरी नहीं कर पाए। आशा भोंसले के बाद आयी गायिकाओं ने विविध आवाजों में गाने गाए पर जो सर्वोच्च मुकाम आशा जी ने हासिल किया, उस ऊंचाई तक कोई नहीं पहुंची।आशा जी नेहज़ार से ज़्यादा फिल्मों में गाने गाए। गिनीज बुक के अनुसार आशा जी ने सर्वाधिक गाने गाए हैं। उन्होंने 2013 में फिल्म 'माई' में अभिनय किया जिसमें उनके अभिनय की प्रशंसा हुई।
आशा जी फिल्मफेयर के लिए 20 बार नामांकित हुईं और 8 बार अवॉर्ड जीता। नई प्रतिभाओं को मौका देने के लिए 1979 में ख़ुद को नामांकित करने से मना कर दिया। सबसे पहले 1966 में फिल्म ‘दस लाख’ के गीत “गरीबों की सुनो” के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका, 1968 में ‘शिकार’ के गाने “पर्दे में रहने दो”, फिर ‘कारवां’ में “पिया तू अब तो आजा”, 1972 में ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ में “दम मारो दम'', 1973 में ‘नैना’ में “होने लगी है रात”, 1974 में ‘प्राण जाये पर वचन ना जाये’ में “चैन से हमको कभी”, 1977 में ‘डॉन’ में “ये मेरा दिल” और 1995 में ''रंगीला'' फिल्म के लिये फिल्मफेयर ने सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का पुरस्कार दिया। आशा जी को महाराष्ट्र की ओर से 18 पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। 1981 में ‘उमराव जान’ की ग़ज़ल “दिल चीज क्या है” और 1986 में ‘इजाज़त’ के गीत “मेरा कुछ सामान” के लिए वो राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित की गईं। 2001 में उन्हें ''दादा साहब फाल्के'' पुरस्कार और 2008 में ‘’पद्म विभूषण’’ से सम्मानित किया गया। 1997 में ब्रिटेन के ''ऑलटर्नेटिव रॉक बैंड'' ने ''ब्रिमफुल ऑफ आशा'' गाना रिलीज़ करके आशा जी को समर्पित किया जिसको अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिली। 2001 में उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अवॉर्ड दिया गया। बीबीसी ने भी उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया। आशा जी पहली गायिका हैं जो ग्रैमी अवॉर्ड के लिए नामांकित हुईं।
आशा जी बेहतरीन मिमिक्री आर्टिस्ट हैं और खाना बनाने में भी सिद्धहस्त हैं। आशा जी के दुबई, कुवैत, आबुधाबी, दोहा, बहरीन में ''आशाज़'' नामक रेस्टोरेंट्स हैं जहां पारंपरिक उत्तरी-पश्चिमी भारतीय खाना विशेष रूप से उपलब्ध रहता है। अंतर्राष्ट्रीय कुक 'रसेल स्कॉट' ने ब्रिटैन के लिए आशा ब्रांड के राइट्स खरीदे हैं। उनकी योजनानुसार भविष्य में ''आशाज़'' के करीब 40 रेस्टोरेंट खोले जाएंगे।
आशा जी के उतार-चढ़ाव भरे संघर्षपूर्ण जीवन के बावजूद उनकी संगीत के प्रति उदात्त भावना,अदम्य जीवट, उत्कट जिजीविषा और ज़िंदादिली गर्वानुभूति योग्य है। आठ दशकों तक चलने वाले अविश्वसनीय पार्श्वगायन के करियर में शानदार गीतों का खज़ाना और अनगिनत उपलब्धियां हैं। संगीत की इस मलिका नेपार्श्वगायन में पुरुष गायकों के वर्चस्व को चुनौती दी और उनका दबदबा खत्म कर, ऐसा करिश्मा कायम किया जिसकी गूंज सदा-सर्वदा सुनाई देगी। महिला पार्श्वगायन मेंसुदीर्घ अवधितक शीर्ष पर राज करने वालीआशा जी अपनी वर्स्टेलिटी के लिए पसंद की गयीं और हमेशा प्रासंगिक रहेंगी।