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फ़िल्म उद्योग में और कितने मुबारक बेगम !

अपने ज़माने की बेहतरीन गायिका मुबारक बेगम दुनिया से विदा हो गईं । 'शो मस्ट गो ऑन' के दर्शन में यक़ीन रखने वाली फ़िल्म इंडस्ट्री की आबोहवा पर उनकी रुख़्साती से कोई फ़र्क़ ना तो पड़ना था और ना ही पड़ा । बेशक आम भारतीय आज भी उनके गीत 'कभी तनहाइयों में यूँ तुम्हारी याद आएगी' में खोए हों मगर फ़िल्म उद्योग ने तो उन्हें वर्ष 1980 में तब ही भुला दिया था जब उन्होंने आख़िरी बार किसी हिंदी फ़िल्म के लिए गाना गाया था ।
फ़िल्म उद्योग में और कितने मुबारक बेगम !

इस उद्योग से जुड़े वे लोग ज़रूर उनकी मौत से ग़मज़दा हुए जो दशकों से यहाँ सहर्ष कर रहे हैं और आज भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हो पाए हैं । यह लोग हैरान भी हैं कि अपने सौ से भी अधिक फ़िल्मी गानों से जिस महिला ने भारतीय जन मानस की भावनाओं को आवाज़ दी वह बला की ग़ुरबत में दुनिया से रवाना हुईं? आख़री वक़्त उनके पास इलाज को भी पैसे नहीं थे । उनके ऑटो चालक बेटे के पास भी इतने संसाधन नहीं थे कि अपनी माँ का समुचित इलाज करा सके । उनकी हैरानी जायज़ भी है कि जो मुबारक बेगम कभी लता मंगेशकर से बड़ी गायिका मानी जाती थीं आख़िरी दौर में ज़माने ने उनकी सुध ही ना ली और दशकों तक गुमनामी के अंधेरे में जीवन काटती रहीं । यह लोग दबी ज़बान में फ़िल्म फ़ेडरेशन पर भी उँगलियाँ उठा रहे हैं कि उसने भी मुबारक बेगम की ख़ैर ख़बर नहीं ली ।

संघर्षशील कलाकार याद करते हैं कि हरदिल अज़ीज़ मीना कुमारी के पास भी आख़िरी वक़्त अस्पताल का बिल चुकाने को पैसे नहीं थे । नलिनी जयवंत भी भुखमरी में दुनिया से विदा हुईं । सैंकड़ों फ़िल्मों में काम कर चुके भारत भूषण भी बेहद तंगहाली में मरे। हमराज़ फ़ेम विम्मी आख़िरी वक़्त में अस्पताल के जनरल वार्ड में भर्ती थीं और उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए ठेली पर रख कर कोई अनजान आदमी शमशान घाट छोड़कर आया । एके हंगल भी इलाज के बिना दुनिया से गए और उनकी मय्यत पर दिखावे को भी कोई रोने ना आया। मरने से पूर्व उन्होंने सहायता की बक़ायदा अपील भी की थी । भगवान दादा और अचला सचदेव की भी बिना इलाक़े के दुनिया से विदा हुए ।

हालाँकि फ़िल्मी कलाकारों के सुख-दुःख देखने को बक़ायदा फ़िल्म फ़ेडरेशन का गठन किया गया है मगर ग़रीब ग़ुरबा और पुराने कलाकारों की वह भी सुध नहीं लेती । हालाँकि फ़िल्मी कलाकारों की संस्था सिंटा ज़रूर कुछ सक्रिय है मगर चूँकि मुबारक बेगम अभिनय नहीं गायकी से जुड़ी थीं अतः उसने भी उनकी ख़बर नहीं ली । फ़िल्म प्रोड्यूसर हेमंत कुमार आरोपी लगाते हैं कि फ़ेडरेशन के पदाधिकारी फ़िल्मों की शूटिंग में पहुँच जाते हैं और नियमों की अवहेलना बता कर उगाही करते हैं । चूँकि शूटिंग में एक एक मिनट की क़ीमत होती है अतः उन्हें पैसा देना ही पड़ता है । फ़िल्म प्रोडक्शन से महेश प्रजापति कहते हैं कि फ़ेडरेशन का गठन उद्योग से जुड़े लोगों के हितों को देखना है मगर वे लोग सिर्फ़ अपनी जेबें भरने में लगे हैं। वही कहते हैं कि मुबारक बेगम जैसे सैंकड़ों कलाकार और यहाँ हैं जो ठोकरें खा रहे हैं और उनकी मौत का भी ज़माने को तब पता चलेगा जब अख़बार में उनके ना रहने के हैडिंग के साथ फ़ोटो छपेगी ।

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