'तुष्टीकरण' राजनीतिक शब्द है। इसका इस्तेमाल जब-तब नेता करते रहते हैं। तुष्टीकरण के विरोधी नेता तुष्टीकरण ना करने देने के नाम पर तुष्टीकरण करने लगते हैं। जो तुष्टिकरण करता है वो ये कहकर तुष्टीकरण करता है कि हम तुष्टीकरण नहीं कर रहे हैं। चूंकि इस शब्द का बार-बार दोहराव हो रहा है और इससे पढ़ने वाला इरीटेट हो सकता है इसलिए सीधे मुद्दे पर आया जाए।
संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावती' का ट्रेलर 9 अक्टूबर को लांच किया गया। फिल्म के आगे बहुप्रतीक्षित भी लगाना चाहिए क्योंकि सबको इंतजार था कि इतनी धमकियों और सेट पर तोड़-फोड़ के बाद भंसाली क्या दिखाने वाले हैं। ट्रेलर काफी भव्य है। लोग इसमें 'बाहुबली' और रणवीर सिंह में 'गेम ऑफ थ्रोंस' के खाल ड्रोगो की झलक देख रहे हैं। लेकिन ट्रेलर देखकर लगता है, संजय लीला भंसाली को तुष्टीकरण की राजनीति समझ में आ गई है।
इसी साल जनवरी महीने में जयपुर में पद्मावती के सेट पर करणी सेना के लोगों ने तोड़-फोड़ की थी। ये लोग खुद को राजपूतों का स्वघोषित प्रतिनिधि समझते हैं। उनका कहना था कि फिल्म में रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी का प्रेम प्रसंग दिखाया गया है।
करणी सेना के कालवी का कहना था, ‘जिस रानी ने देश और कुल की मर्यादा के लिए 16 हजार रानियों के साथ जौहर कर लिया, उसे इस फिल्म में खिलजी की प्रेमिका के रूप में दिखाना आपत्तिजनक है। इस पूरी कहानी को इस तरह दिखाना हमारी संस्कृति पर तमाचा है। हम चुप नहीं रहेंगे। ये फिल्म वाले क्रिएटिविटी के नाम पर हमारे इतिहास के साथ कुछ भी कर दें और हम चुप बैठें, ये कैसे हो सकता है? ये फिल्म नहीं बननी चाहिए।” तब संजय लीला भंसाली के साथ हाथापाई भी हुई थी। जाहिर है तब कहानी किसी को नहीं पता थी, सिवाय भंसाली के।
बहस हुई कि इस तरह अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोटा जा रहा है और ये बात सही भी थी कि बगैर फिल्म देखे आप अपने दंभ के चक्कर में हाथापाई कर रहे हैं।
संजय लीला भंसाली की फिल्मों के भव्य सेट, ग्राफिक डिजाइन, गहने-जवाहरात से लदे किरदारों के बीच एक चीज छिपी होती है। ये फिल्में आदिम प्रवृत्तियों को उभारती हैं, जिनमें जाति और कुल की प्रतिष्ठा को लेकर गर्व भी शामिल होता है। ‘बाजीराव मस्तानी’ और ‘गोलियों की रासलीला- रामलीला’ में ये चीजें नज़र आई थीं।
अब 'पद्मावती' का ट्रेलर देखकर भी लगता है कि उन्होंने राजपूतों के ‘जातीय दंभ’ को ही सहलाया है। ट्रेलर के पहले डायलॉग में राजा रतन सिंह बने शाहिद कपूर राजपूत को ‘परिभाषित’ करते हुए कहते हैं- ‘चिंता को तलवार की नोक पर रखे, वो राजपूत। रेत की नाव लेकर समंदर से शर्त लगाए, वो राजपूत। जिसका सर कटे फिर भी धड़ दुश्मन से लड़ता रहे, वो राजपूत।‘
पूरे दावे से तो नहीं कह सकते लेकिन फिल्म में जौहर प्रथा को भी महिमामंडित किया गया लगता है। राजपूतों के तुष्टीकरण में भंसाली यहीं नहीं रुके। उन्होंने पद्मावती बनी दीपिका पादुकोण से भी कहलवाया- ‘राजपूती कंगन में उतनी ही ताकत है, जितनी राजपूती तलवार में।‘
हो सकता है कि ये सब चीजें मूल कहानी का हिस्सा रही हों या ये भी हो सकता है कि विवादों से बचने के लिए संजय लीला भंसाली ने बाद में ये बातें फिल्म में डाली हों। कुछ भी हो लेकिन इतना तो तय है कि भंसाली को पता है क्या कहने पर राजपूतों को कोई दिक्कत नहीं होगी।
ट्रेलर में ही इतना सब सुनने के बाद करणी सेना वालों की भुजाएं थरथराने लगी होंगी और संजय लीला भंसाली पर खुश होते हुए उन्होंने जोर से कहा होगा- 'जय राजपूताना।'