'गॉडफादर' जैसी क्लासिक फिल्म बनाने वाले डायरेक्टर फ्रांसिस फोर्ड कपोला ने एक दफे कहा था कि सिनेमा और जादू मुझे एक दूसरे के काफी करीब लगते हैं क्योंकि शुरूआती फिल्मों के ज्यादातर डायरेक्टर जादूगर ही थे। उनकी यह बात सच है।
तकनीकी की मदद से अब फिल्में बनाना बहुत आसान हो गया है। कई लोग शॉर्ट फिल्में तो अपने स्मार्टफोन से ही बना लेते हैं। वीएफएक्स की मदद से पूरी की पूरी नई दुनिया खड़ी की जा सकती है। स्पेशल इफेक्ट्स तो ऐसे-ऐसे कि आंखें चौंधियां जाएं। हॉलीवुड इन चीजों में सबसे आगे है। लेकिन जैसा होता है हर चीज एक लंबा सफ़र तय करके वहां तक पहुंचती है, जहां वह इस वक्त है। सब कुछ शुरुआत में इतना आसान नहीं होता, जितना अब लगता है और सबसे रोचक होती है किसी चीज के शुरू होने की कहानी।
ऐसी ही एक कहानी है:
फिल्मों में पहली बार स्पेशल इफेक्ट्स कैसे आए? उन्नीसवीं शताब्दी ढलान पर थी। बीसवीं शताब्दी शुरू हो रही थी और सिनेमा एकदम नया-नया ही था। उस दौर में तकनीकी का इतना बेहतरीन इस्तेमाल कैसे हुआ?
इसके पीछे दिमाग था एक जादूगर का, जो बाद में फिल्मकार बन गया। नाम था जॉर्ज मेलिएस। उन्हें ‘फादर ऑफ़ स्पेशल इफेक्ट्स’ भी कहा जाता है।
2011 में महान डायरेक्टर मार्टिन स्कॉर्सेसी की ‘ह्यूगो’ नाम की एक फिल्म आई। यह पेरिस के एक रेलवे स्टेशन में एक लड़के और पुरानी चीजों, खिलौनों की दुकान लगाने वाले एक बूढ़े शख्स की कहानी थी। बाद में उस लड़के को पता चलता है, यह शख्स अपने समय का मशहूर जादूगर और फिल्मकार जॉर्ज मेलिएस है। यह फिल्म जॉर्ज मेलिएस को मार्टिन स्कॉर्सेसी की तरफ से एक श्रद्धांजलि थी।
स्टेज पर करिश्मे करने वाला एक शख्स
8 दिसंबर 1861 को फ़्रांस के पेरिस में पैदा हुए जॉर्ज मेलिएस की कहानी भी संघर्ष की तमाम कहानियों जैसी ही है। मेलिएस पढ़ाई के बाद परिवार के जूता व्यवसाय में आ गए। वह जूते सिलते थे। लंदन में रहते हुए वे इजिप्टियन हॉल जाया करते थे। यहीं से उनका रुझान जादूगरी की तरफ बढ़ा और उन्होंने इसी में अपना करियर बनाने की ठान ली।
जादूगरी के साथ-साथ La Griffe अखबार में पॉलिटिकल कार्टून भी बनाया करते थे। इसके बाद उन्होंने जीन रॉबर्ट हाउडिन का थिएटर खरीद लिया और पत्नी के साथ मिलकर इसे चलाने लगे। काफी क्रिएटिव थे इसलिए स्टेज पर नई-नई जादू की ट्रिक प्रयोग किया करते थे। लोगों को हर वक्त कुछ नया चाहिए था। उन्होंने अपने एक्ट में कॉमेडी और ड्रामा को भी जगह देनी शुरू की। ऐसे में उनका एक एक्ट काफी प्रसिद्ध हुआ, जिसमें एक प्रोफ़ेसर का भाषण देते वक्त गला कट जाता है, लेकिन फिर भी वह बोलता रहता है।
फिल्म की तरफ बढ़े कदम
1895 के दिसंबर में जॉर्ज मेलिएस ने लूमिएर ब्रदर्स की एक फिल्म देखी। जॉर्ज इसे देखकर हक्के-बक्के रह गए। उन्हें लगा इसमें तो मैं अपनी जादूगरी के करिश्मे जोड़ सकता हूं। जॉर्ज ने उसी दिन लुमिएर ब्रदर्स को उनका सिनेमैटोग्राफ खरीदने के लिए पैसे ऑफर किए लेकिन उन्होंने मना कर दिया।
जॉर्ज पर फिल्में बनाने की सनक चढ़ चुकी थी। उन्होंने अपने थिएटर के लिए फिल्म प्रोजेक्टर खोजना शुरू किया। इसके लिए वो लन्दन गए और वहां रॉबर्ट डब्ल्यू पॉल से एनीमैटोग्राफ और कई शॉर्ट फिल्में खरीदीं। जॉर्ज ने इस एनीमैटोग्राफ में कई बदलाव किए ताकि वह एक फिल्म कैमरे की तरह काम कर सके। फिल्म को प्रॉसेस करने के लिए फिल्म प्रॉसेसिंग लैब पेरिस में नहीं थी। उन्होंने खुद ही फिल्म के प्रिंट को प्रॉसेस करना शुरू किया। बाद में 1896 में जॉर्ज ने अपने दो साथियों के साथ मिलकर एक कैमरे का पेटेंट करवाया। जॉर्ज इसे ‘मशीन गन’ कहा करते थे क्योंकि इसमें से बहुत तेज आवाज़ आया करती थी। बाद में पेरिस में अच्छे कैमरे आए तो जॉर्ज ने उन्हें खरीद लिया।
जादू से भरा फिल्मकार
जॉर्ज मेलिएस ने 1896 से 1913 के बीच 500 से ज्यादा फिल्मों को निर्देशन किया। ये फिल्में एक मिनट से लेकर चालीस मिनट तक की हो सकती थीं। ये उनके जादूगरी के परफॉरमेंस जैसी ही फिल्में हुआ करती थीं।
कैमरे को बीच में रोककर ऑब्जेक्ट को अपनी जगह से हटाकर फिर से कैमरा चलाने की ट्रिक उन्होंने ही खोजी। इससे ऑब्जेक्ट के गायब या प्रकट हो जाने का स्पेशल इफ़ेक्ट पैदा होता था। रिवर्स इफेक्ट, डबल एक्सपोज़र और फिल्म में 'टिंट' इफ़ेक्ट भी उन्होंने पैदा किये। इंसान को किसी दूसरे जीव में तब्दील करना, कैरेक्टर का आकार बदल देना जैसे जादुई इफ़ेक्ट पैदा किया करते थे। उन्होंने अपने मैजिक थिएटर में जादू के साथ फिल्में भी दिखानी शुरू कीं। बाद में सिर्फ शनिवार और रविवार को फिल्में चलने लगीं।
जॉर्ज मेलिएस अपना नया फिल्म स्टूडियो बनाना चाहते थे। उन्होंने पेरिस से लगे हुए मोंट्रियल में स्टूडियो बनाना शुरू किया। ये पूरी तरह कांच की दीवारों से बनाया गया था, जिससे लाइट इफ़ेक्ट के लिए सूरज की रौशनी का इस्तेमाल किया जा सके। वह एक साथ अपना फिल्म स्टूडियो और मैजिक थिएटर चला रहे थे।
जॉर्ज ने डॉक्यूमेंट्री से लेकर कॉमेडी फिल्में बनाई। सबसे ज्यादा उन्हें साइंस फिक्शन और हॉरर फिल्मों के लिए जाना गया, जिसमें वो मैजिक ट्रिक का खूब इस्तेमाल किया करते थे। उनकी कुछ बेहतरीन फिल्में थीं- The Haunted Castle, Joan of Arc, The One-Man Band, After the Ball, The Astronomer's Dream. जॉर्ज खुद अपनी फिल्मों में अभिनय भी करते थे। साल 1900 तक वे काफी लोकप्रिय हो चुके थे।
जब एडीसन पर उनकी फिल्म चुराने का आरोप लगा
1902 में उन्होंने 'ए ट्रिप टू मून' फिल्म बनायी। इसे पहली साइंस फिक्शन फिल्म भी माना जाता है। इसकी एक फोटो, जिसमें चंद्रमा की आंख पर स्पेसशिप है, ये जॉर्ज मेलिएस की पहचान बन गयी। यह 14 मिनट की फिल्म तब तक उनकी बनायी सबसे लम्बी फिल्म थी और इसे बनाने में 10,000 फ्रैंक्स की लागत लगी थी। यह अपने आप में बड़ी बात थी कि जो कल्पना जॉर्ज मेलिएस ने 1902 में की, वो 1969 जाकर साकार हो पायी, जब नील आर्मस्ट्रांग चंद्रमा पर पहुंचे। ऐसी ही एक और ट्रिप फिल्म उन्होंने बनायी ‘द इम्पॉसिबल वॉयेज’। इसे एक मास्टरपीस माना जाता है। उन्होंने बाद में शेक्सपियर के हैमलेट के छोटे वर्जन बनाए।
‘ए ट्रिप टू मून’ फिल्म बहुत बड़ी हिट रही थी। इससे जॉर्ज को अमेरिका में काफी लोकप्रियता मिली। आलम ये था कि वहां के कुछ प्रोड्यूसर ने उनकी इस फिल्म की नकली कॉपी बनाकर बेचनी शुरू कर दी। अमेरिका में आविष्कारक और बिजनेसमैन थॉमस अल्वा एडीसन भी फिल्म व्यवसाय में उतर आये थे। एडीसन पर भी आरोप लगा कि उन्होंने ‘ए ट्रिप टू द मून’ की नकली कॉपी बनाकर बेची है और उससे पैसा बनाया है। यह सरासर कॉपीराइट का उल्लंघन था और एक तरह की चोरी थी। इस पर नज़र रखने के लिए जॉर्ज ने न्यूयॉर्क में अपनी स्टार फिल्म्स कम्पनी की एक शाखा खोली |
बाद में 1908 में थॉमस एडीसन ने मोशन पिक्चर पेटेंट्स कंपनी बनाई ताकि अमेरिका के फिल्म बाजार पर नियंत्रण रखा जा सके। कई फिल्म कंपनियों का एक संगठन बना, जिसके अध्यक्ष एडीसन बने। स्टार फिल्म्स भी इस संगठन में थी। फिल्म व्यवसाय में एडीसन का वर्चस्व हो गया था। स्टार फिल्म्स का काम उनकी कंपनी को फिल्में सप्लाई करना हो गया। मोशन पिक्चर्स की तरफ से फिल्मों की मांग बढ़ती गयी। जॉर्ज मेलिएस ने इस सप्लाई को पूरा करने के लिए एक साल में अट्ठावन फिल्में तक बना डालीं।
1909 में अचानक जॉर्ज मेलिएस ने फिल्में बनानी बंद कर दीं। वह एडीसन के वर्चस्व से नाराज़ थे। पेरिस में हुए इंटरनेशनल फिल्ममेकर्स कांग्रेस की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने एडीसन के इस वर्चस्व को चुनौती दी। बाद में इसके सदस्यों में इस बात पर सहमति बन गई कि फिल्मों को बेचने की बजाय उन्हें संगठन के सदस्यों को लीज पर दिया जाए। जॉर्ज इस बात से भी नाराज़ हुए। उनका मानना था ''मैं कोई संगठन नहीं हूं | मैं एक स्वतंत्र फिल्मकार हूं |''
इसके बाद मेलिएस ने 1910 से फिर से फिल्में बनानी शुरू कीं। लेकिन अगले दो सालों में उन्होंने बहुत कम फिल्में बनाईं। 1912 आते-आते उनकी कमर टूट गई। जाहिर है वे एकदम अलग-थलग पड़ गए थे। एडीसन जैसे ताकतवर आदमी का विरोध करके टिके रहना वैसे भी मुश्किल था। यहां पर एडीसन एक महान आविष्कारक की बजाय एक भावशून्य बिजनेसमैन की ही तरह नज़र आते हैं।
जॉर्ज ने ढलान पर अकेले चलना शुरू किया
स्पर्धा बहुत बढ़ गयी थी और जॉर्ज की फिल्में नहीं चल रही थीं। कर्ज बढ़ता गया। धीरे-धीरे जॉर्ज दीवालिया हो गए। उनके पास पैसे नहीं बचे कि और फिल्में बनायी जा सकें। 1914 में पहला विश्व युद्ध भी छिड़ चुका था। इसकी वजह से भी वो परेशान रहने लगे थे। इसी दौरान उनकी पहली पत्नी की मौत भी हो गई। उनका थिएटर बंद हो गया। उन्होंने अपने दोनों बच्चों के साथ पेरिस छोड़ दिया। 1917 में फ्रांस की सेना ने उनके मोंट्रियल स्टूडियो को अस्पताल में बदल दिया, जिसमें घायल सैनिकों का इलाज हो सके।
फ्रांसीसी सेना ने उनकी फिल्मों के प्रिंट को पिघलाकर उसके चांदी और सिलोलाइड से जूतों के हील बनाए। 1923 में उनके मैजिक थिएटर को भी गिरा दिया गया। इन सबकी वजह से जॉर्ज ने गुस्से में अपनी फिल्मों के निगेटिव, सेट और कॉस्टयूम जला डाले। इसी वजह से उनकी जयादातर फिल्में आज मौजूद नहीं हैं। 2011 तक उनकी 200 फिल्मों को संरक्षित किया गया।
आखिरी पारी
फिल्में बनाना छोड़ने के बाद जॉर्ज काफी परेशान रहने लगे थे। उनकी दुनिया छिन चुकी थी। उन्होंने खुद को सार्वजनिक जीवन से काट लिया था। 1920 के दौरान जॉर्ज पेरिस के एक रेलवे स्टेशन पर खिलौनों की एक दुकान चलाने लगे।
इसके बाद कई पत्रकारों ने उनकी खोजबीन करनी शुरू की। 1929 में उनके काम की तारीफ में एक भव्य आयोजन किया गया। यहां जॉर्ज मौजूद थे। उनकी कई फिल्में दिखायी गईं। बाद में जॉर्ज ने सिर्फ इतना ही कहा कि ये उनकी जिंदगी के सबसे यादगार पलों में से एक है। 1937 में जॉर्ज मेलिएस काफी बीमार पड़ गए। उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया | इस दौरान उन्होंने अपने दोस्तों को अपने आखिरी चित्रों में से एक दिखाया जिसमें एक शैम्पेन की बोतल बनी हुई थी और शैम्पेन बाहर आ रही थी। उन्होंने कहा, ''हंसो मेरे दोस्तों, मेरे साथ हंसो, क्योंकि मैं तुम लोगों के सपनों को देखता हूं।''
1938 में 76 साल की उम्र में कैंसर की वजह से इस महान ‘फ़िल्मी जादूगर’ ने दुनिया के स्टेज से विदा ली और अपना नायाब तोहफा दुनिया के लिए छोड़ गया |