टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (टीआईएफएफ) के 41वें संस्करण में प्रदर्शित देव भूमि उत्तर भारत के इस खूबसूरत पर्वतीय राज्य में जीवन के संपूर्ण एवं गूढ़ दृष्टिकोण को प्रदर्शित करती है। गौरतलब है कि 2013 में आई बाढ़ एवं भूस्खलन से यह राज्य बुरी तरह तबाह हो गया था। पास्कलजेविक ने कहा, सोचने को विवश करने वाली उन तमाम सामाजिक एवं पारिस्थितिकीय खामियों के बावजूद फिल्म देव भूमि का मकसद उम्मीद एवं मानवता को कायम करना है। पिछले कुछ वर्षों में निर्देशक की फिल्मों ने कान, वेनिस और बर्लिन जैसे दुनिया के अहम सिनेमा महोत्सवों में शीर्ष पुरस्कारों के लिए टक्कर दी है। फिल्म में विक्टर बनर्जी ने एक ऐसे व्यक्ति की भूमिका निभाई है जो अपने अधूरे कामों को पूरा करने 40 साल बाद दूर-दराज के अपने हिमालयी गांव पहुंचता है। फिल्म में क्षेत्र की कई चुनौतियों को दिखाया गया है, मसलन रूढ़िवादिता, महिलाओं की शिक्षा एवं विकास के लिए सीमित दायरा और जाति व्यवस्था का संकट।
लेकिन इन सबसे उपर पास्कलजेविक कहते है, फिल्म देव भूमि में उत्तराखंड की खूबसूरती के कसीदे गढ़े गए हैं। भारत एक ऐसा देश है जहां लोगों के बीच कुछ बेहद दृढ़ भावनाएं होती हैं। उन्होंने कहा, या तो कोई इससे नफरत करता है और कभी लौट कर नहीं आता या फिर इससे प्यार कर बैठता है और वापस आता है। मैं भारत से प्यार कर बैठा हूं। देव भूमि के निर्माण का बीज उस वक्त पड़ा जब पास्कलजेविक दो साल पहले गोवा में भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में प्रमुख ज्यूरी थे और बनर्जी भी इस ज्यूरी के सदस्य थे और तभी इन दोनों की मित्रता हुई और दोनों ने एक फिल्म साथ में करने का फैसला किया। पास्कलजेविक ने कहा, हमारे वैश्विक नजरिये और सिनेमाई हित मेल खाते हैं और इसलिए हममें तुरंत दोस्ती भी हो गई। पास्कलजेविक और बनर्जी ने संयुक्त रूप से देव भूमि की पटकथा लिखी है और करीब एक महीने तक समूचे राज्य की यात्रा करने के बाद फिल्म की पूरी शूटिंग उन्होंने उत्तराखंड में ही की है।