असम के प्रसिद्ध नदी द्वीप माजुली में श्री श्री औनियाती सत्र के प्रांगण में एक बार फिर हवा में उल्लास, परंपरा और मिट्टी की ताजगी घुल गई। जब स्थानीय लोग और श्रद्धालु 372 साल पुरानी परंपरा बोका बिहू का जश्न मनाने के लिए इकट्ठा हुए। यह विशिष्ट पर्व असमिया नव वर्ष बोहाग के स्वागत में मनाया जाता है और राज्य की सांस्कृतिक विरासत में इसकी एक अलग ही पहचान है।
बोका बिहू अन्य पारंपरिक उत्सवों से बिल्कुल भिन्न है। यहां नृत्य और गायन की जगह प्रतिभागी एक अनूठे प्रतीकात्मक अनुष्ठान के तहत एक-दूसरे के शरीर पर मिट्टी का लेप लगाते हैं। इस मिट्टी में गाय का गोबर भी मिलाया जाता है। इस मिट्टी को केवल एक तत्व नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक और उपचारात्मक प्रतीक है। माना जाता है कि यह परंपरा शांति, पवित्रता और शारीरिक व आत्मिक शुद्धि का प्रतीक है। यह पर्व समुदाय को न केवल एक-दूसरे से जोड़ते है । बल्कि उस धरती से भी जोड़ती है, जिस पर वे जीते हैं।
यह परंपरा 372 वर्षों से औनियाती सत्र की स्थायी सांस्कृतिक पहचान बनी हुई है। मिट्टी को प्रकृति की शुद्धता का प्रतिनिधि माना जाता है और इसके पास शरीर व आत्मा को शुद्ध करने की शक्ति होने का विश्वास है।
औनियाती सत्र के भिक्षु मनोज सैकिया ने जानकारी दी, “सबसे पहले, मैं सभी को बोहाग बिहू की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। यह परंपरा माजुली के औनियाती सत्र में शुरू से ही चली आ रही है। हम बोका बिहू हर साल मनाते हैं। हम उदासीन वैष्णव हैं अविवाहित भिक्षु और हमारे सत्र में महिलाएं नहीं होतीं है। इसलिए हम बिहू को अपने विशेष तरीके से मनाते हैं।”
उन्होंने बताया, “हम गाय के गोबर और मिट्टी का मिश्रण तैयार करते हैं और इसे आपस में एक-दूसरे के शरीर पर लगाते हैं। यह पर्व हम बोहाग महीने के पहले दिन मनाते हैं, और इसकी शुरुआत हमारे गुरु को तिलक लगाकर की जाती है।”
माजुली को असम की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में जाना जाता है, और यह विभिन्न प्रकार के बिहू उत्सवों का प्रमुख केंद्र है। लेकिन बोका बिहू अपनी गहरी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जड़ों के कारण विशेष महत्व रखता है।
यह उत्सव सिर्फ परंपरा का निर्वहन नहीं, बल्कि आनंद, सामूहिकता और मनुष्य-प्रकृति के बीच एक पवित्र संबंध का उत्सव है। यह परंपरा उन मूल्यों और भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है जिन्हें सदियों से अगली पीढ़ियों तक सहेजा और आगे बढ़ाया गया है।