बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने एक नए अध्यादेश के माध्यम से 'राष्ट्रपिता' की उपाधि और 'बंगबंधु' शेख मुजीबुर रहमान का नाम राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी परिषद (जमूका) अधिनियम से हटा दिया है। इस संशोधन के तहत स्वतंत्रता संग्राम की परिभाषा में भी बदलाव किया गया है, जिसमें अब मुजीबुर रहमान के स्वतंत्रता के आह्वान का उल्लेख नहीं है।
इससे पहले, बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक ने नए मुद्रा नोट जारी किए थे, जिन पर शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर नहीं है। यह पहली बार है जब उनकी छवि को मुद्रा से हटाया गया है, जिससे देश में राजनीतिक और सामाजिक बहस छिड़ गई है।
हालांकि, सरकार ने स्पष्ट किया है कि शेख मुजीबुर रहमान की 'स्वतंत्रता सेनानी' की मान्यता को रद्द नहीं किया गया है। यह स्पष्टीकरण उन चिंताओं के बाद आया है जो जमूका अधिनियम में किए गए संशोधनों के कारण उत्पन्न हुई थीं।
इन बदलावों को लेकर देश में राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के समर्थकों ने इन कदमों की आलोचना की है, जबकि अंतरिम सरकार का कहना है कि यह इतिहास को व्यापक और निष्पक्ष दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने का प्रयास है।
इन घटनाओं के बीच, बांग्लादेश की राजनीति में अस्थिरता और विभाजन की स्थिति बनी हुई है। अंतरिम सरकार पर इतिहास के पुनर्लेखन और राजनीतिक एजेंडा चलाने के आरोप लग रहे हैं, जबकि सरकार का दावा है कि यह कदम देश के इतिहास को संतुलित रूप से प्रस्तुत करने के लिए उठाए गए हैं।
यह घटनाक्रम बांग्लादेश के राष्ट्रीय पहचान और इतिहास को लेकर एक नए विमर्श की शुरुआत करता है, जिसका प्रभाव आने वाले समय में देश की राजनीति और समाज पर गहरा पड़ सकता है।