कन्नड़ लघु कथा संग्रह ‘हृदय दीप’ (हार्ट लैंप) के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखिका बानू मुश्ताक ने अपनी कहानियों में अपने आसपास की महिलाओं के जीवन और पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खिलाफ उनकी लड़ाई को गहराई से चित्रित किया है।
मुश्ताक की 12 लघु कहानियों का संग्रह दक्षिण भारत के पितृसत्तात्मक समुदायों में महिलाओं और लड़कियों के रोजमर्रा के जीवन का वृत्तांत प्रस्तुत करता है।
‘हार्ट लैंप’ यह पुरस्कार प्राप्त करने वाला पहला लघु कथा संग्रह भी है। इसमें 77 वर्षीय मुश्ताक की 1990 से लेकर 2023 तक 30 साल से अधिक समय में लिखी कहानियां हैं।
मुश्ताक की किताबों में पारिवारिक और सामुदायिक तनावों का चित्रण किया गया है और उनके लेख “महिलाओं के अधिकारों के लिए उनके अथक प्रयासों और सभी प्रकार के जातिगत और धार्मिक उत्पीड़न का विरोध करने के उनके प्रयासों की गवाही देते हैं”।
कर्नाटक के हासन में रहने वाली महिला अधिकार कार्यकर्ता बानू जाति और वर्ग व्यवस्था की आलोचना करने वाले बंदया साहित्यिक आंदोलन के दौरान प्रमुखता से उभरीं।
हासन में जन्मी बानू मुश्ताक ने कानून की डिग्री लेने से पहले कुछ समय तक लंकेश पत्रिका के साथ पत्रकार के रूप में भी काम किया था। उनके पिता एक वरिष्ठ स्वास्थ्य निरीक्षक थे और उनकी मां एक गृहिणी थीं।
वह अभी भी वकालत कर रही हैं और हासन में उनके घर से उनकी टीम उनके साथ काम करती है और वह नियमित रूप से अदालत जाती हैं।
अपनी पुस्तक को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए ‘शॉर्टलिस्ट’ किए जाने के बाद उन्होंने ‘पीटीआई-’ से कहा था, ‘‘मैं इसके बारे में बहुत ज्यादा नहीं सोचती हूं, लेकिन मुझे पता है कि मैं एक मुस्लिम महिला हूं और इस पहचान के तहत कैसे काम करना है... मेरे माता-पिता उदार और शिक्षित थे। मेरे पिता चाहते थे कि उनके सभी बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करें। मेरे पति भी बहुत मिलनसार हैं। मेरा परिवार हम पर कुछ भी नहीं थोपता।’’