बड़ी महत्वाकांक्षा लेकर बिहार विधानसभा उपचुनावों में उतरे प्रशांत किशोर (पीके) अपनी जन सुराज पार्टी की करारी हार के बाद युवाओं का कंधा तलाश रहे हैं। बीपीएससी में कथित पेपर लीक-धांधली में उनकी छलांग को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। इसी साल बिहार में विधानसभा के चुनाव होने हैं और उनकी पार्टी राज्य की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। चुनावी रणनीतिकार के रूप में ख्यात प्रशांत किशोर हर सूरत में विधानसभा चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहते हैं।
पिछले साल चार विधानसभा सीटों के उपचुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी खाता तो नहीं खोल पाई मगर तीन सीटों बेलागंज, इमामगंज और तरारी में उसके उम्मीदवार तीसरे पायदान पर रहे। इमामगंज का मुकाबला दिलचस्प रहा। वहां राजद उम्मीदवार करीब छह हजार वोटों से हार गया जबकि जन सुराज के उम्मीदवार ने 37 हजार से अधिक वोट हासिल किए। यह वाकई सियासी संदेश देता है। वैसे भी, पीके देश के विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियों के लिए चुनावी रणनीति तैयार कर चुके हैं। नरेंद्र मोदी की लहर वाले 2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर बिहार, पंजाब, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में प्रशांत किशोर अपनी चुनावी रणनीति की कामयाबी का झंडा गाड़ चुके हैं।
आगामी विधानसभा चुनाव में बीपीएससी पेपर लीक मामले ने पीके को युवाओं पर डोरे डालने का एक मौका दे दिया है। पीके जब छात्रों का साथ देने आंदोलन में उतरे तो कांग्रेस और राजद का भी समर्थन मांगा। पटना के गांधी मैदान में गांधी जी की मूर्ति के सामने आमरण अनशन पर बैठे। युवाओं की 51 सदस्यीय सत्याग्रह समिति बनाई। गिरफ्तार हुए। अदालत के सशर्त जमानत लेने से इनकार के बाद शाम तक उन्हें बिना शर्त रिहा करने का आदेश हासिल हो गया। इसके भी अपने सियासी संकेत हैं। उसके पहले जन सुराज पार्टी के गठन की घोषणा करने के पूर्व भी पीके ने पूरे बिहार का दौरा कर पंचायत स्तर तक बैठकें कर लोगों का मन मिजाज टटोला था। जाहिर है, इससे पीके के इरादे और उनकी भावी योजनाओं को समझा जा सकता है।
बीपीएससी मामले में प्रशांत किशोर का आरोप है कि एक-डेढ़ करोड़ रुपये की दर से नौकरियों को बेचा गया है और यह एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का घोटाला है। जन सुराज पार्टी ने 70वीं बीपीएससी परीक्षा को रद्द करने और फिर से परीक्षा कराने की मांग को लेकर पटना हाइकोर्ट में याचिका दायर की है। दरअसल बीपीएससी की 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा के लिए 4.83 लाख युवाओं ने रजिस्ट्रेशन कराया था जिसमें 3.25 लाख से अधिक छात्रों ने परीक्षा दी। पटना के बापू परीक्षा केंद्र पर अनियमितता को लेकर परीक्षार्थियों ने परीक्षा रद्द करने की आवाज बुलंद की तो बीपीएससी ने बापू परीक्षा केंद्र सहित 912 केंद्रों पर दोबारा परीक्षा कराई, हालांकि आयोग ने पूरी परीक्षा रद्द करने की मांग ठुकरा दी। बीपीएससी के अध्यक्ष परमार रवि मनुभाई और नीतीश कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री विजय कुमार चौधरी पेपर लीक को खारिज कर चुके हैं। आयोग ने प्रशांत किशोर को आयोग पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर कानूनी नोटिस भी भेजा है।
पेपर लीक बिहार के लिए नया नहीं है। आर्थिक अपराध इकाई के डीआइजी के अनुसार 2012 से अब तक 10 पेपर लीक के मामलों में ईओयू जांच कर रहा है। करीब साढ़े पांच सौ लोगों को इन मामलों में गिरफ्तार किया गया है, जांच जारी है। हाल के वर्षों में ही बिहार में शिक्षक नियुक्ति, सिपाही भर्ती, अमीन भर्ती, और बीपीएससी संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा के पेपर लीक की वजह से परीक्षाएं रद्द हुईं। अभी नीट परीक्षा पेपर लीक को लेकर नालंदा गिरोह और बिहार की खूब चर्चा रही। मेडिकल परीक्षा और नालंदा के रंजीत डॉन को आज भी लोग याद करते हैं। लंबे इंतजार के बाद नियुक्ति परीक्षा के अवसर और उसमें इस तरह के कदाचार से युवाओं की हताशा आक्रोश में बदल रही है। पीके इसी असंतोष को भुनाना चाहते हैं। अल्पसंख्यकों पर वे पहले ही डोरे डाल रहे हैं।
दो साल तक बिहार की पदयात्रा के दौरान उनके निशाने पर राजद और जदयू ज्यादा दिखे। कई सभाओं में उन्होंने मुसलमानों को आबादी के हिसाब से या उससे अधिक विधानसभा में टिकट का वादा कर रखा है। इससे जाहिर है कि निशाने पर मुख्य रूप से राजद है। ताजा आंदोलन के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि नीतीश कुमार शारीरिक और मानसिक तौर पर थक चुके हैं। 2025 के चुनाव में उनकी पार्टी का असल टेस्ट होना है, कहीं वे दोधारी तलवार साबित हुए तो बिहार की तस्वीर अलग दिखाई पड़ सकती है।