बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों के खिलाफ हाल ही में संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियम "दिशानिर्देशों" के अभाव में एक सरकारी एजेंसी को "अनियंत्रित शक्ति" देते हैं। दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने अदालत को आश्वासन दिया कि नियम फ्री स्पीच या सरकार को निशाना बनाने वाले हास्य और व्यंग्य पर अंकुश लगाने के लिए नहीं हैं, और किसी को भी प्रधानमंत्री की आलोचना करने से नहीं रोकते हैं।
न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स द्वारा नियमों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। उन्होंने नियमों को मनमाना और असंवैधानिक बताया और दावा किया कि इससे लोगों के मौलिक अधिकारों पर प्रभाव पड़ेगा।
अदालत ने मंगलवार को यह भी जानना चाहा कि जब प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) पहले से ही सोशल मीडिया पर तथ्य-जांच कर रहा है तो एक अलग तथ्य जांच इकाई (एफसीयू) के लिए संशोधन और प्रावधान की क्या आवश्यकता है। न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, “आपके (सरकार) पास एक पीआईबी है जिसकी सोशल मीडिया पर मौजूदगी है। फिर इस संशोधन की आवश्यकता क्यों पड़ी और एफसीयू की स्थापना क्यों की गई? मुझे लगता है कि यह संशोधन कुछ और करना चाहता है।"
केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पीआईबी "टूथलेस" है और वह इस बिंदु पर बुधवार को बहस करेंगे।
उन्होंने कहा, इसका उद्देश्य सरकार या यहां तक कि प्रधानमंत्री के खिलाफ स्वतंत्र भाषण, राय, आलोचना या व्यंग्य पर अंकुश लगाना नहीं था, बल्कि एक ऐसे माध्यम से निपटने के लिए एक संतुलन तंत्र बनाना था जो "अनियंत्रित " था।