भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संबंधों का इतिहास लंबे समय से संघर्ष, अविश्वास और टकराव की घटनाओं से भरा रहा है। 1947 में विभाजन के तुरंत बाद आरंभ हुआ यह टकराव अब तक चार पारंपरिक युद्धों, अनेक सीमावर्ती झड़पों और सतत आतंकी गतिविधियों का रूप ले चुका है। हालांकि 21वीं सदी में युद्ध की प्रकृति बदल रही है – अब केवल सीमाओं पर सैनिकों की तैनाती या गोला-बारूद का आदान-प्रदान निर्णायक नहीं रहा, बल्कि सूचना (information), तकनीक (technology), और रणनीति (strategy) भी निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं। 2025 की शुरुआत में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ सैन्य टकराव, जो कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले की प्रतिक्रिया में था, इस बदले हुए युद्ध-परिदृश्य का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है।
पाकिस्तान की सैन्य नीति लंबे समय से 'परमाणु छत्रछाया' (nuclear umbrella) और चीन पर निर्भरता के सहारे संचालित होती रही है। पाकिस्तान की रक्षा प्रणाली में चीन द्वारा प्रदत्त हथियारों और सैन्य उपकरणों की अत्यधिक उपस्थिति है। जेएफ-17 थंडर (JF-17 Thunder) जैसे लड़ाकू विमान (fighter aircraft), विंग लूंग (Wing Loong) जैसे ड्रोन, एचक्यू-16 (HQ-16) और एलवाई-80 (LY-80) जैसी वायु रक्षा प्रणालियाँ (air defence systems), और अनेक अन्य मिसाइल व रडार सिस्टम – सब चीन के सहयोग से पाकिस्तान के सैन्य ढाँचे का हिस्सा बने हैं। चीन इन हथियारों को ‘कम लागत, अधिक मारकता’ (low cost, high lethality) के नारे के साथ बेचता है, किंतु व्यावहारिक युद्ध क्षेत्र में इनकी प्रभावशीलता पर बार-बार सवाल उठे हैं। तकनीकी तौर पर ये हथियार विकसित देशों के समानांतर नहीं टिकते। हाल ही में पाकिस्तान वायुसेना द्वारा भेजे गए जेएफ-17 (JF-17) विमानों की रडार प्रणाली (radar system) में खराबी की खबरें आईं, और उनके द्वारा छोड़ी गई मिसाइलें लक्ष्य से चूक गईं। यह तथ्य इस बात को उजागर करता है कि युद्ध में केवल संख्या नहीं, बल्कि गुणवत्ता (quality), विश्वसनीयता (reliability) और प्रशिक्षित संचालन (trained operations) अधिक महत्त्व रखते हैं।
हालाँकि हाल के वर्षों में उसने तुर्किये की ओर भी रुख किया है, विशेषकर ड्रोन युद्ध प्रणाली (drone warfare system) में। तुर्किये के साथ उसके सैन्य सहयोग ने बायरक्तर टीबी2 (Bayraktar TB2) और हाल ही में विकसित सोग्रेन (Sogren) टैक्टिकल लूटरिंग ड्रोन (Tactical Loitering Drone) को उसके बेड़े में जोड़ा है। यह सहयोग धार्मिक-राजनैतिक समीकरणों से भी प्रेरित रहा है। सोग्रेन (Sogren) ड्रोन एक हल्का, उच्च गति और कम उड़ान ऊंचाई पर कार्य करने वाला ड्रोन है, जिसे विशेष रूप से शहरी और पर्वतीय इलाकों में निगरानी (surveillance) और सटीक लक्ष्यों की पहचान (target acquisition) के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह ड्रोन अपने साथ सीमित विस्फोटक भी ले जा सकता है, जो इसे केवल निगरानी नहीं बल्कि 'लोइटरिंग म्यूनिशन' (loitering munition) यानी आत्मघाती ड्रोन (suicide drone) की श्रेणी में भी रखता है। भारत ने पंजाब और जम्मू क्षेत्र में ऐसे ड्रोन के कई प्रवेश प्रयासों को विफल किया और उनमें से कुछ को मार गिराने में सफलता भी प्राप्त की। रक्षा मंत्रालय ने इन घटनाओं को प्रमाणित करते हुए कहा कि इन ड्रोन की उत्पत्ति तुर्की तकनीक (Turkish technology) पर आधारित है।
इसके उत्तर में भारत ने बहुस्तरीय प्रतिक्रिया (multi-layered response) दी। सर्वप्रथम, भारत ने अपनी एंटी-ड्रोन युद्ध क्षमताओं (anti-drone warfare capabilities) को और मज़बूत किया। डीआरडीओ (DRDO) द्वारा विकसित स्मार्ट जैमिंग तकनीक (smart jamming technology) और बीईएल (BEL – Bharat Electronics Limited) द्वारा तैयार किए गए "ड्रोन डोम" (Drone Dome) जैसे सिस्टम अब भारत की सीमाओं पर सक्रिय हैं। इन प्रणालियों की मदद से भारत ने सोग्रेन (Sogren) और बायरक्तर (Bayraktar) जैसे तुर्की ड्रोन को हवा में ही निष्क्रिय कर दिया। इसके अतिरिक्त, भारत ने अमेरिकी रीपर एमक्यू-9 (Reaper MQ-9) और इज़रायली हेरॉन टीपी (Heron TP) जैसे हाई एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्यूरेंस (HALE – High Altitude Long Endurance) ड्रोन की मदद से सटीक निगरानी की और सीमा पार स्थित ड्रोन लॉन्च स्थलों की पहचान कर सर्जिकल स्ट्राइक (surgical strike) के माध्यम से उन्हें नष्ट किया।
इसके विपरीत भारत ने अपनी रक्षा नीति में आत्मनिर्भरता (self-reliance), बहुपक्षीय तकनीकी साझेदारियों (multilateral technology partnerships) और सटीक रणनीति (precise strategy) को प्राथमिकता दी है। भारत ने अपनी वायुसेना को सुखोई-30 एमकेआई (Su-30MKI) और फ्रांस से प्राप्त राफेल (Rafale) जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों से लैस किया है, जिनमें अत्याधुनिक एईएसए रडार (AESA radar), मीटिओर (Meteor) जैसी लंबी दूरी की हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलें, और जटिल इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली (electronic warfare systems) शामिल हैं। यही नहीं, भारत ने हालिया संघर्षों में एमक्यू-9 रीपर (MQ-9 Reaper) और हेरॉन ड्रोन (Heron drone) का प्रयोग कर अत्यधिक सटीक हमले किए, जिनसे आतंकी ठिकानों को नष्ट करने में सफलता मिली। इन अभियानों में भारत ने ब्रह्मोस (BRAHMOS) सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल (supersonic cruise missile) का भी उपयोग किया, जो गति और सटीकता दोनों में पाकिस्तान की किसी भी मिसाइल प्रणाली से कहीं आगे है।
एक महत्वपूर्ण बात यह भी रही कि भारत ने इन हमलों में केवल शारीरिक लक्ष्य को नहीं, बल्कि पाकिस्तान की संचार प्रणाली (communication system), रडार नेटवर्क (radar network) और ड्रोन नियंत्रण तंत्र (drone control mechanism) को भी लक्ष्य बनाया। डीआरडीओ और भारतीय वायुसेना की इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर इकाइयों (electronic warfare units) ने पाकिस्तान के चीन-निर्मित कम्युनिकेशन सिस्टम को जाम किया, जिससे उनके ड्रोन दिशाहीन हो गए और लौटने में असफल रहे। यह एक स्पष्ट संकेत है कि युद्ध अब केवल भूमि, जल या वायु तक सीमित नहीं, बल्कि साइबर और इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र (cyber and electronic domain) में भी लड़ा जा रहा है।
2025 के सैन्य टकराव ने यह स्पष्ट कर दिया कि दक्षिण एशिया अब केवल पारंपरिक संघर्षों का क्षेत्र नहीं रहा, बल्कि यह वैश्विक रक्षा आपूर्ति श्रृंखलाओं (global defence supply chains), कूटनीतिक नीतियों (diplomatic policies), और तकनीकी वर्चस्व (technological dominance) की एक जटिल प्रयोगशाला बन चुका है। चीन और तुर्किये जैसे देश अब केवल हथियार बेचने तक सीमित नहीं रहे, बल्कि वे पाकिस्तान के रणनीतिक दृष्टिकोण को भी आकार देने लगे हैं।
फिर भी, इस संघर्ष का सबसे महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि भारत इन बाह्य शक्तियों के संयुक्त प्रयासों के विरुद्ध भी न केवल टिक पाया, बल्कि निर्णायक रणनीतिक बढ़त (decisive strategic edge) हासिल करने में सफल रहा। भारत की आत्मनिर्भर रक्षा नीति — जिसमें स्वदेशी हथियार निर्माण (indigenous weapon production), अंतरराष्ट्रीय रक्षा साझेदारियों का विवेकपूर्ण प्रयोग (judicious use of international defence partnerships), और बहुस्तरीय युद्ध प्रशिक्षण (multi-level military training) शामिल हैं — ने यह सिद्ध कर दिया है कि युद्ध अब केवल शक्ति का नहीं, बल्कि प्रौद्योगिकी (technology), बुद्धिमत्ता (intelligence) और रणनीति (strategy) का खेल बन चुका है।
सोग्रेन ड्रोन की मलबा बरामदगी (wreckage recovery) एक प्रतीकात्मक घटना नहीं थी, बल्कि यह भारत की सुरक्षा संप्रभुता (security sovereignty) के विरुद्ध एक ठोस तकनीकी चुनौती (technical threat) थी, जिसे भारत ने पूर्णतः विफल कर दिया। यह भारत की उस दूरदृष्टि (foresight) का प्रमाण है जो अब केवल रक्षात्मक नहीं, बल्कि भविष्यदर्शी और निर्णायक है। आगे आने वाले वर्षों में, भारत को न केवल सैन्य तकनीक में सर्वोत्तम रहना होगा, बल्कि उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि पाकिस्तान जैसे देश बाहरी शक्तियों के सहारे अंतरराष्ट्रीय सैन्य मानकों (international military standards) की अनदेखी कर, क्षेत्रीय शांति (regional peace) को खतरे में न डाल सकें। इसके लिए सामरिक कुशलता (strategic expertise), कूटनीतिक दृढ़ता (diplomatic firmness) और रणनीतिक आत्मनिर्भरता (strategic self-reliance) की त्रिमूर्ति आवश्यक है — और 2025 का यह टकराव इस बात का प्रमाण है कि भारत उस मार्ग पर अग्रसर है।
हर्ष पांडे स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, जेएनयू, नई दिल्ली में पीएचडी स्कॉलर हैं।