प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ अगले महीने सेवानिवृत्त हो रहे हैं और उनका कहना है कि उन्होंने इस ‘भय और चिंता’ के बीच पूरे समर्पण के साथ देश की सेवा की है कि इतिहास उनके कार्यकाल का कैसे मूल्यांकन करेगा।
प्रधान न्यायाधीश ने ऐसे समय में ‘कमजोर’ पड़ने के लिए खेद जताया, जब वह पद छोड़ने वाले हैं। उन्होंने कहा कि वह भविष्य और अतीत की डर और चिंताओं से ‘बहुत अधिक चिंतित’ हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘जब आप अपनी यात्रा की जटिलताओं से निपट रहे हों, तो एक कदम पीछे हटने, पुनर्मूल्यांकन करने और खुद से पूछने से न डरें कि ‘‘क्या मैं किसी मंजिल की ओर दौड़ रहा हूं, या मैं खुद की ओर दौड़ रहा हूं? अंतर सूक्ष्म है, फिर भी गहरा है। आखिरकार, दुनिया को ऐसे नेताओं की जरूरत है जो सिर्फ महत्वाकांक्षा से नहीं बल्कि उद्देश्य से प्रेरित हों।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जब किसी को अपनी क्षमताओं और मंशाओं में विश्वास की भावना होती है तो उसके लिए परिणामों के बारे में अधिक चिंता करना छोड़ देना तथा उन परिणामों की ओर जाने वाली प्रक्रिया और यात्रा को महत्व देना आसान हो जाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले कुछ सालों में मैंने इस बात को महसूस किया है कि हमारे समाज के लिए योगदान की हमारी क्षमता की जड़ें हमारे आत्म-बोध में और आत्म-कल्याण की क्षमता में निहित हैं।’’
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि गंतव्य तक पहुंचने को लेकर आशंकाओं में उलझने के बजाय लक्ष्य की ओर यात्रा का आनंद लेना चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश ने न्याय प्रणाली की दक्षता बढ़ाने के लिए तकनीकी, प्रशासनिक और बुनियादी ढांचे में सुधार की शुरुआत करने के अलावा सार्वजनिक जीवन को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों पर फैसले सुनाए हैं।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने 13 मई, 2016 को शीर्ष अदालत में पदभार ग्रहण किया था।