महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) भुगतान के लिए आधार-आधारित प्रणाली कथित तौर पर अनिवार्य होने के बीच कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि मोदी सरकार को सबसे कमजोर भारतीयों को उनके सामाजिक कल्याण लाभों से वंचित करने के लिए "प्रौद्योगिकी", विशेष रूप से आधार को हथियार बनाना बंद करना चाहिए। विपक्षी दल ने इसकी निंदा भी की और आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘‘मनरेगा के लिए सर्वविदित तिरस्कार ऐसे प्रयोगों में तब्दील हो गया है जिसमें लोगों को बाहर करने के लिए प्रौद्योगिकी को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।’’
कांग्रेस महासचिव एवं पार्टी के संचार विभाग के प्रभारी जयराम रमेश ने कहा कि मनरेगा के भुगतान को आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के माध्यम से ‘मैनडेट’ करने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय (एमओआरडी) द्वारा निर्धारित समय सीमा का पांचवां विस्तार 31 दिसंबर, 2023 को समाप्त हो गया।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘यह प्रधानमंत्री का अत्यंत गरीब और हाशिए पर रहने वाले करोड़ों भारतीयों को बुनियादी आय अर्जन से बाहर करने का नए साल का खतरनाक तोहफा है।” रमेश ने कहा कि एमओआरडी द्वारा 30 अगस्त, 2023 को जारी एक बयान में कुछ संदिग्ध दावे किए गए थे जैसे कि जॉब कार्ड इस आधार पर नहीं हटाए जाएंगे कि श्रमिक एपीबीएस के लिए पात्र नहीं है और यह कि कुछ ‘परामर्श’ में विभिन्न ‘हितधारकों’ ने एबीपीएस को भुगतान के लिए सर्वोत्तम तरीका पाया है।
रमेश ने कहा कि इसमें यह भी दावा किया गया है कि एबीपीएस श्रमिकों को समय पर भुगतान दिलाने में मदद करता है और लेनदेन अस्वीकृति से बचाता है। उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘पहली बात, अप्रैल 2022 के बाद से, चिंताजनक रूप से 7.6 करोड़ पंजीकृत श्रमिकों को प्रणाली से हटा दिया गया। चालू वित्तीय वर्ष में नौ महीने में 1.9 करोड़ पंजीकृत श्रमिकों को व्यवस्था से हटा दिया गया था। हटाए गए श्रमिकों के जमीनी सत्यापन से पता चला है कि ऐसे श्रमिकों की बड़ी संख्या हैं जिनका नाम गलत तरीके से हटाया गया, यह मोदी सरकार की आधार प्रमाणीकरण और एबीपीएस को लागू करने की जल्दबाजी का परिणाम है।’’