इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गाज़ा में जारी सैन्य कार्रवाई पर स्पष्ट कहा कि “हम अपना काम पूरा करेंगे” क्योंकि हमास अभी भी हथियार नहीं डाल रहा है। उन्होंने ज़ोर दिया कि इज़राइल का मक़सद गाज़ा पर स्थायी कब्ज़ा करना नहीं बल्कि हमास को पूरी तरह खत्म करना और वहां एक गैर-इज़राइली नागरिक प्रशासन स्थापित करना है।
नेतन्याहू ने बताया कि अभियान के अगले चरण में गाज़ा में बचे हुए दो प्रमुख हमास ठिकानों को निशाना बनाया जाएगा, ताकि इज़राइल की सुरक्षा बनी रहे और गाज़ा हमास की पकड़ से मुक्त हो सके। वहीं, गाज़ा में मानवीय संकट लगातार गहराता जा रहा है।
स्थानीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार अब तक 61,400 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें ज़्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं, जबकि 100 से अधिक बच्चों की मौत कुपोषण से हुई है और वयस्क मृतकों में यह संख्या 117 से ज़्यादा हो चुकी है। ताज़ा घटनाओं में, मोराग कॉरिडोर, ज़िकिम क्रॉसिंग और अन्य मदद केंद्रों पर हमलों में कम से कम 26 लोगों की जान गई, हालांकि इज़राइली सेना ने इन घटनाओं में अपनी भूमिका से इनकार किया है।
इस स्थिति ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी झकझोर दिया है—कुछ देश नेतन्याहू के “आतंकवाद खत्म करने” वाले दृष्टिकोण का समर्थन कर रहे हैं, तो कई इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन मानते हुए आलोचना कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठकें जारी हैं और वैश्विक मानवाधिकार संगठन युद्धविराम और मानवीय सहायता की मांग कर रहे हैं।
इज़राइल के भीतर भी नेतन्याहू पर दबाव बढ़ रहा है—तेल अवीव में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और बंधक परिवारों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने समाधान नहीं निकाला तो वे हड़ताल करेंगे। उनका मानना है कि लगातार सैन्य कार्रवाई से बंधकों की जान को खतरा है। इसके बावजूद, नेतन्याहू का रुख अडिग है और वह इसे “हमारे समय की निर्णायक लड़ाई” बताते हैं। उनके मुताबिक, यह संघर्ष केवल सैन्य नहीं बल्कि वैचारिक और सुरक्षा का भी है, जिसे बीच में छोड़ना संभव नहीं है। मौजूदा हालात में गाज़ा संघर्ष सिर्फ एक युद्धक्षेत्र नहीं बल्कि राजनीतिक, कूटनीतिक और मानवीय संकट का केंद्र बन चुका है, जहां हर नया दिन हिंसा, भूख और अनिश्चितता की नई तस्वीर लेकर आता है।