चुनाव आयोग (ECI) ने शनिवार, 21 जून 2025 को कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की उस मांग को खारिज कर दिया, जिसमें 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मतदान केंद्रों की 5 बजे के बाद की CCTV फुटेज को सार्वजनिक करने की बात कही गई थी। आयोग ने मतदाताओं की गोपनीयता और सुरक्षा का हवाला देते हुए कहा कि फुटेज साझा करने से मतदाताओं पर दबाव, भेदभाव या धमकी का खतरा हो सकता है।
आयोग के अधिकारियों ने बताया कि CCTV फुटेज केवल आंतरिक प्रबंधन के लिए उपयोग होती है और यह कानूनन अनिवार्य नहीं है। इसे 45 दिनों तक रखा जाता है, जो चुनाव याचिका दायर करने की अवधि के अनुरूप है। इसके बाद फुटेज को नष्ट कर दिया जाता है ताकि इसका दुरुपयोग न हो, जैसे कि गलत सूचना या दुर्भावनापूर्ण कहानियां फैलाने के लिए। अधिकारियों ने उदाहरण देते हुए कहा, "अगर किसी बूथ पर किसी पार्टी को कम वोट मिले, तो CCTV फुटेज के जरिए यह पता लगाया जा सकता है कि किस मतदाता ने वोट डाला या नहीं, जिसके बाद उन्हें परेशान किया जा सकता है।"
कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस नियम की आलोचना की और इसे "चुनावों में धांधली" का हिस्सा बताया। उन्होंने X पर लिखा, "मतदाता सूची? मशीन-पठनीय प्रारूप नहीं देंगे; CCTV फुटेज? कानून बदलकर छिपाया; चुनाव की फोटो-वीडियो? एक साल में नहीं, 45 दिनों में नष्ट कर देंगे। जवाब देने वाला सबूत नष्ट कर रहा है।"
पिछले साल दिसंबर में, सरकार ने चुनाव आयोग की सिफारिश पर कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स, 1961 के नियम 93 में संशोधन किया, जिसके तहत CCTV और वेबकास्टिंग फुटेज जैसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों को सार्वजनिक निरीक्षण से हटा दिया गया। यह संशोधन पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस आदेश के बाद आया, जिसमें हरियाणा विधानसभा चुनाव की फुटेज साझा करने का निर्देश दिया गया था।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने इस संशोधन का बचाव करते हुए कहा कि यह मतदाताओं की गोपनीयता की रक्षा और AI के जरिए फर्जी कहानियां बनाने से रोकने के लिए किया गया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उम्मीदवारों को उनके निर्वाचन क्षेत्र से संबंधित सभी रिकॉर्ड तक पहुंच बनी रहेगी।
कांग्रेस ने इस कदम को चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता को कमजोर करने वाला बताया और इसे अदालत में चुनौती देने की बात कही। पार्टी के संचार प्रमुख जयराम रमेश ने कहा, "यह चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को और कम करता है।"