वक्फ (संशोधन) विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति की पहली बैठक बृहस्पतिवार को हुई जिसमें अल्पसंख्यक मामलों और कानून मंत्रालयों के अधिकारियों ने मसौदा कानून में प्रस्तावित विभिन्न संशोधनों के बारे में सदस्यों को जानकारी दी।
संसद ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ सदस्य जगदंबिका पाल की अध्यक्षता वाली 31 सदस्यीय समिति को विवादास्पद विधेयक की जांच करने का काम सौंपा है। विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों ने इस विधेयक का विरोध किया है।
लोकसभा सचिवालय ने कहा कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के प्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है कि वे ‘विधेयक पर प्रस्तावित संशोधनों’ पर समिति को जानकारी देंगे।
पाल ने बैठक से पहले कहा कि समिति विधेयक पर विस्तार से चर्चा करेगी और इससे जुड़ी चिंताओं पर भी विमर्श करेगी। उन्होंने कहा कि समिति विभिन्न हितधारकों की आवाज सुनेगी। उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी 44 संशोधनों पर चर्चा करेंगे और अगले सत्र तक एक अच्छा और व्यापक विधेयक लाएंगे।’’
पाल ने कहा कि समिति विभिन्न पंथों का प्रतिनिधित्व करने वाले विभिन्न मुस्लिम संगठनों को बुलाएगी ताकि उनके विचार सुने जा सकें।
यह विधेयक भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार की पहली बड़ी पहल है, जिसका उद्देश्य एक केंद्रीकृत पोर्टल के माध्यम से वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण की प्रक्रिया में सुधार करना है।
यह कई सुधारों का प्रस्ताव करता है, जिसमें मुस्लिम महिलाओं और गैर-मुस्लिम प्रतिनिधियों के प्रतिनिधित्व के साथ राज्य वक्फ बोर्डों के साथ एक केंद्रीय वक्फ परिषद की स्थापना शामिल है।
विधेयक का एक विवादास्पद प्रावधान, जिला कलेक्टर को यह निर्धारित करने के लिए प्राथमिक प्राधिकरण के रूप में नामित करने का प्रस्ताव है कि क्या संपत्ति को वक्फ या सरकारी भूमि के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
विधेयक को आठ अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया था और बहस के बाद संसद की एक संयुक्त समिति को भेजा गया था। सरकार ने जोर देकर कहा कि प्रस्तावित कानून मस्जिदों के कामकाज में हस्तक्षेप करने का इरादा नहीं रखता है जबकि विपक्ष ने इसे मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए उठाया गया कदम और संविधान पर हमला बताया।