सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकार से उस जनहित याचिका पर जवाब मांगा जिसमें दोनों राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाताओं को मुफ्त सुविधाएं बांटने का आरोप लगाया गया है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने जनहित याचिका पर केंद्र, चुनाव आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक को नोटिस भी जारी किया।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा, ''चुनाव से पहले सरकार द्वारा नकदी बांटने से ज्यादा क्रूर कुछ नहीं हो सकता। यह हर बार हो रहा है और इसका बोझ अंततः करदाताओं पर पड़ता है।" वहीं, अदालत ने भट्टूलाल जैन द्वारा दायर जनहित याचिका पर ध्यान दिया और आदेश दिया कि इसे इस मुद्दे पर लंबित याचिका के साथ टैग किया जाए।
गौरतलब है कि जब से राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने एलपीजी और बिजली पर 'मुफ्त' की घोषणा शुरू की है, तब से विपक्ष इसकी कड़ी आलोचना कर रही है। भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया है कि ये योजनाएं चुनावी राज्य के वित्त को नुकसान पहुंचाएंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले भी 'रेवड़ी संस्कृति' या कुछ राज्यों द्वारा सब्सिडी की पेशकश करके वोट आकर्षित करने की प्रथा के बारे में दृढ़ता से बात की है।
हालांकि, राजस्थान के वित्त का विश्लेषण, अन्य राज्यों और इसके अपने इतिहास से तुलना करने पर पता चलता है कि यह अपेक्षाकृत मजबूत स्थिति में है और गहलोत के तहत इसके राजकोषीय स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। इधर मध्य प्रदेश मुफ़्त की राजनीति के लिए तैयार हो रहा है। मुफ्त बिजली से लेकर कैश-इन-हैंड तक के वादे भी मध्यप्रदेश में किये जा रहे हैं।