मेरठ के हाशिमपुरा नरसंहार के मामले में 31 अक्टूबर को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा सजा पाने वाले 15 पीएसी जवानों में सिर्फ 4 ही दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में सरेंडर करने के लिए पहुंचे, जबकि 11 के बारे में कोई सूचना नहीं है। इन्हें तिहाड़ जेल भेजा जाएगा। बाकी जवानों के लिए कोर्ट ने गैर-जमानती वारंट जारी किया है। जानकारी के मुताबिक, नीरज ला, महेश, समी उल्लाह और जयपाल ही दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में सरेंडर करने के लिए पहुंचे, जबकि 11 दोषी अब तक कोर्ट नहीं पहुंचे हैं।
41 लोगों की हत्या करने का आरोप
दिल्ली हाईकोर्ट ने यूपी के 15 रिटायर्ड और कार्यरत पीएसी जवानों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। पहले कहा गया था कि सभी दोषी जवान गुरुवार (22 नवंबर) को दिल्ली की कोर्ट में आत्मसमर्पण कर सकते हैं। वहीं, यह भी जानकारी मिल रही है कि अपने बचाव और पक्ष रखने के लिए सभी दोषी सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल कर सकते हैं। बता दें कि पीएसी के जवानों पर मेरठ के हाशिमपुरा में रहने वाले 41 लोगों की हत्या करने का आरोप है।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर सकते हैं याचिका
19 लोगों पर हाशिमपुरा नरसंहार का आरोप लगाया गया था। अब सिर्फ 15 लोग ही जिंदा बचे हैं। सजा पाने वाले एक शख्स का कहना है कि हमें अभी भी कोर्ट पर पूरा भरोसा है। इसी के चलते हम दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल कर रहे हैं। अभी बहुत सारी चीज ऐसी हैं जो इस केस में छूट रही हैं। हम सभी 15 लोग वकीलों के संपर्क में हैं। दो लोगों की उम्र इस वक्त 70 से अधिक हैं तो बाकी सभी 68 वर्ष से भी कम उम्र के हैं।
हाशिमपुरा कांड में हुई 38 लोगों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा पा चुके 15 सिपाहियों में से पांच सिपाही वर्तमान में ड्यूटी कर रहे हैं। इनमें से आगरा में तैनात एक सिपाही सजा होने से पहले ही गैरहाजिर हो चुका है। वहीं, चार अन्य सिपाहियों के बारे में पता लगाया जा रहा है। इन सिपाहियों को 22 नवंबर तक तीस हजारी कोर्ट में सरेंडर करना है। यदि सरेंडर नहीं करते हैं तो अदालत उनकी गिरफ्तारी के आदेश जारी कर सकती है।
क्या है हाशिमपुरा नरसंहार मामला?
1986 में केंद्र सरकार ने बाबरी मस्जिद का ताला खोलने का आदेश दिया था। इसके बाद पश्चिमी यूपी में माहौल गरमा गया। 14 अप्रैल 1987 से मेरठ में धार्मिक उन्माद शुरू हो गया। कई लोगों की हत्या हुई, तो दुकानों और घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। हत्या, आगजनी और लूट की वारदातें होने लगीं।
इसके बाद भी मेरठ में दंगे की चिंगारी शांत नहीं हुई थी। इन सबको देखते हुए मई के महीने में मेरठ शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा और शहर में सेना के जवानों ने मोर्चा संभाला। इसी बीच 22 मई 1987 को पुलिस, पीएसी और मिलिट्री ने हाशिमपुरा मोहल्ले में सर्च अभियान चलाया।
आरोप है कि जवान यहां रहने वाले किशोरों, युवकों और बुजुर्गों सहित करीब 100 लोगों को ट्रकों में भरकर पुलिस लाइन ले गए। शाम के वक्त पीएसी के जवान एक ट्रक को दिल्ली रोड पर मुरादनगर गंग नहर पर ले गए। उस ट्रक में करीब 50 लोग थे। वहां ट्रक से उतारकर जवानों ने एक-एक करके लोगों को गोली मारकर गंग नहर में फेंक दिया। इस घटना में करीब 8 लोग बच गए थे, जिन्होंने बाद में थाने पहुंचकर इस मामले में रिपोर्ट दर्ज कराई थी।