सुप्रीम कोर्ट में अडानी- हिंडनबर्ग केस में शुक्रवार को सुनवाई हुई। सॉलिसीटर जनरल ने कमेटी के सदस्यों के नाम के सुझाव को लेकर जजों को सीलबंद लिफाफा सौंपा। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र के सुझाव को स्वीकार करने से साफ इनकार करते हुए कहा कि हम सीलबंद लिफाफे को स्वीकार नहीं करेंगे. क्योंकि हम पूरी पारदर्शिता बनाए रखना चाहते हैं। कमेटी की नियुक्ति से जुड़े मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
चीफ जस्टिस ने कहा कि हम अपनी तरफ से कमेटी बनाएंगे। हम आदेश सुरक्षित रख रहे हैं। इससे पहले सुनवाई के दौरान वकील विशाल तिवारी ने कहा कि कंपनियां अपने शेयर की अधिक कीमत दिखाकर कर्ज लेती हैं, यह भी जांच के दायरे में होना चाहिए। जबकि वकील एम एल शर्मा ने कहा कि शॉर्ट सेलिंग की जांच हो। सीजेआई ने कहा कि आपने याचिका दाखिल की है तो बताइए कि शॉर्ट सेलर क्या करता है। इनका काम बिना डिलीवरी शेयर बेचना और मीडिया के जरिए भ्रम फैलाना है।
चीफ जस्टिस ने कहा कि हम निवेशकों के साथ पूर्ण पारदर्शिता सुनिश्चित करना चाहते हैं। हम किसी से भी नाम नहीं ले रहे। हम कमेटी बनाएंगे, लेकिन यह साफ कर दूं कि निगरानी का जिम्मा किसी मौजूदा जज को नहीं सौंपा जाएगा। हम यह निर्देश देंगे कि सभी एजेंसियां कमेटी के साथ सहयोग करें।
भारतीय निवेशकों की सुरक्षा के उपायों पर कोर्ट ने पहले केंद्र और सेबी) के विचार मांगे थे। हिंडनबर्ग रिसर्च की ओर सेधोखाधड़ी के आरोपों से हाल में अडानी समूह के शेयरों में गिरावट के बाद शेयर बाजार के लिए नियामक तंत्र को मजबूत करने की खातिर विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने के कोर्ट के प्रस्ताव पर केंद्र ने सोमवार को सहमति जताई थी।