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इस तरह 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में 34 साल बाद लोगों को मिला न्याय

1984 सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में 34 सालों बाद आज लोगों को न्याय मिला है। दिल्ली हाई कोर्ट की दो...
इस तरह 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में 34 साल बाद लोगों को मिला न्याय

1984 सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में 34 सालों बाद आज लोगों को न्याय मिला है। दिल्ली हाई कोर्ट की दो जजों की बेंच ने इस मामले में सोमवार को निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए सज्जन कुमार को दंगे के लिए दोषी माना और उम्रकैद की सजा सुनाई। उनको आपराधिक षडयंत्र रचने, हिंसा कराने और दंगा भड़काने का दोषी पाया गया है।

वैसे इस मामले की शुरुआत होती है 1984 से, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों द्वारा हत्या किए जाने के बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क गए थे। देशभर में हुए सिख विरोधी दंगों में आज पहला फैसला आ गया है, जब कोर्ट ने कांग्रेस के बड़े नेता रहे सज्जन कुमार को करीब 34 साल बाद दिल्ली हाइकोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। हाइकोर्ट की डबल बेंच ने 29 अप्रैल, 2013 के ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सज्जन कुमार को दंगे के लिए दोषी माना था।

पूर्व कांग्रेस पार्षद बलवान खोखर, रिटायर नेवी अफसर कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और दो अन्य को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद एक नवंबर 1984 को दिल्ली छावनी के राजनगर क्षेत्र में एक परिवार के पांच सदस्यों की हत्या से जुड़े मामले में दोषी ठहराया गया था। निचली अदालत ने इस मामले में सज्जन कुमार को बरी किया था लेकिन खोखर, भागमल और लाल को आजीवन कारावास की जबकि पूर्व विधायक महेंद्र यादव और किशन खोखर को तीन-तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी।

कोर्ट के फैसले के बाद क्या बोले गवाह

34 साल से इस मामले की पैरवी करने वाली 80 वर्षीय जगदीश कौर ने कोर्ट के फैस कहा है कि सज्जन कुमार को फांसी पर लटका देना चाहिए, उम्रकैद की सजा कम है। 1985 में दिल्ली कैंट के राजनगर में रहने वाली जगदीश कौर के घर पर दंगाइयों ने हमला बोल दिया था। इसमें उनके पति केहर सिंह, 18 वर्षीय बेटे गुरप्रीत सिंह और उनके मामा के तीन लड़कों रघुविंदर सिंह, नरेंद्र पाल सिंह और कुलदीप सिंह को घर में ही जलाकर मार दिया गया था। बाकी के बच्चों को किसी और के घर में छुपा कर वह बच्चों समेत बच गई थीं।

'[निचली अदालत के फैसले को दी गई थी चुनौती

दोषियेां ने मई 2013 में आए निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी। सीबीआई ने भी अपील दायर करते हुए आरोप लगाया था कि वे ‘सुनियोजित सांप्रदायिक दंगे’ और ‘धार्मिक रूप से सफाया’ करने में संलिप्त थे। एजेंसी और पीड़ितों ने कुमार को बरी किए जाने के खिलाफ भी अपील दायर की थी।

इस मामले में मौत की सजा भी सुनाई गई

1984 में सिख विरोधी दंगों के मामले में पिछले महीने दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। 1984 दंगों में महिपालपुर में दो सिख युवकों को मारने के अपराध में कोर्ट ने यशपाल सिंह को मौत की सजा सुनाई, वहीं दूसरे दोषी नरेश सेहरावत को उम्रकैद की सजा सुनाई। यह पहली बार है जब 1984 दंगों के मामले में किसी को कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई है। दोनों पर 35 लाख का जुर्माना भी लगाया गया है।

दरअसल, बीते बुधवार को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अजय पांडे ने नरेश सेहरावत और यशपाल सिंह को दंगों के दौरान दक्षिण दिल्ली के महिपालपुर में हरदेव सिंह और अवतार सिंह की हत्या का दोषी ठहराया था। यह मामला हरदेव सिंह के भाई संतोख सिंह ने दर्ज कराया था।

दिल्ली पुलिस ने साक्ष्यों के अभाव में 1994 में यह मामला बंद कर दिया था लेकिन दंगों की जांच के लिए गठित एसआईटी ने मामले की जांच दोबारा शुरू की। अदालत ने दोनों आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की अनेक धाराओं के तहत दोषी ठहराया। फैसला सुनाए जाने के तत्काल बाद दोनों को हिरासत में ले लिया गया।

1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए गठित एसआईटी ने अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए दो लोगों के मामले को दुर्लभ में से दुर्लभतम बताते हुए उन्हें मौत की सजा देने की मांग की थी। हालांकि, दोषियों के वकीलों ने एसआईटी की इस मांग का विरोध करते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा देने की मांग की थी।

सज्जन को गवाह ने पहचान लिया था

पटियाला हाउस कोर्ट में सुनवाई के दौरान दंगों की गवाह चाम कौर ने सज्जन कुमार को पहचान लिया। उन्होंने कोर्ट को बताया कि सज्जन ने ही कहा था, ‘हमारी मां (इंदिरा गांधी) का कत्ल सिखों ने किया है, इसलिए इन्हें नहीं छोड़ना है।’ बाद में भीड़ ने सज्जन के उकसावे में आकर मेरे पिता और बेटे का कत्ल कर दिया।

कौन हैं सज्जन कुमार

सज्जन कुमार कांग्रेसी नेता हैं। 1970 के दशक में बाहरी दिल्ली के मादीपुर इलाके से उन्होंने म्युनिसिपल चुनाव लड़ा और जीते। 1980 में सज्जन कुमार ने चौधरी ब्रह्म प्रकाश को लोकसभा चुनावों में हरा दिया। ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के पहले सीएम रहे थे।

1980 तक सज्जन कुमार का राजनीतिक करियर तेजी से आगे बढ़ा लेकिन 1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद हुए सिख दंगों से उनका राजनीतिक करियर भी प्रभावित हो गया। उसी साल हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने सिख वोट बचाने के लिए उनका टिकट काट दिया। ये सिलसिला 1989 में भी जारी रहा लेकिन 1891 में उन्हें फिर टिकट दिया गया। इसमें वे जीते भी। इसके बाद 1996 में वे बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण शर्मा से हार गए।

इसके बाद 1998 और 1999 फिर से लोकसभा चुनाव में उनका टिकट काट दिया गया। मगर 2004 में उन्हें फिर से टिकट मिला। इस साल उन्होंने अपने नाम दो रिकॉर्ड दर्ज किए। पहला, देश के लोकसभा चुनावों में सबसे ज्यादा वोट पाने का रिकॉर्ड और दूसरा दिल्ली में सबसे ज्यादा वोट से जीतने का रिकॉर्ड।

क्‍या था मामला

एक नवंबर 1984 को हरदेव सिंह, कुलदीप सिंह और संगत सिंह महिपालपुर में अपनी किराने की दुकानों पर थे। उसी समय 800 से 1000 लोगों की हिंसक भीड़ उनकी दुकानों की तरफ आई। भीड़ में शामिल लोगों के हाथों में लोहे के सरिए, लाठियां, हॉकी स्टिक, पत्‍थर, केरोसीन तेल था। इस पर उन्‍होंने (हरदेव,कुलदीप और संगत) ने दुकानें बंद कर दी और वे सुरजीत सिंह नाम के शख्‍स के किराए के घर की तरफ भागे। कुछ समय बाद अवतार सिंह ने भी वहीं शरण ली। उन्‍होंने अंदर से कमरा बंद कर लिया।

दुकानों को जलाने के बाद भीड़ ने सुरजीत के कमरे को निशाना बनाया। उन्‍होंने सभी को बुरी तरह से मारा। उन्‍होंने हरदेव और संगत को चाकू से गोद दिया और सभी लोगों को बालकनी से नीचे फेंक दिया। आरोपियों ने कमरे पर केरोसीन छिड़ककर आग लगा दी। घायलों को बाद में सफदरजंग अस्‍पताल में भर्ती कराया गया जहां अवतार सिंह और हरदेव सिंह की मौत हो गई।

क्यों हुए थे दंगे?

1984 में इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी, जिसके बाद देश के कई शहरों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे। कहा जाता रहा है कि कांग्रेस पार्टी के कुछ कार्यकर्ता इसमें सक्रिय रूप से शामिल थे। इंदिरा गांधी की हत्या सिखों के एक अलगाववादी गुट ने उनके द्वारा अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में करवाई गई।

भारत सरकार की ऑफिशियल रिपोर्ट के मुताबिक पूरे भारत में इन दंगों में कुल 2800 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें से 2100 मौतें केवल दिल्ली में हुई थीं। सीबीआई  जांच के दौरान सरकार के कुछ कर्मचारियों का हाथ भी 1984 में भड़के इन दंगों में सामने आया था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे।

सीबीआई जांच की नानावटी आयोग ने की थी सिफारिश

केहर सिंह, गुरप्रीत सिंह, रघुविंदर सिंह, नरेंद्र पाल सिंह और कुलदीप सिंह की हत्या के बाद उनके परिजनों ने शिकायत दर्ज करायी. उनकी शिकायत और जस्टिस जीटी नानावटी आयोग की सिफारिश पर सीबीआई ने वर्ष 2005 में केस दर्ज किया। सज्जन कुमार, पूर्व विधायक महेंद्र यादव, कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल, कृष्ण खोखर और कांग्रेस के पूर्व पार्षद बलवंत खोखर को आरोपी बनाया गया। 13 जनवरी, 2010 को इनके खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया।

 

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