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SC-ST एक्ट मामला: अब हिंदू महासभा ने पीएम मोदी को खून से लिखा पत्र

एससी-एसटी एक्ट मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद से विवाद लगातार जारी है। इस बीच यूपी...
SC-ST एक्ट मामला: अब हिंदू महासभा ने पीएम मोदी को खून से लिखा पत्र

एससी-एसटी एक्ट मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद से विवाद लगातार जारी है। इस बीच यूपी के दलित संगठन के बाद अब अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खून से पत्र लिखा।

अखिल भारतीय हिंदू महासभा की मांग

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, हिंदू महासभा की ओर से मांग की गई कि एससी/एसटी एक्ट में बदलाव पर केंद्र सरकार ने जो पुनर्विचार याचिका दायर की है, उसे वापस लिया जाए। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में विरोध प्रदर्शन करते हुए कार्यकर्ताओं ने कहा कि यदि ऐसा नहीं होता है तो वे दिल्ली के रामलीला मैदान में विरोध प्रदर्शन करते हुए गंजे हो जाएंगे।

 

याचिका में केंद्र ने कहा, सरकार का मानना हैं कि सुप्रीम कोर्ट तीन तथ्यों के आधार पर ही कानून को रद्द कर सकती है। ये तीन तथ्य है कि अगर मौलिक अधिकार का हनन हों, अगर कानून गलत बनाया गया हो और अगर किसी कानून को बनाने का अधिकार संसद के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता हो।

इसके साथ ही सरकार की ये भी दलील है कि कोर्ट ये नहीं कह सकता है कि कानून का स्वरूप कैसा हो, क्योंकि कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है।

दलित संगठन ने पीएम मोदी और राष्ट्रपति को खून से लिखा था पत्र

इससे पहले यूपी के दलित संगठन के सदस्यों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को खून से पत्र लिखकर अध्यादेश द्वारा कानून बनाने और एक्ट को फिर से बहाल करने की मांग कर रहे हैं। भारतीय दलित पैंथर पार्टी के सदस्यों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को खून से पत्र लिखा है।

पत्र में उन्होंने लिखा, 'महामहिम राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री जी भारत सरकार, एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 को संसद में अध्यादेश द्वारा कानून बनाकर फिर से पहले की स्थिति में बहाल किया जाए।'

ये था सुप्रीम कोर्ट का फैसला

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एससी-एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया था। इसके अलावा इस एक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी के बजाय पुलिस को 7 दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे की कार्रवाई की जाए।

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