मोदी सरकार ने नेहरु मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी सोसायटी के तीन सदस्यों को बाहर रास्ता दिखा दिया है। इन्हें निकालने के पीछे की वजह म्यूजियम को लेकर सरकार के रुख से सहमति नहीं होना था। इनकी जगह जिन तीन सदस्यों को जगह दी गई है, उसमें पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर, पत्रकार अरनब गोस्वामी, भाजपा सांसद और इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशन के अध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धि हैं। इससे पहले मेमोरियल के एक अन्य सदस्य प्रताप भानु मेहता इस्तीफा दे चुके हैं, जिसे स्वीकार कर लिया गया है।
सोसायटी के जिन सदस्यों को हटाया गया है उनमें अर्थशास्त्री नितिन देसाई, प्रोफेसर उदयन मिश्रा और पूर्व नौकरशाह बीपी सिंह हैं। 29 अक्टूबर को जारी मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर के नोटिफिकेशन के अनुसार, नये सदस्यों का कार्यकाल 26 अप्रैल, 2020 तक या अगले आदेश तक रहेगा।
तीन मूर्ति एस्टेट में देश के सभी प्रधानमंत्रियों के म्यूजियम की नींव रखने के कुछ दिनों बाद ही विवाद शुरू हो गया था। नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी सोसाइटी के कुछ सदस्यों ने इस मुद्दे पर सरकार के रुख के प्रति नाराजगी जाहिर की थी। सोसाइटी के एक सदस्य प्रताप भानु मेहता इस मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया था, जिसे 29 अक्टूबर को स्वीकार किया गया। मेहता ने 2016 में ‘राजनैतिक दबाव’ का आरोप लगाया था और उन्होंने पूर्व नौकरशाह शक्ति सिन्हा को लाइब्रेरी का डायरेक्टर बनाए जाने का विरोध किया था।
मनमोहन सिंह ने पीएम को लिखी थी चिट्ठी
वहीं, सरकार के इस फैसले पर कांग्रेस नेता और सोसाइटी के सदस्य जयराम रमेश ने कहा है कि जिन लोगों को बदला गया है, वो लोग मजबूत इच्छाशक्ति वाले लोग हैं।
इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर तीन मूर्ति एस्टेट नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी के स्वरूप में बदलाव नहीं करने को कहा था। उन्होंने लिखा था, नेहरू सिर्फ कांग्रेस के नहीं, बल्कि पूरे देश के नेता थे, लेकिन सरकार एजेंडे के तहत उनसे जुड़े दोनों स्थलों (म्यूजियम और लाइब्रेरी) का स्वरूप और प्रकृति बदलना चाहती है। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए।
मेमोरियल फंड खाली करने पर हाई कोर्ट की रोक
केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के एस्टेट निदेशालय ने तीन मूर्ति भवन में बीते पांच दशकों से चल रहे जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल फंड (जेएलएनएमएफ) को 24 सितम्बर तक खाली करने के लिए नोटिस जारी किया था। जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल फंड की स्थापना 1964 में की गई थी और 1967 से इसका दफ्तर तीन मूर्ति भवन में चल रहा है। हालांकि एक नवम्बर को दिल्ली हाई कोर्ट ने इसे खाली करने पर रोक लगा दी है।
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
                                                 
			 
                     
                    