जीवनशैली में बदलाव करके गुर्दे की बीमारियों से न सिर्फ बचा जा सकता है बल्कि बीमारी के शुरूआती चरण में भी नियंत्रण संभव है। यह कहना है सफदरजंग अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. हिमांशु वर्मा का। डॉ. वर्मा ने यह बात किडनी मंथन कार्यक्रम में कही।
विश्व किडनी दिवस के मौके पर एक से नौ मार्च तक वर्चुअल तरीके से एमिल फार्मास्युटिकल की तरफ से किडनी मंथन कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें देश भर के एलोपैथी और आयुर्वेद के 35 विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। इस कार्यक्रम में जहां विशेषज्ञों ने किडनी की बीमारियों के कारणों पर प्रभाव डाला वहीं बचाव के उपायों खासकर जीवनशैली में बदलाव पर जोर दिया। विशेषज्ञों ने किडनी को स्वस्थ बनाये रखने और उपचार में आयुर्वेद की वैकल्पिक उपचार पद्धतियों जैसे नीरी केएफटी आदि पर भी अपने विचार रखे।
डॉ. हिमांशु वर्मा ने अपने प्रजेंटेशन में बताया कि किडनी की बीमारी होने से लेकर गुर्दा फेल होने तक की बीमारी पांच चरणों में होती है। लेकिन पहले और दूसरे चरण में बीमारी पर पूरी तरह से काबू पाना संभव है। इसके लिए सबसे पहले मरीजों में जागरुकता का होना जरूरी है। आज किडनी बीमारियों पर काबू के लिए बेहद जरूरी है कि बीमारी की जांच हो ताकि शुरूआती चरण में ही बीमारी को पकड़ा जा सके।
इस बीच, विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में किडनी मरीजों की संख्या हर साल तेज गति से बढ़ रही है। ऐसे में एलोपैथी के साथ साथ आयुर्वेद का उपचार और उसकी दवाएं भी किडनी रोगियों की रिकवरी में सक्षम हैं। किडनी मंथन में विशेषज्ञों ने कहा, ''आयुर्वेद में किडनी को मजबूती देने के लिए कई औषधियों का जिक्र है। इनमें पुनर्नवा, गोखरू, वरुण, कासनी, मकोय, पलाश व गिलोय इत्यादि का जिक्र मिलता है और इन्हें लेकर अब तक कई वैज्ञानिक अध्ययन भी किए गए हैं। नीरी केएफटी इसी का परिणाम है जिसमें 19 जड़ी बूटियों का मिश्रण है।"
हाल ही में नई दिल्ली स्थित जामिया हमदर्द विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर एक्सीलेंस के शोधार्थियों ने एक अध्ययन में दावा किया कि जीन के व्यवहार में परिवर्तन से किडनी की बीमारियां होती हैं। जीन के इसी व्यवहार परिवर्तन को नियंत्रित करने में नीरी केएफटी आयुर्वेदिक दवा असरदार है।
चर्चा के दौरान डॉ. हिमांशु वर्मा ने यह भी बताया कि बाडी मास इंडेक्स (बीएमआई) को 20-25 के बीच रखना, सप्ताह में पांच दिन रोज 30 मिनट की सैर, खानपान की शैली में बदलाव जैसे ज्यादा नम और पोटेशियम युक्त भोजन का सेवन नहीं करना, दर्द निवारक दवाओं के सेवन में सावधान, पानी का सेवन तीन लीटर से कम रखना, धूम्रपान छोड़ना आदि ये ऐसे उपाय हैं जो बीमारी को शुरुआती चरण में नियंत्रित करने में कारगर हैं।
किडनी मंथन के समापन पर बोलते हुए आयोजक कंपनी के कार्यकारी निदेशक डा. संचित शर्मा ने कहा कि इस नौ दिवसीय मंथन में गुर्दा बीमारियों से कैसे बचा जाए और बीमारी होने पर कैसे उसका प्रबंधन किया जाए, इस पर व्यापक चर्चा हुई है। यह चर्चा दर्शाती है कि इसके लिए कोई मानक तय नहीं किए जा सकते हैं बल्कि गतिशील दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।