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अयोध्या अमृत महोत्सव : जगतगुरु रामभद्राचार्य का अनुष्ठान प्रारंभ

विश्व में लगभग एक अरब दिव्यांग हैंl इसी के अंतर्गत भारत में भी लगभग तीन करोड़ से अधिक दिव्यांगों की...
अयोध्या अमृत महोत्सव : जगतगुरु रामभद्राचार्य का अनुष्ठान प्रारंभ

विश्व में लगभग एक अरब दिव्यांग हैंl इसी के अंतर्गत भारत में भी लगभग तीन करोड़ से अधिक दिव्यांगों की संख्या हैl इन्हें पहले विकलांग कहा जाता थाl प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने 2 दिसम्बर 2015 को अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को 'दिव्यांग' नाम से संबोधित करने का निर्णय बतायाl विश्व पटल पर जब दिव्यांगों के बारे में विचार करते हैं तो देखने में आता है की ऑस्ट्रेलिया, अफ्रिका, जर्मनी, अमेरिका, ब्रिटेन सहित अनेक देशों में दिव्यांगों ने कहीं गणित तो कहीं भौतिकी, कहीं मीडिया, कहीं संगीत के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि हासिल की हैl यहां तक की एक दिव्यांग को अपने कार्यक्षेत्र में 'नोबेल पुरस्कार' भी मिलाl

लेकिन जब भारत में दिव्यांगों की चर्चा शुरू होती है तो एक ऐसे व्यक्तित्व का नाम उभरकर आता है जो न केवल 140 करोड़ भारतीयों के लिए बल्कि विश्व के करोड़ों लोगों के लिए भी एक आदर्श प्रस्तुत करते हैंl उनके जीवन से न केवल दिव्यांग, बल्कि करोड़ों सर्वांग व्यक्तियों को प्रेरणा मिलती हैl भारत के उस व्यक्तित्व का नाम है जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य उनको कोई दृष्टि बाधित या दिव्यांग कहता है, तो कहते हैं कि मुझे यह अच्छा नहीं लगताl मैने अपनी इन्हीं आंखों से साक्षात भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम के बाल्यकाल रूप देखा है।14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के शांडिल्य खैर गांव में जन्में, जिनका पूर्व में नाम डॉ. गिरिधर लाल मिश्र था, वे जन्म के दो माह बाद ही अपने दोंनों आंखों की ज्योति खो चुके थे, लेकिन उन्होंने साहस नहीं खोयाl 14 जनवरी 2024 को अयोध्या में नौ दिनों तक उनका अमृत महोत्सव मनाने की तैयारी चल रही हैl 

पूज्य रामभद्राचार्य जी के जीवन के अतीत का जब अध्ययन करते हैं तो लगता है कि ईश्वर ने उन्हें साक्षात अपनी शक्ति प्रदान की हैl उन्होंने जीवन में कभी भी ब्रेल लिपि का उपयोग नहीं कियाl जब वे पांच वर्ष के हुए तो श्रीमदभगवत गीता और सात वर्ष की आयु में श्रीरामचरितमानस पूरी तरह से कंठस्थ कर लिया थाl आरंभ से आचार्य (परास्नातक) तक सभी कक्षाओं में प्रथम श्रेणी एवं प्रथम स्थान प्राप्त कियाl संपूर्णानंद संस्कृत विश्विद्यालय वाराणासी से शास्त्री तथा आचार्य में स्वर्ण पदक प्राप्त कियाl तदुपरांत पीएचडी शोध के बाद धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी के निर्देश पर रामानंद संप्रदाय में विरक्त दीक्षित होकर जगतगुरु रामभद्राचार्य के पद पर सर्वसम्मति से मूर्धभिषेक हुएl ऐसे विलक्षण साहित्यकार जिनकी पुस्तकों का लोकार्पण देश के दो सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री क्रमशः अटल बिहारी वाजपेयी तथा नरेंद्र मोदी ने कियाl 240 ग्रंथों का प्रणयन जिसमें चार महाकाव्य सहित साहित्य के सभी विधाओं में रचनाएं रची गईl साहित्य के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित सम्मान साहित्य अकादमी से 2005 में सम्मानित किए गएl

19 नवम्बर 1992 को चित्रकूट मध्य प्रदेश में श्रीतुलसीपीठ की स्थापना रामभद्राचार्य जी द्वारा की गईl श्री तुलसी प्रज्ञाचक्षु दिव्यांग उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की स्थापना की गईl उसके बाद विश्व स्तर पर दिव्यांगों के लिए जगतगुरु रामभद्राचार्य यह विश्व का पहला दिव्यांग विश्वविद्यालय है, जहां से अब तक पांच हजार से अधिक विद्यार्थी अध्ययन कर देश के खासकर उत्तरप्रदेश के अनेक उच्च स्थानों पर पदस्थ है।विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना 2001 में की गईl इसके पश्चात श्री गीता ज्ञान मन्दिर राजकोट गुजरात की स्थापना भी उनके द्वारा की गईl वशिष्ठ अयनम हरिद्वार उत्तराखण्ड की स्थापना भी उनके द्वारा की गईl साहित्य तथा सामाजिक योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा 2015 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गयाl जगतगुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के वे जीवनपर्यंत कुलाधिपति बने रहेंगेl भारत सरकार के स्वच्छता अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उन्हें नौ रत्नों में शामिल किया गयाl

भौतिक नेत्र न होते हुए भी, ब्रेल लिपि के बिना उपयोग के अब तक वे 1275 से अधिक श्रीरामचरितमानस पर कथा प्रवचन कर चुके हैं और श्रीमद्भागवत पर 1115 से अधिक कथा वाचन अभी तक कर चुके हैंl धारा प्रवाह संस्कृत संभाषण में विश्व में उनका कोई जोड़ नहीं हैl वे एक घंटे में 100 श्लोक बनाने की क्षमता रखते हैंl दर्शन काव्य एवं लेखन अप्रतिहर्त गति उन्हें प्रदान हैl तत्काल समस्या पूर्ति पर संस्कृत, हिंदी आदि भाषाओं में वे श्लोक एवं अन्य विधा रच लेते हैंl संयुक्त राष्ट्र संघ न्यूयॉर्क में आयोजित विश्व शांति शिखर सम्मेलन में सोलह मिनट का ऐतिहासिक भाषण संपन्न हुआl वे 22 भाषाओं के ज्ञाता हैंl विश्व में अनेक राष्ट्रों में उनकी कथाएँ संपन्न हुई हैl भारतीय वांगमय के लगभग डेढ़ लाख पृष्ठ वे लिख चुके हैl उनके मस्तिष्क में डेढ़ लाख से अधिक श्लोक रचा-बसा हुआ हैl उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शैक्षिक विषय में शोध करने की उन्हें अनुमति प्रदान की गई हैl

इलाहाबाद हाईकोर्ट में जब रामजन्मभूमि मामले पर बहस चल रहा था तो मुस्लिम पक्ष ने ये सवाल खड़ा किया कि अगर बाबर ने राममंदिर तोड़ा तो तुलसीदास ने जिक्र क्यों नहीं कियाl हिंदू पक्ष के लिए संकट खड़ा हो गया लेकिन तब संकट मोचन बने श्रीरामभद्राचार्य जीl उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 15 जुलाई 2003 को गवाही दी और तुलसीदास के दोहाशतक में लिखे उस दोहे को जज साहब को सुनाया जिसमें बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा राम मंदिर को तोड़ने की बात कही गई है। दोहा इस प्रकार है:

 

रामजन्म मंदिर महिं मंदिरहि तोरि मसीत बनाय।

जबहि बहु हिंदुन हते, तुलसी कीन्ही हाय।।

दल्यो मीर बाकी अवध, मंदिर राम समाज।

तुलसी रोवत हृदय अति, त्राहि त्राहि रघुराज।।

 

जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी बताते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर होने के 437 प्रमाण न्यायालय को दिए गए हैंl वे प्राचीन ग्रंथों का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि वाल्मीकि रामायण के बाल खंड के आठवें श्लोक से श्रीराम जन्म के बारे में जानकारी शुरू होती है। यह सटीक प्रमाण है। इसके बाद स्कंद पुराण में राम जन्म स्थान के बारे में बताया गया है। इसके मुताबिक राम जन्म स्थान से 300 धनुष की दूरी पर सरयू माता बह रही हैं। एक धनुष चार हाथ का होता है। आज भी यदि नापा जाए तो जन्म स्थान से सरयू नदी उतनी ही दूरी पर बहती दिखेगी। इसके पूर्व अथर्व वेद के दशम कांड के 31वें अनु वाक्य के द्वितीय मंत्र में स्पष्ट कहा गया है कि 8 चक्रों व नौ प्रमुख द्वार वाली श्री अयोध्या देवताओं की पुरी है। उसी अयोध्या में मंदिर महल है। उसमें परमात्मा स्वर्ग लोक से आए।

रामभद्राचार्य जी बताते हैं कि वेद में भी श्रीरामजन्म का स्पष्ट प्रमाण है। ऋग्वेद के दशम मंडल में भी इसका प्रमाण है। रामचरितमानस में बहुत ही स्पष्ट लिखा है। तुलसी शतक में कहा गया है कि बाबर के सेनापति व दुष्ट यवनों ने राम जन्मभूमि के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का ढांचा बनाया और बहुत से हिंदुओं को मार डाला। तुलसीदास जी ने तुलसी शतक में इस पर दुख भी प्रकट किया था। मंदिर तोड़े जाने के बाद भी हिंदू साधु रामलला की सेवा करते थेl

स्वामी रामभद्राचार्य जी ने प्रमाणों से इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को चकित कर दिया कि श्री रामलला अयोध्या उसी विवादित स्थल पर विराजते हैंl उनके दिए गए तर्कों के तारतम्य में ही उच्चतम न्यायालय में भी बहस हुई तो अधिवक्ताओं ने उनके द्वारा प्रस्तुत तथ्यों को न्यायाधीशों के सामने प्रस्तुत कियाl यह कहने में कोई संकोच नहीं कि श्रीरामजन्मभूमि पर ही अयोध्या में श्री रामलला विराजते हैं, के पक्ष में निर्णय लेने में रामभद्राचार्य जी की बहुत बड़ी भूमिका रही हैl यह जगजाहिर है कि वे संकल्प के प्रति इतने दृढ़ रहते हैं कि उन्होंने वृंदावन में अनेकों बार कथा की लेकिन भगवान बांके बिहारी के दर्शन करने नहीं गएl उन्होंने प्रण लिया है की जबतक श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद समाप्त नहीं होगा तब तक मैं वहां दर्शन करने नहीं जाऊंगाl

वे बिहार के सीतामढ़ी जिले में तीन किलोमीटर दूरी पर स्थित पुनौराधाम मां जानकी (सीताजी) प्राकट्यस्थल है, यह शास्त्रों के आधार पर सिद्ध किया और उन्होंने मुझे बुलाकर कहा कि 'मैं यहां पर तब तक जानकी नवमी में कथा करता रहूंगा जब तक यहां स्थित मन्दिर का जीर्णोद्धार नही होगा और यह धार्मिक पर्यटन स्थल नही बन जाएगाl' उनके कहने पर मैंने राज्य सभा में यह विषय उठायाl विश्व के सामने यह बात पहली बार आई कि जगत जननी मां मिथलेश्वरी का प्राकट्यस्थल पुनौराधाम हैl स्वतंत्रता के बाद पहली बार यह हुआ कि गुरुजी और मेरे आग्रह पर बिहार के तत्कालीन राज्यपाल डॉ रामनाथ कोविंद, जो बाद में देश के राष्ट्रपति बने, तथा जानकी नवमी पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पुनौराधाम पधारे थेl गुरुजी एवं सीतामढ़ीवासियों सहित मिथिला सहित विश्व के एक-एक व्यक्ति के मन में यह गर्व है कि 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान श्रीरामलला की प्राणप्रतिष्ठा होने जा रही हैl लेकिन करोड़ों मिथिलावासियों और देश वासियों के मन में यह विचार अभी तक बना हुआ है कि मां सीता प्राकट्यस्थल का जीर्णोद्धार वृहद रूप से कब प्रारम्भ होगा और अयोध्या धाम की तरह कब पुनौराधाम कब बनेगाl गुरु जी अक्सर कहते हैं की ' बिना राम के सीता नहीं और बिना सीता के राम नहीं'l प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कभी जय श्रीराम नही कहते बल्कि वे कहते हैं जय सियाराम।

 

सीया राममय सब जग जानी।

करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।

जानि कृपाकर किंकर मोहू।

सब मिलि करहु छाड़ि छल छोहू।।

 

जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य विश्व में न केवल दिव्यांगों की, बल्कि करोड़ों लोगों के आराध्य हैंl इसलिए आराध्य हैं की दृष्टि बाधित होने के बावजूद जो उन्होंने 75 वर्ष के अपने अमृतकाल में जो कुछ किया है वह विश्व में भारत की संस्कृति एवं सांस्कृतिक जागरण के लिए अद्वितीय, अतुलनीय और अस्मरणीय हैl यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 अक्टुबर 2023 को जब चित्रकूट पहुंचे तो उन्होंने कहा कि ' रामभद्राचार्य जी हमारे भारत राष्ट्र के धरोहर हैंl

 

(इस लेख को भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राज्य सभा सांसद प्रभात झा ने लिखा है)

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