भारत और यूनाइटेड किंगडम के रिश्ते ब्रेक्जिट के बाद एक तरह से नए सिरे से बन हो रहे हैं। इस बीच एक प्रमुख ब्रिटिश थिंकटैंक ने यूके सरकार को कहा है कि वह भारत से ज्यादा उम्मीदें न रखे। चैथम हाउस की नई रिपोर्ट कहती है कि "भारत को वह तवज्जो देनी चाहिए जिसका वह हकदार है, लेकिन यूके सरकार को यह मानना चाहिए कि इस रिश्ते से उसे आर्थिक हो या कूटनीतिक सीधे तौर पर फायदा होना मुश्किल है।" 'ग्लोबल ब्रिटेन, ग्लोबल ब्रोकर' शीर्षक से छपी इस रिपोर्ट में ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन की भविष्य की विदेश नीति का खाका पेश किया गया है। इसमें कहा गया है कि क्या यूके अपनी ताकत के बावजूद दुनिया पर अपने कम होते प्रभाव को रोक पाएगा। रिपोर्ट में भारत को उन चार 'मुश्किल' देशों की सूची में रखा गया है जो यूके लिए 'प्रतिद्वंदी' साबित होंगे। इसके अलावा भारत की घरेलू राजनीति को भी इलमें रूकावट बताया गया है।
चैथम हाउस ने रिपोर्ट में कहा है कि ब्रिटेन को रणनीतिक नजरिए में बदलाव लाने की जरूरत है। इसमें भारत को चीन, सऊदी अरब और तुर्की के साथ रखते हुए इन चारों को 'डिफिकल्ट फोर' बताया गया है। ब्रिटिश सरकार को भारत के साथ मजबूत संबंध विकसित करने की दिशा में वास्तविकता समझते हुए लक्ष्य तय करने चाहिए। इसमें कहा गया है कि यूके के लिए भारत जरूरी है. लेकिन भारत के साथ और गहरे रिश्तों का विचार जरूरी है। ब्रिटिश शासनकाल की विरासत लगातार रिश्तों में रुकावट बनती रही है। इसके मुकाबले अमेरिका भारत का सबसे अहम रणनीतिक साझेदार बन गया है। हाल के यूके हाशिए पर आया है और अमेरिकी प्रशासनों ने द्विपक्षीय सुरक्षा संबंधों को और मजबूत किया है।
रिपोर्ट कहती है कि भारत की जटिल, बिखरी हुई घरेलू राजनीति ने उसे मुक्त व्यापार और विदेशी निवेश का सबसे ज्यादा प्रतिरोध करने वाले देशों में बना दिया है। सत्ताधारी बीजेपी का सीधे तौर पर हिंदू राष्ट्रवाद मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक धार्मिक समूहों के अधिकारों को कमजोर कर रहा है, जिससे नेहरू से विरासत में मिले एक धर्मनिरपेश लोकतांत्रिक भारत की जगह असहिष्णु बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा मिला है।
रिपोर्ट में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की लोकतांत्रिक देशों का क्लब डी10 बनाने की पहल की भी आलोचना की गई है। भारत का इतिहास रहा है कि वह पश्चिमी कैंप में शामिल होने का विरोध करता आया है। उसने शीत युद्ध के समय गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया और 2017 में औपचारिक रूप से चीन और रूस के नेतृत्व वाले शंघाई सहयोग संगठन में शामिल हो गया। रिपोर्ट भारत के कूटनीतिक व्यवहार पर कहा गया है कि चीन के साथ सीमा पर झड़पों के बावजूद भारत उन देशों के समूह में शामिल नहीं हुआ जिसने शिनजियांग में मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर जुलाई 2019 में यूएन के भीतर चीन की आलोचना की थी। भारत ने हांगकांग में नए सुरक्षा कानून के पारित होने की आलोचना भी नहीं की।