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बीआरएस एमएलसी के. कविता ने किया पुस्तक का विमोचन, कहा- संसद की सीटों में महिलाओं के लिए बढ़ाया जाना चाहिए आरक्षण

नई दिल्ली। बीआरएस पार्टी के एमएलसी के. कविता ने पत्रकार निधि शर्मा की पुस्तक का विमोचन दिल्ली के...
बीआरएस एमएलसी के. कविता ने किया पुस्तक का विमोचन, कहा- संसद की सीटों में महिलाओं के लिए बढ़ाया जाना चाहिए आरक्षण

नई दिल्ली। बीआरएस पार्टी के एमएलसी के. कविता ने पत्रकार निधि शर्मा की पुस्तक का विमोचन दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में किया । 'शी द लीडर: वुमन इन इंडियन पॉलिटिक्स' नामक पुस्तक में देश के 17 प्रख्यात महिला नेताओं को शामिल किया गया है।

इस मौके पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, बीआरएस से एमएलसी के कविता, मनीष तिवारी के अलावा अन्य महिला नेताओं ने शिरकत की। 17 प्रख्यात महिला नेता जिन्होंने सामाजिक समानता और महिला उन्नति सहित समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपने अपार प्रयासों से अपने लिए एक विशेष पहचान हासिल की है। 17 प्रमुख नेताओं में कविता कल्वाकुंतल, सोनिया गांधी, सुचेता कृपलानी, जयललिता, वसुंधरा राजे, शीला दीक्षित, मायावती, प्रतिभा पाटिल, सुषमा स्वराज, ममता बनर्जी, बृंदाकरत, अंबिका सोनी, स्मृति ईरानी, सुप्रिया सुले, कनिमोझी शामिल हैं।

बीआरएस एमएलसी कल्वाकुंतल कविता ने देश की प्रगति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी की कामना की। उन्होंने सुझाव दिया कि भाजपा को महिला विधेयक पर अपनी ईमानदारी साबित करनी चाहिए और इस बात पर अफसोस जताया कि कांग्रेस पार्टी महिला विधेयक पर सवाल क्यों नहीं उठा रही है। उन्होंने साफ किया कि संसद की सीटों में महिलाओं के लिए आरक्षण बढ़ाया जाना चाहिए और यही उनके नेता सीएम केसीआर की नीति है।

उन्होंने कहा कि महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के मामले में जो सभी घरों में हो रहा है वही राजनीतिक दलों में भी हो रहा है। जब तक महिलाओं के पर्याप्त प्रतिनिधित्व का अनिवार्य प्रावधान नहीं होगा तब तक पार्टियों में यही स्थिति बनी रहेगी। उन्होंने कहा कि इस बात पर चर्चा हो रही है कि आधी आबादी वाली महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत की जगह 33 प्रतिशत आरक्षण क्यों है।

उन्होंने कहा कि अगर केंद्र की सबसे बड़ी बहुमत वाली बीजेपी सरकार महिला बिल पास कराना चाहती है तो एक मिनट काफी है, केंद्र उस तरह से नहीं सोच रहा है। उन्होंने पूछा कि केंद्र सरकार आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम के नाम बदलने और नए कानून लाने के लिए तीन विधेयक क्यों लाई और महिला विधेयक क्यों नहीं लाई। उन्होंने कहा कि संसद की सीटों में बढ़ोतरी कर महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए।

उन्होंने चिंता व्यक्त की कि कॉर्पोरेट क्षेत्र में महिलाओं के लिए बोर्डरूम में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है और भेदभाव जारी है। महिलाओं द्वारा शुरू की गई लगभग 80 प्रतिशत स्टार्ट-अप कंपनियां बैंकों द्वारा समर्थित नहीं हैं और यहां तक कि बैंकों द्वारा प्रदान की जाने वाली सहायता के संबंध में भी, वे पुरुषों के व्यवसायों की तुलना में महिलाओं के व्यवसायों को कम फंडिंग देते हैं। उन्होंने पूछा कि रोजगार क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिशत हर साल घट रहा है और शिक्षित महिलाएं कहां जा रही हैं। देश में केवल 29 फीसदी महिलाएं ही कार्यरत हैं, अगर ऐसा है तो देश का विकास नहीं हुआ है और समाज में बदलाव की जरूरत है। उन्होंने पूछा कि अदालतों में कितनी महिला जज हैं।

उन्होंने इस बात की सराहना की कि महिला सरपंच घर-घर जाकर कर एकत्र कर रही हैं और करों के रूप में पंचायतों की आय बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं। तेलंगाना सरकार ने बाजार समिति पदों में भी आरक्षण प्रदान किया है। उन्होने कहा कि भारत में अनिवार्य मतदान का प्रावधान होना चाहिए। उन्होने इस बारे में गंभीरता से सोचने और दुनिया भर में इसी तरह की प्रणालियों का अध्ययन करने का सुझाव दिया।

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