राफेल विमान सौदे पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में कई सवाल उठाए गए हैं। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि फ्रांस सरकार से सॉवरेन गारंटी मांगी गई थी लेकिन 'लेटर ऑफ कम्फर्ट' दिया गया, जिसकी वजह से भारत का पक्ष कमजोर हुआ। केंद्र सरकार ने बुधवार को यह रिपोर्ट राज्य सभा में पेश की।राफेल को लेकर कांग्रेस और भाजपा में आरोप-प्रत्यारोप लगातार चल रहा है।
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि 2007 में यूपीए के दौरान हुई डील में 15 प्रतिशत बैंक गारंटी शामिल थी न कि अग्रिम भुगतान। कैग ने चिंता जताई है कि समझौते के उल्लंघन के मामले में भारत को अब पहले फ्रांसीसी विक्रेताओं के साथ मध्यस्थता के जरिए मामले को निपटाना होगा। अगर मध्यथता के जरिए मामला भारत और दॉसो एविएशन के पक्ष में जाता है तो राफेल जेट निर्माता इसे नहीं मानेंगे और भारत को उपलब्ध सभी कानूनी पहलुओं को छोड़ना होगा। इसके बाद ही फ्रांसीसी सरकार दॉसो एविएशन की ओर से भुगतान करेगी।
बैंक गारंटी का नहीं रखा प्रावधान
भारत ने पहली बार 36 राफेल लड़ाकू जेट विमानों की खरीद के लिए फ्रांस के साथ एक अंतर सरकारी समझौते (आईजीए) पर हस्ताक्षर किए। इससे पहले भारत ने आईजीए के तहत यूएस, यूके और रूस के साथ इसी तरह के हस्ताक्षर किए हैं। 2007 में की गई डील में आईजीए के तहत मेसर्स डीए (दॉसो एविएशन) की तरफ से अग्रिम भुगतान के बजाय 15 प्रतिशत बैंक गारंटी, पांच फीसदी वारंटी और परफॉर्मेंस गारंटी थी।
कानून मंत्रालय ने दी थी सलाह
विक्रेता की ओर से करार के उल्लंघन पर बैंक गारंटी खुद ही खत्म हो जाती लेकिन 2015 में मौजूदा सरकार के साथ किए गए करार में परफॉर्मेंस और बैंक गारंटी को शामिल ही नहीं किया गया। चूंकि 60 प्रतिशत अग्रिम भुगतान फ्रांसीसी विक्रेताओं को किया जाना था। कानून और न्याय मंत्रालय ने सलाह दी थी कि प्रस्तावित खरीद के मूल्य को देखते हुए एक सरकारी या सॉवरन गारंटी का अनुरोध किया जाना चाहिए।
एस्क्रो अकाउंट पर सहमत नहीं हुई फ्रांस सरकार
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि फ्रांसीसी सरकार और दॉसो एविएशन ने न तो बैंक गारंटी देने की सहमति दी और न ही सरकारी या सॉवरेन सरकारी गारंटी। बैंक गारंटी के बदले फ्रांसीसी प्रधानमंत्री द्वारा हस्ताक्षरित एक 'लेटर ऑफ कम्फर्ट' दे दिया गया। सॉवरेन गारंटी और और 'लेटर ऑफ कम्फर्ट' पर यह मुद्दा सितंबर 2016 में सीसीएस में विचार के लिए दिया गया था। तब सीसीएस ने कहा था कि इस पर फ्रांस सरकार भी आश्वासन दे कि वह फ्रांसीसी आपूर्तिकर्ताओं पर भुगतान को लेकर प्रभावी निगरानी रखेंगे लेकिन फ्रांस सरकार एस्क्रो अकाउंट की बात पर सहमत नहीं हुई क्योंकि उसका मानना था कि पहले से दी गई गारंटी ही काफी है।