संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को अपना जवाब दाखिल कर दिया है। केंद्र ने कहा है कि सीएए किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता और इससे संवैधानिक नैतिकता के उल्लंघन होने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
याचिकाओं पर पांच जजों की संवैधानिक पीठ सुनवाई कर रही है। अधिकांश याचिकाओं में कहा गया है कि यह कानून संविधान की आत्मा के खिलाफ है। पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के लिए कहा था। अब केंद्र सरकार ने अपना जवाब दाखिल कर दिया है। मंगलवार को केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा है कि सीएए किसी भी मौजूदा अधिकार पर लागू नहीं होता है जो संशोधन लागू होने से पहले मौजूद थे।
विभिन्न दलों ने दी है चुनौती
सीएए की संवैधानिक वैधता को इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग, पीस पार्टी, असम गण परिषद, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन, जमायत उलेमा ए हिन्द, जयराम रमेश, महुआ मोइत्रा, देव मुखर्जी, असददुद्दीन ओवेसी, तहसीन पूनावाला व केरल सरकार सहित अन्य ने चुनौती दी है। इसके अलावा भीम आर्मी के चंद्रशेखर ने दायर याचिका में कहा है कि सीएए अनुसूचित जाति और जनजाति के नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
क्या है सीएए
दायर याचिकाओं में 10 जनवरी से लागू होने वाले कानून के संचालन पर भी रोक लगाने की मांग की गई थी। दरअसल, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर को नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को मंजूरी दी थी जिससे यह कानून बन गया था। बता दें कि सीएए गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों- हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है- जो धार्मिक उत्पीड़न के बाद 31 दिसंबर, 2014 तक अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत चले आए थे।