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अपनी बात: शिक्षा कम्यूनिटी पुलिसिंग का हिस्सा

सफल छात्र या छात्राएं जब मिलने आती हैं, तब पता चलता है कि हमारे कार्यक्रम से बहुत से छात्र और छात्राएं...
अपनी बात: शिक्षा कम्यूनिटी पुलिसिंग का हिस्सा

सफल छात्र या छात्राएं जब मिलने आती हैं, तब पता चलता है कि हमारे कार्यक्रम से बहुत से छात्र और छात्राएं प्रेरित हो रहे हैं

पिताजी के तबादले-दर-तबादले के बाद जब मैं भोपाल पहुंचा, तो स्कूल में कुछ छात्रों ने व्यंग्य किया, “ये बिहारी है।” किसी ने “ऐ बिहारी” कह कर भी पुकारा। सुन कर बड़ा खराब लगा। मैं सोचने लगा, आखिर बिहार में ऐसा क्या है, जिसकी वजह से इस राज्य के बारे में इस तरह उपहास किया जा रहा है। उसी दिन ठान लिया कि एक दिन सबको बताऊंगा कि बिहार क्या है। हालांकि बिहार के मिट्टी-पानी ने ऐतिहासिक रूप से अपनी उर्जा से पूरी दुनिया को पहले ही बता दिया है। फिर उम्र बढ़ने के साथ यह एहसास तो हुआ कि कहीं-कहीं बिहार के लोगों के मन में दीनता-हीनता का बोध जरूर है। तब मैंने ‘लेट अस इन्सपायर बिहार’ नाम से एक क्रार्यक्रम शुरू किया। इस कार्यक्रम के जरिये यह संदेश देना था कि हमारे पूर्वज कितने महान और बड़े शासक थे।

आज भी मैं अपने एक सहपाठी के व्यंग्यात्मक भाव से पूछे गए सवाल, “तुम बिहारी हो?” को नहीं भूल पाता। तब बहुत व्यथित हुआ कि जिस बात पर गर्व करना चाहिए वह हास्य का विषय बन गया है। मैं खुद से सवाल पूछता था, हीनता का भाव पैदा करने का गुनाहगार आखिर कौन है? क्यों यहां की पीढ़ी पूर्वजों के असीमित ज्ञान भंडार पर गर्व नहीं करती? यह तो वही मिट्टी है, जहां से ज्ञान की रोशनी पूरी दुनिया में फैली। जब कैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड की कल्पना तक नहीं थी उस समय नालंदा, विक्रमशिला सहित इन केंद्रों में ज्ञान लेने के इच्छुक कई विदेशी शुल्क के रूप में स्वर्ण मुद्राएं देकर अध्ययन करने आते थे। तिब्बत तो इसका उदाहरण है ही, चीन भी है। जहां के फाह्यान, इत्सिंग आदि ज्ञान की रोशनी में यहां खिंचे चले आए थे। हीनता के लिए हम ही जिम्मेदार हैं। लेकिन फिर सोचा इसे बदलेंगे भी हम ही। परिवर्तन होना है, तो इस परिवर्तन को भी हम ही करेंगे। बस, युवकों में संकल्प की जरूरत है। दृढ़ इच्छा-शक्ति की जरूरत है। ये सारी चीजें, तत्व यहां विद्यमान हैं, जिससे हम अपने राज्य की महानता को पुर्नस्थापित कर सकते हैं। जरा बिहार के स्वर्णिम इतिहास के पन्नों को पलट कर देखिए, यहां जाति के आधार पर शासन नहीं हुआ। महान चंद्रगुप्त और अशोक की सीमाएं जातीय बंधन से मुक्त होकर अफगानिस्तान और विशाल पूर्वोत्तर भारत तक थीं। आखिर उस अखंड भारत की राजधानी बिहार ही क्यों थी? जबकि उन दिनों न तो संचार के माध्यम थे न ही आज की तरह विकसित विज्ञान और तकनीक।

मेरे कार्यक्रम से कितने छात्र लाभान्वित हुए पता नहीं पर, शिक्षा के क्षेत्र में गार्गी कार्यक्रम के माध्यम से नारी शिक्षा का अलख जरूर जगा। गांव-देहात की होनहार बेटियां इससे जुड़तीं चलीं गईं और इसकी विशाल श्रृंखला बनती जा रही है। सफल छात्र या छात्राएं जब मिलने आतीं हैं, तब पता चलता है कि ये हमारे कार्यक्रम से बहुत से छात्र और छात्राएं प्रभावित-प्रेरित हो रहे हैं। कौन कहां सफल हुआ इसकी गिनती नहीं रखता। मेरा काम भावनात्मक बदलाव लाना है। हीनता के बोध तब रोहतास किले पर नक्सलियों का कब्जा था। कोई सरकारी अमला उस पर तिरंगा नहीं फहरा सकता था। मैंने लोगों से बातचीत की। उनके भीतर जज्बा पैदा किया कि कभी आपके ही पूर्वज यहां राजा थे। यह शेरशाह सूरी की राजधानी रही है। मेरी इन बातों से गांव-गांव में शिक्षा का अलख जगने लगा। पहाड़ हो या मैदानी इलाका लालटेन की टिमटिमती रोशनी में मेरा अमला निकल जाता और उन्हें अतीत की याद दिलाता। मेरे प्रयास से नक्सलियों के ऑपरेशन विफल होने लगे। मेरा प्रयास अहिंसक था। इससे बौखलाए नक्सलियों ने मुझे शिकार बनाना चाहा पर सफल नहीं हो सके। मैं जहां-तहां गाड़ी से उतर कर लोगों के घर तक चला जाता। पढ़ रहे बच्चों से सवाल करता। उन्हें कुछ समझा कर, बता कर फिर वहां से चल देता। इसे पुलिसिया भाषा में गश्ती कहें या शिक्षा अलक का ही एक पार्ट। लोग जुड़ते गए और वह दिन भी आया जब लोगों के सहयोग से आजादी के बाद पहली बार पुलिस ने रोहतास के किले पर तिरंगा लहरा दिया। हालांकि यह कम्युनिटी पुलिसिंग की सफलता भी है। कम्युनिटी पुलिसिंग के एक भाग में शिक्षा भी है। दूसरे अपराध ग्रस्त जिलों में भी मेरे साथ मेरा कार्यक्रम चलता रहा। अपराध के नक्शे पर लाल निशान रखने वाली पुलिस जिला बगहा में भी डाकुओं ने विभिन्न संदेशों और शिक्षा के माध्यम से ही आत्मसमर्पण किया। मेरी सोच हमेशा से ही सोच बदल कर सकारात्मक परिवर्तन लाने की रही है।

(विकास वैभव फिलहाल बिहार में परामर्शी, राज्य योजना परिषद के पद पर कार्यरत हैं। संजय उपाध्याय से बातचीत पर आधारित।)

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