सीबीआई के नए डायरेक्टर की नियुक्ति के लिए आज सेलेक्ट कमेटी की बैठक होनी है। सेलेक्ट कमेटी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई शामिल होंगे।
ये हाई लेवल कमेटी तय करेगी कि सीबीआई का अगला डायरेक्टर कौन होगा। पिछले दिनों 10 जनवरी को सेलेक्ट कमेटी ने तत्कालीन सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा का ट्रांसफर कर दिया था। खड़गे ने वर्मा को हटाए जाने का विरोध किया था। इसके अगले दिन आलोक वर्मा ने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से ही डायरेक्टर की पोस्ट खाली है।
तीन बैच के अफसरों की बनाई है सूची
डीओपीटी (डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग) ने डीजीपी स्तर के करीब दस नामों की लिस्ट तैयार कर ली है। इस लिस्ट में 1983, 1984, और 1985 बैच के आईपीएस अफसरों को शामिल किया गया है। बताया जाता है कि इसमें 1985 बैच के मुंबई के पुलिस आयुक्त सुबोध कुमार जायसवाल, उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह और एनआईए के चीफ वाईसी मोदी का नाम भी शामिल है।
खड़गे ने पीएम को लिखा था पत्र
इससे पहले सेलेक्ट कमेटी की बैठक 21 जनवरी को होनी थी, लेकिन खड़गे के अनुरोध पर इसे टाल दिया गया था। फिलहाल एम नागेश्वर राव सीबीआई के अंतरिम डायरेक्टर हैं। उनकी नियुक्ति के बाद काफी विवाद खड़ा हुआ था। इसको लेकर खड़गे ने पीएम को एक पत्र भी लिखा था। खड़गे ने इस पत्र में राव की नियुक्ति को गैरकानूनी बताया था और बिना किसी देरी के नए सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति के लिए सेलेक्ट कमेटी की बैठक बुलाने के लिए निवेदन किया था।
विवादों में रही है जांच एजेंसी
देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी का खिताब पाने वाली सीबीआई पिछले काफी समय से विवादो के घेरे में रही है। सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा और जांच एजेंसी के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के बीच छिड़ी जंग सार्वजनिक होने के बाद सरकार ने दोनों अधिकारियों को उनके अधिकारों से वंचित कर छुट्टी पर भेजने का निर्णय किया था। दोनों अधिकारियों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे।
'लगा सीबीआई की साख पर बट्टा'
सीबीआई पर उठ रहे सवालों पर पूर्व संयुक्त निदेशक एन के सिंह का कहना था कि कुछ हुआ या नहीं पर एक बात साफ हो गई कि इन विवादों से सीबीआई की साख पूरी तरह से खत्म हो गई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में साफ कहा गया था कि आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजना गैर-कानूनी था और ये भी कहा कि सीवीसी ने अपने अधिकार क्षेत्र से आगे बढ़कर ये काम किया। मामले में सीवीसी की भूमिका भी शुरू से अच्छी नहीं रही क्योंकि सरकार के कहने पर उन्होंने गैर-कानूनी ऑर्डर पास कर दिया।