उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका अनीता देवी (बदला नाम) कई दिनों से बुखार में हैं। पिछले सप्ताह जब से वे पंचायत चुनावों की ड्यूटी से लौटी हैं, उनकी तबीयत ठीक नहीं है। पहले तो उन्हें लगा कि सामान्य बुखार होगा, लेकिन जब जीभ का स्वाद चला गया तब से काफी डरी हुई हैं। कोरोना जांच कराने की बजाय फिलहाल घर पर हैं और स्थानीय डॉक्टर से इलाज करा रही हैं।
स्पष्ट लक्षणों के बावजूद उन्होंने कोरोना की जांच क्यों नहीं करायी? इस सवाल के जवाब में उनका कहना है कि सरकारी अस्पतालों का इतना बुरा हाल है, जांच कराने कहां जाएं? वह खुद को संक्रमित मानकर सेल्फ आइसोलेशन में हैं और स्थानीय डॉक्टर की बतायी दवाएं ले रही हैं। पंचायत चुनावों की ड्यूटी से लौटे सरकारी शिक्षकों और कर्मचारियों की मौत की खबरों ने उनका डर बढ़ा दिया है। उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने पंचायत चुनावों के दौरान कोरोना संक्रमण से 706 शिक्षकों व कर्मचारियों की मौत का दावा करते हुए मृतकों की पूरी सूची मुख्यमंत्री और राज्य निर्वाचन आयोग को भेजी है। प्राथिमक शिक्षक संघ के महामंत्री संजय सिंह का कहना है कि पंचायत चुनाव के दौरान 700 से ज्यादा शिक्षकों की मौत के बावजूद सरकार ने ना तो मृतकों के परिजनों को मुआवजे का ऐलान किया है और न ही 2 मई को होने वाली मतगणना स्थगित की है। इससे बाकी लोगों में भी संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ गया है।
ग्रामीण इलाकों में कोरोना के कहर को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले की स्थिति से समझा जा सकता है। एक अप्रैल को जिला बिजनौर में कोरोना के मात्र 39 एक्टिव केस थे, जिनकी तादाद 29 अप्रैल को बढ़कर 3,390 तक पहुंच गई। 29 अप्रैल को जिले में कोरोना के 674 नए मामले सामने आए हैं जबकि वास्तविक स्थिति आंकड़ों से कहीं ज्यादा भयावह है। गांव-गांव में लोग बुखार, खांसी-जुकाम से दम तोड़ रहे हैं। लेकिन सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, अप्रैल के पूरे महीने में कोरोना से बिजनौर में सिर्फ 10 लोगों की मौत हुई है। जबकि कोरोना और बुखार से 11 लोगों के मरने की खबर स्थानीय अखबारों में 29 अप्रैल के दिन ही छपी है। आसपास के जिलों मेरठ, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर और अमरोहा की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज संक्रमण और मौत के आंकड़े जमीनी हालात से मेल नहीं खा रहे हैं।
मौत के सरकारी आंकड़ों पर सवाल उठाते हुए बिजनौर निवासी भारतीय किसान यूनियन के नेता दिगंबर सिंह कहते हैं कि गांवों की स्थिति बहुत खराब है। हर गांव में दर्जनों लोग बुखार-जुकाम से पीड़ित हैं। कोरोना की जांच कहां होगी, लोगों को जानकारी ही नहीं है। बहुत से लोग भय या लापरवाही के चलते भी जांच कराने से बच रहे हैं। सरकारी अस्पतालों का बुरा हाल है, जबकि प्राइवेट अस्पताल एक घंटा ऑक्सीजन देने के 1500 रुपये तक मांग रहे हैं।
बिजनौर के जिलाधिकारी रमाकांत पांडेय का कहना है कि कोरोना संक्रमण की भयानक स्थिति को देखते रोजाना 5-6 हजार मरीजों की जांच करायी जा रही है। जबकि महीने भर पहले रोजाना 1500-2000 मरीजों की जांच रोजाना होती थी। इसके अलावा कोविड-19 संबंधी दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करवाया जा रहा है। सरकारी रिकॉर्ड में कोरोना संक्रमण और मौतों आंकड़ा कम नजर आने के सवाल पर जिलाधिकारी का कहना है कि जिन लोगों की मृत्यु कोरोना पॉजिटिव पाये जाने के बाद हो रही है, सिर्फ उनका आंकड़ा सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हो पा रहा है।
पंचायत चुनावों के दौरान उत्तर प्रदेश में शिक्षकों और कर्मचारियों की मौत का मुद्दा तूल पकड़ रहा है। 2 मई को होने वाली मतगणना से पहले कर्मचारी काफी डरे हुए हैं। राष्ट्रीय लोकदल के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने कर्मचारियों की मौत का मुद्दा उठाते हुए 2 मई को होने वाली मतगणना स्थगित करने की मांग की है।