दिल्ली दंगों के मामलों में नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल को दिल्ली हाई कोर्ट से मिली जमानत के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है और नोटिस जारी करते हुए तीनों आरोपियो को जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट के आदेश को मिसाल के तौर पर ना लिया जाए। साथ ही. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के व्यापक बिंदुओं पर विस्तृत सुनवाई की जरूरत बताई है। मामले की अगली सुनवाई 19 जुलाई को होगी।
हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जमानत आदेश लिखने के तरीके पर भी सवाल उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का आदेश का पूरे भारत में असर पड़ सकता है। इसलिए हमने परीक्षण करने का निर्णय लिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग को तो नकार दिया, लेकिन यह जरूर कहा है कि हाईकोर्ट के इस आदेश को नजीर नहीं माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फिलहाल तीनों जमानत पर ही रहेंगे। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने पीठ से यह कहा कि हाईकोर्ट ने इस मामले को बहुत ही सरलता से लिया है। जबकि सच्चाई यह है कि इन तीनों ने गहरी साजिश रची थी। सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि दिल्ली दंगे में 53 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 700 से अधिक लोग घायल हुए थे। मेहता ने आगे कहा, “हाई कोर्ट ने यूएपीए की धारा 15 की व्याख्या ही बदल दी है। एक तरह से कानून को असंवैधानिक कह दिया है।"
आरोपियों के लिए पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने फैसले पर रोक लगाने की मांग का विरोध किया। उन्होंने कहा कि मसले पर व्यापक सुनवाई होनी चाहिए। लेकिन यह केवल जमानत का मामला है। इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि यह आश्चर्यचकित है कि सौ पेज के जमानत आवेदन पर हम कानून के सभी पहलुओं पर चर्चा क्यों कर रहे हैं।