सीलिंग के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली विकास प्राधिकरण को फटकार लगाते हुए कहा, ‘रिहायशी इलाकों में कमर्शियल गतिविधियां के मुद्दे पर आप क्या कर रहे हैं? पिछले 33 सालों से यह सब चला आ रहा है लेकिन सरकारी एजेंसियां चुपचाप बैठी हुई हैं।‘ पीठ ने शहरी विकास व आवास मंत्रालय, डीडीए, दिल्ली सरकार और निगम को बैठक कर सोमवार तक कारगर सुझाव देने के लिए कहा है। सोमवार को मामले में अगली सुनवाई होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह गरीब, छोटे व्यापारियों और झुग्गी झोपड़ियों के खिलाफ नहीं है और न ही वह उन पर कार्रवाई करने जा रहा है। कोर्ट ब्रेड, बटर, दूध आदि बेचने वालों के खिलाफ नहीं है लेकिन कोर्ट को आपत्ति रिहायशी इलाकों में स्थित कार शोरूम, रेस्तरां, साड़ियों के बड़े-बड़े शोरूम को लेकर है। रिहायशी इलाकों में बड़े-बड़े शोरूमों को क्यों संरक्षण मिलना चाहिए?
जस्टिस बी लोकुर और दीपक गुप्ता ने केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए एडीशनल सॉलीसिटर जनरल से एएऩएस नाडकर्णी से कहा कि दिल्ली में भूजल स्तर काफी हद तक गिर गया है और एक साल भी अगर बारिश नहीं हुई तो दिल्ली में पानी का संकट गहरा जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आखिर रिहायशी इलाकों में व्यावसायिक गतिविधियां कैसे चल रही हैं? आखिर सरकार क्यों इन लोगों को साल-दर-साल संरक्षण दे रही है? दिल्ली के आम लोग मवेशी नहीं हैं। तमाम सरकारी एजेंसियों को यह समझना चाहिए कि दिल्ली की जनता अहम है। कुछ लोगों को संरक्षण देने के लिए दिल्ली के आम निवासियों के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। सरकार अपनी आंखें मूंद सकती है लेकिन हम नहीं मूंद सकते।
दिल्ली सरकार ने कहा है कि दिल्ली की एक तिहाई जनता अनधिकृत कॉलोनियों में रहती है और एक झटके में उन्हें राजधानी से बाहर नहीं फेंका जा सकता। इसके जवाब में नाडकर्णी ने कहा कि लोग रहते हैं तो उन्हें रोजमर्रा की चीजों की जरूरत है। चरणबद्ध तरीके से इसका समाधान निकालने की जरूरत है। कानून को खत्म कर देना समाधान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले की निगरानी करनी चाहिए और तमाम एजेंसियों को निर्देश देना चाहिए। लेकिन पीठ ने इस मामले की निगरानी करने से इनकार करते हुए कहा कि हम 'पुलिस नहीं हैं। आखिर आप यह कैसे कह सकते हैं कि अदालत को यह करना चाहिए।