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दिल्ली हिंसा: नफरत के शोलों का नया मंजर, हर तरफ तबाही का आलम

“मौत, तबाही की भयावह दास्तान में न सिर्फ जिंदगियां, बल्कि आर्थिक तबाही को भरने में शायद पीढ़ियां...
दिल्ली हिंसा: नफरत के शोलों का नया मंजर, हर तरफ तबाही का आलम

“मौत, तबाही की भयावह दास्तान में न सिर्फ जिंदगियां, बल्कि आर्थिक तबाही को भरने में शायद पीढ़ियां लगें”

पोस्टमार्टम हाउस (गुरु तेगबहादुर अस्पताल, 26 फरवरी 2020) के पास रोते-बिलखते हरि सिंह सोलंकी दंगे में मारे गए अपने नौजवान बेटे की लाश का इंतजार करते हुए बेहोश हो जाते हैं। ऐसा ही हाल उनके पास ही ‌टिन शेड के पास खड़ी यास्मीन का है, जो सिसकते हुए बस यही कहे जा रही हैं, मेहताब को दरिंदों ने बड़ी बेरहमी से जला दिया। दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले में 24 फरवरी को भड़का दंगा अब तक (दो मार्च) 47 लोगों की जान ले चुका है। उत्तर-पूर्वी दिल्ली के इस क्षेत्र में बड़ी आबादी उत्तर प्रदेश और बिहार से आए लोगों की है, जो यहां पर फैक्ट्रियों, कारखानों वगैरह में काम करते हैं। यहां तीसरी और चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों की भी तादाद अच्छी खासी है। करीब 22 लाख (2011 की जनगणना) वाले इस इलाके में तकरीबन 68 फीसदी हिंदू और 30 फीसदी मुस्लिम आबादी रहती है। संकरी गलियों और सबसे घनी आबादी वाले इस इलाके में एक वर्ग किलोमीटर में करीब 36 हजार लोग रहते हैं। ऐसे में आजगनी के समय नफरत की चिंगारी फैलाने और अफवाहों का बाजार गरम करना यहां बेहद आसान है।

नफरत की इस आंधी में सिर्फ यह इलाका नहीं झुलसा, बल्कि इससे रोजगार, छोटे उद्योग-धंधों का वह विशाल तंत्र भी लुट गया जो न सिर्फ लाखों लोगों की रोजी-रोटी चला रहा था, देश की अर्थव्यवस्‍था को भी मजबूती दे रहा था। नतीजा यह कि दंगे से प्रभावित इलाकों से सटे गांधी नगर मार्केट के अलावा कश्मीरी गेट और चांदनी चौक जैसे इलाकों में 50 फीसदी तक बिजनेस गिर गया है।

करीब 30 हजार दुकानों वाली गांधी नगर मार्केट में मूल रूप से कपड़ों का बिजनेस होता है। कारोबारी अमित अग्रवाल के अनुसार होली का मौका है फिर भी दूसरे शहरों से थोक कारोबारी खरीदारी के लिए नहीं आ रहे हैं। रिटेल कारोबारी भी नहीं है। गांधी नगर जैसा ही हाल कश्मीरी गेट पर स्थित 15 हजार ऑटो पार्ट्स की दुकानों का है। द कॉन्फिडेरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट उमेश सेठ का कहना है, दंगे की वजह से  40-50 फीसदी बिजनेस घटा है। तो, 24 फरवरी (सोमवार) को ऐसा क्या कुछ हुआ। नफरत की चिंगारी जाफराबाद और मौजपुर से ऐसी भड़की कि वह बाबरपुर, कबीरनगर, खजूरी खास, ब्रजपुरी, करावल नगर, शिव विहार, मुस्तफाबाद, कर्दमपुरी, घोंडा, भजनपुरा, गोकुलपुरी इलाकों में फैल गई। उस दिन ऐसा क्या हुआ कि दिल्ली में 1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद फिर लोग खून की होली खेलने लगे? बाबरपुर निवासी अक्षय कहते हैं, “नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में जाफराबाद में महिलाएं सर्विस रोड पर महीनों से धरने पर बैठी थीं। अचानक रविवार को मेट्रो स्टेशन के नीचे मेन रोड पर आकर बैठ गईं। उन लोगों ने सड़क को ब्लॉक कर दिया। इसके बाद भाजपा नेता कपिल मिश्रा के बुलावे पर अगले चौराहे पर मौजपुर में सीएए के समर्थन में लोग नारे लगाने लगे। इस बीच भीम आर्मी के लोग तीन-चार गाड़ियों में आ गए। दोनों ओर से जोर-जोर से नारे लगे। अचानक पथराव शुरू हो गया। फिर तो जो वहशीपन लोगों पर सवार हुआ, ऐसा मैंने जिंदगी में नहीं देखा।”

जाफरबाद में मिले (26 फरवरी) सलमान कहते हैं, “मैं अपने काम से 24 फरवरी की रात लौट रहा था कि अचानक सड़कों पर दंगाई हाथों में तलवार, लोहे की रॉड लेकर सड़क पर उपद्रव मचाए हुए थे। जोर-जोर से ‘जय श्रीराम’, ‘हर-हर महादेव’ के नारे लग रहे थे। लेकिन दो दिनों तक महज 3 किलोमीटर दूर अपने घर घोंडा नहीं पहुंच पाया। कपिल मिश्रा ने बहुत बुरा किया है।” 24, 25 फरवरी को जो तांडव हुआ उसकी निशानी आपको मौजपुर की गलियों में चलते वक्त दिख जाती है। जली हुई दुकानें, सड़कों पर बिखरे दुकानों के सामान हर दो कदम पर दिखेंगे। मौजपुर सड़क पर मिली सुनीता, जली हुई कपड़े की दुकान को दिखाते हुए कहती हैं कि आदमी अच्छे हैं, लेकिन अब किसी का दर्द नहीं है। फसाद के ल‌िए वह कपिल मिश्रा को जिम्मेदार ठहराती हैं।

असल में कपिल मिश्रा 23 फरवरी को अपने समर्थकों के साथ बाबरपुर पहुंचे थे। उन्होंने वहां पर उत्तर-पूर्वी जिले के डिप्टी कमिश्नर वेद प्रकाश की उपस्थिति में कहा, “अभी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत आ रहे हैं। ऐसे में, मैं तीन दिन का अल्टीमेटम देता हूं कि सड़क पर बैठे लोग रास्ता साफ कर दें, नहीं तो हम इस मामले को खुद ही निपटा लेंगे।” हालांकि अपने ऊपर लगे आरोपों को कपिल मिश्रा ने नकार दिया है। बाबरपुर-मौजपुर से भड़की चिंगारी का भयावह रूप आपको चांदबाग, मुस्तफाबाद, गोकुलपुरी, शिव विहार में दिखता है। चांदबाग इलाके में दंगाइयों द्वारा जलाई गई मजार पर ऑटो ड्राइवर जब्बार खान मिलते हैं। वे कहते हैं, “मैं सोमवार (24 फरवरी) को ऑटो को लेकर खजूरी खास पर सवारी का इंतजार कर रहा था, उस वक्त शाम के करीब पांच बजे थे। अचानक मेरे पर गोली चलाई गई और फिर दंगाइयों ने ऑटो पर हमला कर दिया। पुलिस वहीं खड़ी थी, लेकिन उसने कुछ नहीं किया।”

आप किसी से भी बात करिए पुलिस की लापरवाही पर सभी सवाल उठा रहे हैं। लोगों का कहना है कि बार-बार कॉल करने के बावजूद पुलिस उनकी मदद को नहीं आई। खजूरी खास इलाके में किराए पर रहने वाले इरशाद कहते हैं कि मैं इम्ब्रॉयडरी (जरदोजी) का काम करता हूं। रविवार की रात दंगाइयों ने हमला कर दिया। मेरा सड़क के किनारे पहला मकान था। दंगाई मेरे मकान के नीचे दुकान में आग लगा रहे थे। जान बचाने के लिए मैंने पुलिस को चार बार कॉल किया, लेकिन कोई मदद को नहीं आई। मैंने किसी तरह अपने चार बच्चों, पत्नी और मकान मालिक के परिवार को लेकर पीछे से कूदकर जान बचाई। पुलिस की भूमिका पर उठ रहे सवालों पर एक एसीपी का कहना है, “देखिए यह इलाका काफी घनी आबादी वाला है। उसके मुकाबले पुलिस बल बहुत कम है। 25 फरवरी तक हमारे पास मदद के लिए 4,000 से ज्यादा कॉल आई। अब पुलिस हर जगह उड़ कर तो नहीं  पहुंच जाएगी।” खैर, दिल्ली पुलिस ने अब तक 1,284 लोगों को दंगे के मद्देनजर गिरफ्तार किया है। जबकि 369 लोगों पर एफआइआर दर्ज हुई है। (इन पंक्त‌ियों के लिखे जाने वक्त तक)

पुलिस की असंवेदनशीलता का एक और उदाहरण फैजान की मौत के रूप में दिखता है, जिसका एक वीडियो वॉयरल हुआ, जिसमें पुलिस घायल फैजान से राष्ट्रगान गाने को कह रही है। बाद में 23 वर्षीय फैजान की मौत हो गई। कर्दमपुरी में रहने वाली फैजान की 60 साल की बूढ़ी मां इश्मतुन कहती हैं, “पुलिस वाले उसे अस्पताल न ले जाकर थाने ले गए और मरहम-पट्टी के बाद हमें सौंप दिया। घर आने के बाद उसकी हालत बिगड़ने लगी। उसके बाद उसकी एलएनजेपी अस्पताल में  मौत हो गई।” मुस्तफाबाद से सटा शिव विहार का इलाका है। यहां हिंदू आबादी की तादाद ज्यादा है। इस इलाके में पहुंचते ही आपको एक कतार में जले हुए घर, दुकान, स्कूल नजर आएंगे। स्थानीय निवासी विपिन अपने जले हुए घर और दुकान को दिखाते हुए कहते हैं, “सोमवार (24 फरवरी) को दोपहर में अचानक जोर-जोर से ‘अल्लाह हो अकबर’ के नारे लगने लगे, पड़ोस की दुकान में छ‌िपे एक 20 साल के युवक को जिंदा जला दिया।”

बिजेंद्र सिंह की दो बड़ी कार पार्किंग को भी दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया है। दर्जनों जली गाड़ियों को दिखाते हुए बिजेंद्र कहते हैं, “दंगाई गोली चला रहे थे, तेजाब की बोतलें फेंक रहे थे, पेट्रोल बम, बड़ी-बड़ी गुलेल से हमला कर रहे थे।” इस बीच भजनपुरा इलाके में आइबी अधिकारी अंकित शर्मा की मौत पर भी कई सवाल उठने लगे हैं। अंकित के पिता ने जो एफआइआर दर्ज कराई है, उसमें आम आदमी पार्टी के पार्षद रहे ताहिर हुसैन पर लोगों को भड़काने का आरोप लगाया है। उन्हें पार्टी ने न‌िलंबित कर दिया गया है। पार्षद के घर से पेट्रोल बम भी मिले हैं।

(साथ में प्रतीक वर्मा और नीरज झा)

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रोहित सोलंकी

उम्र- 25

मुस्तफाबाद, बाबू नगर

तीन दिन (26 फरवरी) से रोहित दंगे में मारे गए अपने भाई राहुल की लाश पाने के लिए जीटीबी अस्पताल के चक्कर लगा रहे हैं। भाई का कुसूर इतना था कि वह घर में आए रिश्तेदारों के लिए चाय बन जाए, इसके लिए दूध लेने अपनी गली के बाहर गया था। लेकिन अपने घर से चंद कदम दूरी पर ही राहुल दंगाइयों की गोली का शिकार बन गया। गोली गर्दन में लगी थी, भाई की जान बच जाए, इसके लिए रोहित दंगे के हालात में तीन-तीन निजी अस्पतालों के चौखट पर गया, पर उसे कोई लेने को ही तैयार नहीं था। अंत में राहुल ने रोहित के हाथों में ही दम तोड़ दिया। सिसकते हुए रोहित कहते हैं, “इसी गली में मेरा जन्म हुआ, रोहित मुझसे एक साल बड़ा था। हम दोनों भाइयों ने कभी हिंदू-मुस्लिम फसाद होते हुए नहीं देखा। पता नहीं कौन लोग आए सबकुछ सेकंडों में तबाह कर दिया। मर तो हिंदू-मुसलमान दोनों रहे हैं, अब क्या करें। सरकार कुछ भी कर ले मेरा भाई थोड़ी वापस आएगा।”

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यास्मीन

उम्र- 30 साल

ब्रजपुरी

5 नंबर गली में रहने वाली यास्मीन का देवर मेहताब दंगाइयों की भेंट चढ़ गया। वह कहती हैं, “मेरी गली कभी खूनी गली बन जाएगी, बुरे से बुरे माहौल में भी ऐसा सोचा नहीं था। सालों से हिंदू-मुस्लिम साथ-साथ इस गली में रहते आए हैं। मेरा मेहताब बाहर से दूध लेने गया था। लेकिन दंगाइयों ने उसके साथ ऐसा सुलूक किया कि वह आज कफन में लिपटा हुआ है। उसका कसूर केवल यही था कि वह मुसलमान था। ” यास्मीन रोते हुए कहती हैं कि दंगाइयों ने अगर पीछे से गेट में ताला नहीं लगाया होता तो मेरा मेहताब आज जिंदा होता। दंगाई उसको पकड़ कर ले गए। फिर उसी के फोन से हमारे पास फोन आया कि तेरे मेहताब को आग लगा दिया है। हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे मेहताब को बचाएं, लेकिन जल्द ही यह आस टूट गई। मेहर अस्पताल से फोन आया कि मेहताब को ले जाओ, वहां पहुंचे तो उसकी अधजली लाश पड़ी हुई थी। हमें मालूम है कि हमारे साथ न्याय नहीं होगा।

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आलिया

उम्र- 25 साल

खजूरी खास

सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाली आलिया (पहचान जाहिर करने से मना किया) के लिए 24 फरवरी और 25 फरवरी की रात कभी न याद करने वाली रात बन गई है। दंगाइयों ने मंगलवार की रात को आलिया के चाचा को उनकी आखों के सामने जिंदा जला दिया। दंगाई उनके दिल का आपरेशन कराए बीमार पिता, मां और दो छोटे भाइयों को जान से नहीं मार दें, इसके लिए उन्होंने अपने पूरे परिवार को एक मैरेज हाल में छुपा कर रखा। उस रात की कहानी बयां करते हुए आलिया कहती हैं, “अचानक दंगाई ‘जय श्री राम’ करते हुए उनके मोहल्ले में घुस आए। पूरे घर में तोड़-फोड़ की, मेरे चाचा को मारा, फिर उन्हें ले गए। और उन्हें जिंदा जला दिया। हैवानियत ऐसी थी कि उनकी अधजली लाश को भी उठा ले गए। उस रात मैंने पुलिस को 25 बार फोन किया लेकिन कोई मदद नहीं मिली। मैं कहती रही कि मेरे चाचा को मार दिया गया, हमें भी मार देंगे। मदद करिए लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई। मेरे पिताजी दवाइयों को तरस गए।

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मंजू देवी

उम्र- 35

चांदबाग

बुधवार (26 फरवरी) की दोपहर बदहवास होकर अपने हाथों में दो बोरी लेकर जब मंजू देवी मिली तो वह बस एक ही बात कह रही थी। हमें जल्दी से सम्राट चौक वाली गली पहुंचना है। बिहार से आई मंजू घरों में साफ-सफाई का काम करती है। अपने पति को कई साल पहले गंवा चुकी मंजू दो बेटियों के साथ यहां रहती है। वह कहती है “मंगलवार (25 फरवरी) की रात को दंगाई ‘जय बजरंग बली’ करते हुए घुसे। पूरी गली में आग लगा दी। मेरे घर पर ईट-पत्थर चलने लगे, गोलियों की तड़तड़ाने की भी आवाज आ रही थी। फिर मेरे घर में घुस आए, तोड़-फोड़ करने लगे, मैं जोर-जोर से ‘जय बजरंगी’ बोलने लगी, सोचा कि शायद रहम कर जायं। लेकिन पूरे घर को लूट लिया, बेटी की शादी के लिए आठ हजार रुपये रखे थे, वह भी ले गए। बड़ी मुश्किल से पड़ोसियों की मदद से अपनी जान बचा पाई। अब दोबारा उधर नहीं जाऊंगी। भगवान का शुक्र है कि मेरी बेटियां मेरे गांव में थीं, नहीं तो पता नहीं क्या होता। अब तो बस उनके पास सही सलामत पहुंच जाऊं, यही बहुत है।”

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हर दो मिनट पर पहुंच रहे थे घायल

मुस्तफाबाद की संकरी गलियों में बाहर से एक साधारण-सा दिखने वाला अल-हिंद अस्पताल 24-25 फरवरी को दंगा पीड़ितों के लिए किसी मसीहा के घर से कम नहीं था। पूरे इलाके में हो रहे दंगे की वजह से यही एक जगह थी, जहां घायलों को इलाज नसीब हो रहा था। क्योंकि मोहल्ले तक पहुंचने वाली सड़कों पर दंगाइयों का तांडव चल रहा था। इस वजह से पीड़ितों तक बाहर से एंबुलेंस नहीं पहुंच पा रही थी। अल-हिंद अस्पताल के मालिक और खुद पेशे से डॉक्टर, एम.ए.अनवर कहते हैं, “मैंने अपनी जिंदगी में ऐसा मंजर नहीं देखा था। मेरे अस्पताल की क्षमता केवल 15 बेड की है। लेकिन दंगे में घायल हर दो-तीन मिनट पर मेरे पास आ रहे थे। उनकी हालत ऐसी थी कि हैवानियत की सारी हदें पार कर गई थीं। मेरे दो साथी तो कई घायलों को देखकर चीखने-चिल्लाने और रोने लगे।”

अनवर कहते हैं कि स्थिति इतनी भयावह थी कि “ रिकॉर्ड मेंटेन करने का भी समय नहीं था। एक अनुमान से कह सकता हूं कि करीब 400-600 घायलों का हमारी टीम ने इलाज किया। इन लोगों में दो लोग मृत अवस्था में मेरे पास आए थे। ज्यादातर लोग बंदूक की फायरिंग से घायल हुए थे। इसके अलावा लोहे के धारदार हथियारों, पैलेट गन  से लोग घायल थे। पूरे अस्पताल में चीख-पुकार मची हुई थी। कई की हालत ऐसी थी कि बेड पर उन्हें लेटाने पर पूरा का पूरा बेड खून से नहा जाता था। लोगों को मजबूरी में बेंच, जमीन पर भी लेटाना पड़ा। लोगों के संवेदनशील अंगों पर बहुत बुरी तरह हमले किए गए थे। इस बीच घायलों की संख्या बढ़ने से दवाओं की भी किल्लत शुरू हो गई थी। इस संकट में मेरे दोस्त और एम्स के डॉक्टरों ने काफी मदद की। उनकी टीम दंगों के बीच हमारे पास दवाएं लेकर आई। इसके अलावा मुहल्ले वालों ने भी जितना बन पड़ा हमारी मदद की। ”

स्थानीय निवासी फारूक का कहना है, “देखिए, अल-हिंद अस्पताल तो इस इलाके के लिए फरिश्ते की जगह बन गया है। सभी का इलाज मुफ्त में कर रहे हैं।” अस्पताल में पहले फ्लोर पर ऐसे लोगों को भी जगह मिली है, जिनका दंगे में घर तबाह हो गया है। यहां पर स्थानीय लोग उनके खाने-पीने का इंतजाम कर रहे हैं। पेशे से इलेक्ट्रीशियन रईस भी लोगों की मदद कर रहे हैं। उनका कहना है, “अब तो अपने ही घर जाने में डर लगता है। आप इन बच्चों को देखिए, अब कोई पूछे कि इनका क्या कसूर है।” इस भय के माहौल में भी अल-हिंद में एक नई उम्मीद का भी जन्म हुआ है, अस्पताल में घायलों के बीच एक नन्हीं बेटी का जन्म हुआ है। जो शायद अमन-चैन की सौगात लेकर आई हो।

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दिल्ली में पूरी तरह से कर्तव्य की विफलता है। सीडब्ल्यूसी ने गृह मंत्री से तुरंत इस्तीफा देने को कहा है

सोनिया गांधी, अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष

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सीएए विरोध से बिगड़ी फिजां

विजय गोयल

इस लेख को लिखने तक मैं अखबारों में पढ़ रहा हूं कि न्यू सीलमपुर जहां पर दंगे हुए, वहां अभी भी एक समुदाय की महिलाओं ने सीएए कानून के खिलाफ कहा है कि हम धरने पर बैठे रहेंगे और नहीं उठेंगे। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जिस तरह से एक समुदाय के लोग बिना किसी आधार के 77 दिन से धरने पर बैठे हैं, उससे बने माहौल ने दिल्ली के दंगों को जन्म दे दिया।

मैं चांदनी चौक से जहां कभी जनसंघ या भाजपा मुश्किल से जीतती थी, वहां से दो बार सांसद रहा। गंगा-जमुनी तहजीब को मानने वाला रहा हूं। जाकर चांदनी चौक में मेरे बारे में पूछिए, तो बताएंगे कि गोयल ने सांसद रहते हुए सब धर्म, जाति, वर्ग के लिए काम किया।

नागरिकता संशोधन कानून भाजपा की देन नहीं है, अपितु महात्मा गांधी, नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक इस बात की वकालत करते रहे कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से प्रताड़ित हिन्दुओं को नागरिकता देनी चाहिए।  मोदी सरकार ने इस राष्ट्रीय दायित्व को निभाते हुए संसद में कानून बना दिया। राष्ट्रपति ने मुहर लगा दी। विरोधियों की आपत्तियों के चलते मामला अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। कुल मिलाकर पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों में सबसे ज्यादा हिन्दू शरणार्थी हैं, जिन्हें नागरिकता का लाभ मिलता। भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यकों का एक तबका मानता है - लाभ इन्हें क्यों मिले, इसके लिए 77 दिन से धरना दिया जा रहा है। क्या इसे हम सही कहेंगे? यह साफ है कि इस कानून से भारत में किसी की नागरिकता छीनी नहीं जा रही।

इन धरनों में खूब उकसाने वाले भाषण दिए गए, जिनमें कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेता ज्यादा प्रखर दिखाई दिए। भारत विरोधी नारे भी लगाए गए। जब सरकार ने शाहीन बाग के धरनों पर कोई भी पुलिस एक्‍क्षन न करने का मन बना लिया, तब दबाव बनाने के लिए जगह-जगह पर धरने दिए जाने लगे, जनता और सरकार को उकसाने के काम किए जाने लगे, और फिर जो उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुआ, उससे लगता है कि यह सब सुनियोजित था, जिसको विपक्षी दलों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष समर्थन रहा। कम से कम आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन के घर से पत्थर, पेट्रोल बम, गुलेलें तथा हथियार देखकर तो ऐसा ही लगता है। उस क्षेत्र में रहने वाले मेरे कर्मचारियों ने बताया कि दंगें से पूर्व कई लोग अपने मकान खाली करके चले गए थे। ऐसे भी समाचार पढ़ने को मिले कि वारदात के दिन एक समुदाय विशेष के छात्र-छात्राएं स्कूल से गैर हाजिर थे।

हिंदू-मुस्लिम के बीच हुई इस हिंसा ने खाई को बहुत बढ़ा दिया है। उसके साथ-साथ नेताओं के कुछ बयानों पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है।

आज लोगों में विश्वास पैदा करने की जरूरत है। जेएनयू, जामिया में पुलिस को इतना डरा, सहमा, अपराधी-सा बना दिया कि पुलिस इस आशंका से कि उसके किसी कदम से हिंसा और न बढ़ जाए, इसलिए कोई भी सख्त कदम उठाने में झिझकती रही।

दरअसल, एक बात तो स्पष्ट है, वो यह है कि दोनों समुदायों में स्थानीय नेतृत्व का अभाव रहा, मुस्लिम समुदाय में तो नेतृत्व बना ही नहीं। उनका नेतृत्व तो भाजपा के जो विरोधी दल हैं, वह ही करते रहे और उनको ‘वोट बैंक’ की तरह इस्तेमाल करते रहे।

मैंने कभी अपने चांदनी चौक में मुस्लिम समाज में कोई सामाजिक, शैक्षिक संगठन नहीं देखे, जो उनकी भलाई के लिए काम कर रहे हों। इस अभाव का फायदा भाजपा विरोधी दल और कट्टरपंथी उठाते रहे हैं। केवल भाजपा का विरोध ही, जिन भी कारणों से हो, उनका लक्ष्य हो गया है कि उसके लिए वो कभी कांग्रेस तो कभी आम आदमी पार्टी के साथ हो जाते हैं। इस पर मुस्लिम समुदाय को विचार करना चाहिए।

(लेखक भाजपा नेता और राज्यसभा सांसद हैं)

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